Indore Phooti Kothi: भारत में मुगलों और अंग्रेजों के दौर की कई शानदार इमारतें आज भी इतिहास की गवाही देती हैं। लेकिन कुछ ऐसी इमारतें भी हैं, जिनकी पहचान उनकी भव्यता नहीं बल्कि अधूरापन बन जाता है। मध्य प्रदेश के इंदौर में स्थित फूटी कोठी ऐसी ही एक ऐतिहासिक इमारत है, जो देखने में किसी किले से कम नहीं लगती, लेकिन इसकी खासियत या कहें कि रहस्य यह है कि इसके 365 कमरों में से किसी के ऊपर छत नहीं है।
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इतिहास की गोद में अधूरी रह गई कोठी- Indore Phooti Kothi
फूटी कोठी का निर्माण 19वीं सदी के अंतिम वर्षों में महाराजा शिवाजी राव होलकर ने शुरू करवाया था। मकसद था एक ऐसी मजबूत और सुरक्षित जगह बनाना, जहां सैनिकों और सैन्य साजो-सामान को रखा जा सके। ये इमारत न केवल सुरक्षा का केंद्र बनने वाली थी, बल्कि इसकी बनावट और भव्यता इसे होलकर रियासत की शान भी बनाती। पर आज, ये कोठी एक वीरान और अधूरी विरासत बनकर रह गई है।
क्यों नहीं बनी एक भी छत?
फूटी कोठी के निर्माण में ब्लैक स्टोन और चूने जैसी पारंपरिक सामग्री का इस्तेमाल हुआ। इसके आर्किटेक्चर को इस तरह डिजाइन किया गया था कि छत बिना किसी सपोर्ट के, झूलते हुए ढांचे में बने। शुरुआत में कुछ हिस्सों में छत का काम भी हुआ, लेकिन तभी अंग्रेज अधिकारियों को इसकी भनक लग गई।
ब्रिटिश शासन ने तुरंत काम रुकवा दिया, और जो थोड़ा बहुत निर्माण हुआ था, उसे भी नुकसान पहुंचाया गया। तब से लेकर अब तक ये कोठी एक अधूरी इमारत के रूप में ही जानी जाती है, जिसका नाम ‘फूटी कोठी’ खुद इस अधूरेपन की कहानी कहता है।
धरती के नीचे भी बसा है एक ‘राज’
इस इमारत की खासियत सिर्फ इसके अधूरेपन तक सीमित नहीं है। कोठी के नीचे भी एक विशाल भूमिगत ढांचा मौजूद है। कहा जाता है कि जमीन के नीचे भी सैकड़ों कमरे बने हैं, जिन्हें आज तक ठीक से खोजा या समझा नहीं जा सका है।
इसके स्तंभ गोल आकार के हैं, जिनके ऊपर विशेष नक्काशी और पुष्प आकृतियां बनाई गई हैं। पूरे ढांचे को पुराने भारतीय और ब्रिटिश आर्किटेक्चर के मेल से तैयार किया गया है।
एक कोठी, कई मंदिर, एक गुफा
हाल ही में, फूटी कोठी के परिसर में करीब 18 मंदिर बनाए गए हैं, जिनमें अलग-अलग देवी-देवताओं की प्रतिमाएं स्थापित हैं। यहां सर्वजन कल्याण समिति का नियंत्रण है और पूजा-पाठ नियमित रूप से होता है।
मंदिर में पूजा करने वाली मनोरमा तिवारी बताती हैं कि कोठी के अंदर एक अंडरग्राउंड गुफा भी है, जिसका इस्तेमाल कभी सैनिकों के छिपने के लिए होता था। यहां एक दुर्गा माता का मंदिर भी है, लेकिन ज्यादा अंधेरा और डरावना होने की वजह से वहां जाना आसान नहीं होता।
‘डरावनी’ है ये कोठी?
इतिहासकार सदाशिव कौतुभ बताते हैं कि इस तरह की इमारतें अक्सर राजाओं की सैन्य जरूरतों और शिकारगाह के रूप में बनाई जाती थीं। लेकिन समय के साथ यह इमारत अपनी उपयोगिता और देखरेख दोनों खो बैठी है। उन्होंने माना कि आज यह कोठी जर्जर और उपेक्षित स्थिति में है।
स्थानीय लोगों का मानना है कि ये कोठी ‘शापित’ या ‘भुतहा’ है। सालों से वीरान और अधूरी पड़ी इस इमारत में लोग अंधेरे के कारण अकेले जाना पसंद नहीं करते। कुछ का तो यह भी कहना है कि रात में यहां अजीब आवाजें सुनाई देती हैं।