Gayaji News: बिहार के गया जिले के गुरारू प्रखंड के कोंची गांव में शनिवार को कुछ ऐसा हुआ, जिसे जिसने भी देखा, हैरान रह गया। गांव के 74 वर्षीय पूर्व वायु सैनिक मोहन लाल की अर्थी बैंड-बाजे और फूलों से सजी हुई निकाली गई, लोग “राम नाम सत्य है” का जाप कर रहे थे, माहौल पूरी तरह शोकपूर्ण था… लेकिन तभी मुक्तिधाम पहुंचते ही अर्थी पर लेटा “मुर्दा” उठ बैठा और मुस्कुराते हुए बोला, “मैं तो बस देखने आया हूं कि मेरी अंतिम यात्रा में कौन-कौन आता है।”
जी हां, यह कोई मज़ाक नहीं था। यह मोहन लाल जी की बाकायदा योजना थी। उन्होंने “जीवित रहते अपनी अंतिम यात्रा” निकालने का फैसला खुद किया था, और उसका आयोजन भी खुद ही करवाया।
क्या था मोहन लाल का मकसद? Gayaji News
मोहन लाल का मानना है कि लोग जब मर जाते हैं, तब उन्हें पता ही नहीं चलता कि उनके जाने के बाद कौन आया, कौन रोया और किसने याद किया। वे खुद देखना चाहते थे कि उनके लिए लोग कितनी भावनाएं रखते हैं। इसलिए उन्होंने अपने जीवन को ही एक उत्सव मानते हुए यह फैसला लिया।
शनिवार को सुबह गांव में जब बैंड-बाजे के साथ “चल उड़ जा रे पंछी…” की धुन पर उनकी अर्थी निकली, तो गांव वाले एक पल को चौंक गए। लेकिन मोहन लाल फूलों से सजी अर्थी पर मुस्कुरा रहे थे और शांत भाव से इस “मृत्यु उत्सव” का हिस्सा बने। सैकड़ों गांववाले इस अनोखे जुलूस में शामिल हुए और जब मुक्तिधाम पहुंचे, तो वहां एक पुतले का प्रतीकात्मक दाह संस्कार किया गया।
उत्सव के बाद सामूहिक भोज
इस पूरे आयोजन के बाद सभी के लिए सामूहिक प्रीतिभोज भी आयोजित किया गया, जहां गांववालों ने मिलकर खाना खाया और मोहन लाल की जिंदादिली की तारीफ की। लोगों ने कहा कि उन्होंने पहली बार किसी को मृत्यु को लेकर इतना सकारात्मक और सहज रवैया अपनाते देखा।
समाज सेवा से भी गहरा नाता
पूर्व वायु सैनिक मोहन लाल लंबे समय से समाजसेवा से जुड़े रहे हैं। उन्होंने बताया कि गांव में बरसात के मौसम में शवदाह में काफी दिक्कतें होती थीं, इसलिए उन्होंने अपने खर्चे पर ही गांव में एक सुविधायुक्त मुक्तिधाम बनवाया। उनका कहना है कि मृत्यु को भय की बजाय स्वीकार और समझने की चीज़ मानना चाहिए।
परिवार और गांववालों की प्रतिक्रिया
मोहन लाल के परिवार में दो बेटे और एक बेटी हैं। एक बेटा डॉ. दीपक कुमार कोलकाता में डॉक्टर हैं, दूसरा बेटा विश्व प्रकाश शिक्षक हैं और बेटी गुड़िया कुमारी धनबाद में रहती हैं। करीब 14 साल पहले उनकी पत्नी जीवन ज्योति का निधन हो गया था। परिवारवालों ने भी मोहन लाल की इस अनोखी सोच को समर्थन दिया और आयोजन में शामिल रहे।
गांव के लोगों के लिए यह घटना अब तक की सबसे अनोखी याद बन गई है। लोगों का कहना है कि मोहन लाल ने सिर्फ एक परंपरा को तोड़ा नहीं, बल्कि जीवन और मृत्यु दोनों को जीने का नया तरीका सिखाया।
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