Black Hole: जब तारा खुद को निगल लेता है, ऐसे बनता है ब्रह्मांड का सबसे खतरनाक ब्लैक होल

Black Hole
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Black Hole: ब्लैक होल ब्रह्मांड की उन चीज़ों में से हैं, जिनका नाम सुनते ही डर और जिज्ञासा दोनों पैदा होती है। ये इतने ताकतवर होते हैं कि अपने आसपास मौजूद हर चीज़ को निगल सकते हैं और स्पेस व टाइम तक को मोड़ देने की क्षमता रखते हैं। लेकिन ब्लैक होल अचानक नहीं बन जाते। इनके बनने के पीछे एक लंबी और बेहद नाटकीय प्रक्रिया होती है।

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हर तारा नहीं बनता ब्लैक होल (Black Hole)

सबसे पहले यह समझना ज़रूरी है कि हर तारे का अंत ब्लैक होल के रूप में नहीं होता। हमारे सूरज जैसे सामान्य तारे ब्लैक होल नहीं बन सकते। ब्लैक होल सिर्फ उन्हीं तारों से पैदा होते हैं जो आकार और वजन में बेहद विशाल होते हैं। ऐसे तारे आमतौर पर सूरज से 10 से 20 गुना या उससे भी ज्यादा भारी होते हैं। भारी होने की वजह से ये अपने न्यूक्लियर ईंधन को बहुत तेज़ी से खर्च करते हैं।

तारे के भीतर चलता रहता है संतुलन का खेल

एक तारे के जीवन के दौरान उसके अंदर लगातार दो ताकतों के बीच संतुलन बना रहता है। तारे के कोर में न्यूक्लियर फ्यूजन होता है, जिससे बाहर की ओर दबाव बनता है। वहीं गुरुत्वाकर्षण हर चीज़ को अंदर की ओर खींचने की कोशिश करता है। जब तक तारे के पास जलाने के लिए ईंधन होता है, तब तक ये दोनों ताकतें एक-दूसरे को संतुलित रखती हैं और तारा स्थिर बना रहता है।

ईंधन खत्म होते ही बदल जाते हैं हालात

जैसे ही तारे का न्यूक्लियर ईंधन खत्म होने लगता है, बाहर की ओर बनने वाला दबाव लगभग तुरंत कम हो जाता है। अब गुरुत्वाकर्षण के सामने कोई रुकावट नहीं रहती। नतीजा यह होता है कि तारा अपनी ही ताकत के नीचे अंदर की तरफ ढहने लगता है। यही वह मोड़ होता है, जहां तारा अपने अंत की ओर बढ़ता है।

सुपरनोवा: तारे का विस्फोटक अंत

गुरुत्वाकर्षण के दबाव में तारे का कोर सेकंड के बेहद छोटे हिस्से में ढह जाता है। इसके बाद एक जबरदस्त सुपरनोवा विस्फोट होता है। यह विस्फोट इतना तेज़ होता है कि मरता हुआ तारा कुछ समय के लिए पूरी गैलेक्सी से भी ज्यादा चमकदार दिखाई दे सकता है। इस दौरान तारे की बाहरी परतें अंतरिक्ष में दूर-दूर तक फैल जाती हैं।

कोर का वजन तय करता है आगे का भविष्य

सुपरनोवा के बाद असली फैसला कोर के बचे हुए मास पर निर्भर करता है। अगर कोर बहुत भारी है, तो न्यूट्रॉन दबाव जैसी ताकतें भी उसके पतन को नहीं रोक पातीं। गुरुत्वाकर्षण लगातार कोर को और छोटा करता जाता है और यह सिकुड़न रुकने का नाम नहीं लेती।

सिंगुलैरिटी: ब्लैक होल का असली केंद्र

आखिरकार ढहता हुआ कोर एक सिंगुलैरिटी में बदल जाता है। यह एक ऐसा बिंदु होता है जहां डेंसिटी अनंत मानी जाती है और आकार लगभग शून्य होता है। मूल तारे का सारा मास इसी छोटे से बिंदु में सिमट जाता है। यही किसी ब्लैक होल का असली दिल होता है।

इवेंट होराइजन: जहां से वापसी नामुमकिन

सिंगुलैरिटी के चारों ओर एक अदृश्य सीमा बनती है, जिसे इवेंट होराइजन कहा जाता है। यह ब्लैक होल की वह सीमा है जिसे पार करने के बाद कोई भी चीज़ वापस नहीं लौट सकती। न पदार्थ, न ऊर्जा और न ही रोशनी। यही वजह है कि ब्लैक होल को देख पाना लगभग नामुमकिन होता है।

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