Snake Venom: अक्सर जब हम सांप का नाम सुनते हैं, तो दिमाग में डर की एक लहर दौड़ जाती है। और हो भी क्यों न, हर साल भारत और दुनिया में करीब 1.25 लाख लोगों की मौत सांप के डसने से होती है। लेकिन अब विज्ञान ने एक ऐसा मोड़ ले लिया है जहां वही ज़हर, जो अब तक जान का दुश्मन माना जाता था, अब ज़िंदगी बचाने का ज़रिया बनता जा रहा है।
इस विषय पर वाइल्डलाइफ एक्सपर्ट स्वप्निल खताल, जो पिछले 24 सालों से वन्यजीवों और सांपों के व्यवहार पर काम कर रहे हैं, ने लोकल 18 से बातचीत में कुछ बेहद दिलचस्प और जानकारीपूर्ण बातें साझा कीं।
दवा बनाने में हो रहा सांप के ज़हर का इस्तेमाल- Snake Venom
स्वप्निल बताते हैं कि सांप का विष असल में प्रोटीन का एक जटिल मिश्रण होता है। ये विष अलग-अलग तरह के होते हैं जैसे हीमोटॉक्सिक (रक्त को प्रभावित करने वाला), न्यूरोटॉक्सिक (नसों पर असर डालने वाला), मायोटॉक्सिक (मांसपेशियों को नुकसान पहुंचाने वाला) और साइटोटॉक्सिक (कोशिकाओं को नष्ट करने वाला)। इन सभी प्रकार के विषों में पाए जाने वाले प्रोटीन कंपोनेंट्स को अब दवा उद्योग में काफी गंभीरता से लिया जा रहा है।
विशेषज्ञों के मुताबिक, दिल का दौरा, स्ट्रोक, अल्जाइमर और पार्किंसन जैसी गंभीर बीमारियों की दवाएं बनाने में इन विषों का उपयोग किया जा रहा है। ख़ासकर, रसल वाइपर नामक सांप का हीमोटॉक्सिक विष तो इतना प्रभावशाली है कि इसे ब्लड प्रेशर और ब्लड क्लॉटिंग (रक्त के थक्के बनने) से जुड़ी दवाओं के रिसर्च में प्रमुख रूप से इस्तेमाल किया जा रहा है।
ज़हर अब सिर्फ जानलेवा नहीं, खूबसूरती बढ़ाने वाला भी
जी हां, आपको जानकर हैरानी होगी कि सांप का विष अब कॉस्मेटिक इंडस्ट्री में भी अपनी जगह बना चुका है। कई महंगे और इंटरनेशनल ब्रांड्स ने स्नेक वेनम एक्सट्रैक्ट का उपयोग स्किन केयर प्रोडक्ट्स में करना शुरू कर दिया है। माना जाता है कि इससे त्वचा की उम्र धीमी होती है और झुर्रियों में कमी आती है।
बिच्छू और मकड़ी के विष का भी कुछ इसी तरह से उपयोग दवाओं और स्किन प्रोडक्ट्स में किया जा रहा है। इससे पता चलता है कि विष अब केवल डर की वजह नहीं, बल्कि उपयोग की संभावना बन चुका है।
कैंसर और ब्रेन हेमरेज जैसी बीमारियों में भी हो रहा परीक्षण
स्वप्निल खताल बताते हैं कि कई रिसर्च संस्थान अब सांप के विष पर आधारित दवाओं को लेकर कैंसर, ब्रेन हेमरेज और ट्यूमर जैसे रोगों के इलाज के लिए परीक्षण कर रहे हैं। अभी यह स्टेज क्लिनिकल ट्रायल तक पहुंची नहीं है, लेकिन संभावनाएं बेहद मजबूत हैं।