Water & Oil Mix On Titan: पृथ्वी से करीब 120 करोड़ किलोमीटर दूर, सौरमंडल के सबसे रहस्यमयी चांद टाइटन (Titan) पर वैज्ञानिकों ने ऐसी खोज की है जिसने विज्ञान की अब तक की समझ को चुनौती दे दी है। NASA के Jet Propulsion Laboratory (JPL) और स्वीडन की Chalmers University के वैज्ञानिकों ने पाया है कि टाइटन की बर्फीली सतह पर दो ऐसे पदार्थ एक साथ स्थिर क्रिस्टल (co-crystal) बना रहे हैं, जो धरती पर कभी नहीं मिल सकते, कुछ वैसा ही जैसे तेल और पानी।
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टाइटन: बर्फ, गैस और रहस्य से ढका चांद – Water & Oil Mix On Titan
शनि का सबसे बड़ा चांद टाइटन पृथ्वी से बिल्कुल अलग दुनिया है। यहां तापमान माइनस 183 डिग्री सेल्सियस तक गिर जाता है। इसकी सतह पर मीथेन (Methane) और एथेन (Ethane) जैसी हाइड्रोकार्बन झीलें हैं यानी यहां तरल के रूप में गैसें बहती हैं।
जब वैज्ञानिकों ने इन गैसों में हाइड्रोजन सायनाइड (Hydrogen Cyanide – HCN) मिलाकर प्रयोग किया, तो परिणाम ने सबको हैरान कर दिया। ये तीनों मिलकर एक स्थिर ठोस संरचना बना रहे थे एक “को-क्रिस्टल” (Co-crystal), जो धरती पर बनना लगभग असंभव है।
धरती की केमिस्ट्री को हिला देने वाली खोज
Chalmers University के प्रोफेसर मार्टिन रहम कहते हैं, “यह खोज केमिस्ट्री के उस बेसिक रूल को चुनौती देती है, जिसमें कहा गया है कि ‘पोलर और नॉन-पोलर पदार्थ आपस में नहीं घुलते’। लेकिन टाइटन पर हम देख रहे हैं कि ये न सिर्फ साथ मौजूद हैं बल्कि एक साथ स्थिर संरचना भी बना रहे हैं।”
NASA की टीम ने लैब में टाइटन जैसी ठंडी परिस्थितियां तैयार कीं और तीनों गैसों को मिलाया।
इसके बाद स्पेक्ट्रोस्कोपी (Spectroscopy) तकनीक से मापा गया कि अणु आपस में कैसे प्रतिक्रिया कर रहे हैं। नतीजे में पाया गया कि मिथेन और एथेन जैसे नॉन-पोलर अणु, हाइड्रोजन सायनाइड के ठोस क्रिस्टल ढांचे में जाकर फिट हो रहे थे इस प्रक्रिया को “इंटरकलेशन” (Intercalation) कहा जाता है।
यानी एक पदार्थ के ठोस ढांचे में दूसरा पदार्थ इस तरह समा गया कि दोनों मिलकर बिल्कुल नई संरचना बन गए। यह घटना अब तक विज्ञान में दर्ज नहीं थी।
टाइटन: जीवन से पहले की केमिस्ट्री का खज़ाना?
वैज्ञानिकों ने कंप्यूटर मॉडलिंग से सैकड़ों संभावित को-क्रिस्टल संरचनाओं का विश्लेषण किया।
परिणाम चौंकाने वाले थे टाइटन की परिस्थितियों में ये अजीबोगरीब मिश्रण न सिर्फ स्थिर हैं बल्कि इनके स्पेक्ट्रम NASA के डेटा से पूरी तरह मेल खाते हैं।
इसका मतलब है कि जो लैब में हुआ, वह वास्तव में टाइटन की सतह पर हो रहा है।
फ्रांस की पेरिस-मेउडन ऑब्जर्वेटरी की वैज्ञानिक एथेना कूसटेनेस का कहना है —
“NASA का Dragonfly मिशन, जो 2034 में टाइटन पहुंचेगा, इस खोज की पुष्टि कर सकता है। अगर टाइटन की सतह पर इन को-क्रिस्टल्स के निशान मिले, तो यह न सिर्फ भूगर्भीय बल्कि जीवन की उत्पत्ति से जुड़ी केमिस्ट्री को समझने में मील का पत्थर साबित होगा।”
टाइटन: संभावित ‘प्रिबायोटिक लैब’
टाइटन पर यह खोज बताती है कि जहां धरती के केमिकल नियम फेल हो जाते हैं, वहां भी प्रकृति नए रास्ते खोज लेती है।
यहां का अत्यधिक ठंडा तापमान और हाइड्रोकार्बन की झीलें एक ऐसी “प्रिबायोटिक लैब” बना रही हैं, जहां तेल और पानी जैसे विपरीत पदार्थ एक साथ मौजूद रह सकते हैं।
ऐसे में यह संभावना बढ़ जाती है कि टाइटन जैसे चांद पर जीवन के शुरुआती बीज किसी न किसी रूप में पनप रहे हों।
