जानिए IPC की धारा 59 के बारे में जिसे 1955 में निरस्त कर दिया गया था

Know about Section 59 of IPC which was repealed in 1955
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भारतीय दंड संहिता (IPC) हमारे देश का एक बहुत ही मजबूत हिस्सा है। इस वजह से देश में कानून को महत्व दिया जाता है और लोग देश के कानून का सम्मान भी करते हैं। देश में होने वाले अपराधों की व्याख्या और सजा का प्रावधान सब कुछ भारतीय दंड संहिता में वर्णित ऐसे में आज हम आपके लिए आईपीसी की धारा 59 लेकर आए हैं जिसमें काला पानी की सजा को लेकर चर्चा की गई है।

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IPC की धारा 59

भारतीय दंड संहिता की धारा 59 में कारावास की सजा पाए दोषी को निर्वासित करने का प्रावधान था। लेकिन आईपीसी की इस धारा 59 को दंड प्रक्रिया संहिता (संशोधन) अधिनियम, 1955 की धारा 117 और अनुसूची के तहत 1 जनवरी 1956 को निरस्त कर दिया गया।

सरल शब्दों में कहें तो यह धारा अंग्रेजों द्वारा बनाई गई थी। इसमें कहा गया था कि जिस भी व्यक्ति को आजीवन कारावास की सजा सुनाई जाएगी, उसे काला पानी की सजा दी जाएगी, जिसमें कैदी को अंडमान निकोबार भेजकर काला पानी की सजा दी जाती थी। साथ ही अगर कैदी को भारत में ही सजा सुनाई जाती थी, तो उसे मरने तक जेल में रखा जाता था, लेकिन काला पानी की सजा में आमतौर पर कैदी को 20 साल की सजा दी जाती थी। हालांकि बाद में जब संशोधन आया तो इस आईपीसी को हटा दिया गया और काला पानी की सजा को भी खत्म कर दिया गया।

क्या होती है भारतीय दंड संहिता?

भारतीय दंड संहिता भारत के किसी भी नागरिक द्वारा किए गए विशिष्ट अपराधों को निर्दिष्ट और दंडित करती है। लेकिन IPC की कोई भी धारा भारतीय सेना पर लागू नहीं होती है। पहले जम्मू-कश्मीर में भारतीय दंड संहिता लागू नहीं होती थी। हालांकि, धारा 370 ख़त्म होने के बाद आईपीसी वहाँ भी लागू हो गया। पहले वहां रणबीर दंड संहिता (आरपीसी) लागू होती थी।

भारत में किसने लागू की भारतीय दंड संहिता

भारतीय दंड संहिता ब्रिटिश काल में लागू की गई थी। आईपीसी की स्थापना 1860 में ब्रिटिश भारत के पहले विधि आयोग के प्रस्ताव पर की गई थी। इसके बाद 1 जनवरी, 1862 को इसे भारतीय दंड संहिता के रूप में अपनाया गया। वर्तमान दंड संहिता, जिसे भारतीय दंड संहिता 1860 के नाम से जाना जाता है, से हम सभी परिचित हैं। इसका खाका लॉर्ड मैकाले ने तैयार किया था। समय के साथ इसमें कई बदलाव हुए हैं।

अगर पुलिस अधिकारी FIR लिखने से करें मना

वहीं अगर कोई पुलिस अधिकारी कभी भी आपकी कोई FIR लिखने से इनकार करता है तो यह सीधे तौर पर गैरकानूनी होगा। अगर FIR दर्ज नहीं हुई तो आप एसपी से शिकायत कर सकते हैं। अगर आपकी शिकायत को नजरअंदाज किया जाता है तो आप कोर्ट में किसी भी मजिस्ट्रेट से शिकायत कर सकते हैं। क्योंकि यदि कोई लोक सेवक कानूनी गलती करता है तो वह न्यायालय द्वारा क्षमा योग्य नहीं है।

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