North Sea asteroi: यॉर्कशायर से करीब 80 मील दूर उत्तरी सागर के गहरे समुद्र तल में एक रहस्यमयी गड्ढा यानी क्रेटर ने वैज्ञानिकों के बीच कई सालों से बहस छेड़ रखी थी। अब इस पर से पर्दा हट गया है। ताजा शोध में वैज्ञानिकों ने यह पुष्टि की है कि यह गड्ढा किसी साधारण भूगर्भीय गतिविधि का नतीजा नहीं, बल्कि करीब 4.3 करोड़ साल पहले एक विशाल उल्का पिंड या धूमकेतु के धरती से टकराने का परिणाम है।
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इस खोज की पुष्टि हेरियट-वॉट यूनिवर्सिटी, एडिनबर्ग के वैज्ञानिक उइस्डियन निकोलसन और उनकी टीम ने की है। उन्होंने नए सीस्मिक इमेजिंग डेटा की मदद से यह सिद्ध किया कि यह क्रेटर ‘सिल्वरपिट क्रेटर’ वास्तव में एक उल्का टकराव का ही सबूत है, जो समुद्र के नीचे अब तक छिपा हुआ था।
कितना बड़ा था टकराव? North Sea asteroi
वैज्ञानिकों के मुताबिक, यह उल्का लगभग यॉर्क मिनिस्टर के आकार का था और इसके टकराने से समुद्र में जबरदस्त हलचल मच गई थी। क्रेटर की गहराई करीब 700 मीटर है, और इसका व्यास लगभग 20 किलोमीटर तक फैला हुआ है। अनुमान है कि इस टकराव से करीब 100 मीटर ऊंची सुनामी की लहरें उठी थीं, जिसने आसपास के समुद्री जीवन और शायद तटीय क्षेत्रों को भी काफी नुकसान पहुंचाया होगा।
क्या हुआ था उस दौर में?
हालांकि यह घटना डायनासोर के अंत जैसी विनाशकारी नहीं थी, लेकिन उस समय पृथ्वी पर मौजूद कई प्राचीन स्तनधारियों के लिए यह टकराव घातक साबित हुआ होगा। वैज्ञानिकों का कहना है कि यह टकराव जिस समय हुआ, उस वक्त पृथ्वी एक बड़े जैविक परिवर्तन के दौर से गुजर रही थी।
पहले क्यों नहीं हुई पुष्टि?
सिल्वरपिट क्रेटर को पहली बार साल 2002 में पेट्रोलियम भूवैज्ञानिकों ने देखा था। उन्होंने इसकी पहचान समुद्र तल पर मौजूद एक दो मील चौड़े अवसाद और आसपास के 12 मील चौड़े गोलाकार फॉल्ट के रूप में की थी। हालांकि शुरुआत में वैज्ञानिकों के बीच मतभेद था। कुछ का मानना था कि यह नमक के ढेर की हलचल या भूगर्भीय दबाव के कारण बनी संरचना है। लेकिन नई तकनीकों और डेटा के साथ अब उल्का पिंड के सिद्धांत को मजबूती मिल गई है।
क्यों है ये खोज अहम?
यह क्रेटर ब्रिटेन के पास अब तक का एकमात्र ज्ञात उल्का प्रभाव स्थल है। इसकी खोज न केवल पृथ्वी के भूगर्भीय इतिहास को समझने में मदद करती है, बल्कि यह भविष्य की संभावित अंतरिक्ष टकराव घटनाओं के लिए भी एक चेतावनी है।
उइस्डियन निकोलसन कहते हैं, “इस खोज से हमें यह समझने में मदद मिलेगी कि अतीत में उल्का टकरावों ने पृथ्वी के वातावरण, महासागरों और जैव विविधता पर क्या असर डाला। साथ ही, भविष्य में ऐसे किसी भी संभावित खतरे से निपटने की तैयारी में भी यह बेहद उपयोगी है।”