जानिए IPC की धारा 57 के बारे में जिसमें आजीवन कारावास की सजा को लेकर कही गई है ये खास बात

Know what Section 57 of the IPC says about life imprisonment
Source: Google

भारतीय दंड संहिता (IPC) हमारे देश का एक बहुत ही मजबूत हिस्सा है। इस वजह से देश में कानून को महत्व दिया जाता है और लोग देश के कानून का सम्मान भी करते हैं। देश में होने वाले अपराधों की व्याख्या और सजा का प्रावधान सब कुछ भारतीय दंड संहिता में वर्णित है। फिर भी IPC में कई धाराएं ऐसी हैं जिनके बारे में आम जनता को जानकारी नहीं है। इसलिए हम आपके लिए हर रोज एक नई धारा का विवरण लेकर आते हैं ताकि आप अपने कानून के बारे में और अधिक जागरूक हो सकें। ऐसे में आज हम आपके लिए आईपीसी की धारा 57 लेकर आए हैं जिसमें आजीवन कारावास को लेकर चर्चा की गई है।

और पढ़ें: जानिए IPC की धारा 54 के बारे में जिसमें फांसी की सजा को लेकर ये खास बात कही गई है

धारा 57 का विवरण

भारतीय दंड संहिता की धारा 57 के अनुसार दण्डावधियों की भिन्नों की गणना करने में, आजीवन 4[कारावास] को बीस वर्ष के 4[कारावास] के तुल्य गिना जाएगा।

सरल शब्दों में, यदि किसी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई जाती है, तो इसका आमतौर पर मतलब होता है कि व्यक्ति को जीवित रहने तक जेल में सजा काटनी होगी, जबकि यदि कानून में आजीवन कारावास को कैलकुलेशन में गिना जाता है, तो यहां आजीवन कारावास को 20 साल की सजा के रूप में गिना जाएगा।

क्या होती है भारतीय दंड संहिता?

भारतीय दंड संहिता भारत के किसी भी नागरिक द्वारा किए गए विशिष्ट अपराधों को निर्दिष्ट और दंडित करती है। लेकिन IPC की कोई भी धारा भारतीय सेना पर लागू नहीं होती है। पहले जम्मू-कश्मीर में भारतीय दंड संहिता लागू नहीं होती थी। हालांकि, धारा 370 ख़त्म होने के बाद आईपीसी वहाँ भी लागू हो गया। पहले वहां रणबीर दंड संहिता (आरपीसी) लागू होती थी।

भारत में किसने लागू की भारतीय दंड संहिता

भारतीय दंड संहिता ब्रिटिश काल में लागू की गई थी। आईपीसी की स्थापना 1860 में ब्रिटिश भारत के पहले विधि आयोग के प्रस्ताव पर की गई थी। इसके बाद 1 जनवरी, 1862 को इसे भारतीय दंड संहिता के रूप में अपनाया गया। वर्तमान दंड संहिता, जिसे भारतीय दंड संहिता 1860 के नाम से जाना जाता है, से हम सभी परिचित हैं। इसका खाका लॉर्ड मैकाले ने तैयार किया था। समय के साथ इसमें कई बदलाव हुए हैं।

अगर पुलिस अधिकारी FIR लिखने से करें मना

वहीं अगर कोई पुलिस अधिकारी कभी भी आपकी कोई FIR लिखने से इनकार करता है तो यह सीधे तौर पर गैरकानूनी होगा। अगर FIR दर्ज नहीं हुई तो आप एसपी से शिकायत कर सकते हैं। अगर आपकी शिकायत को नजरअंदाज किया जाता है तो आप कोर्ट में किसी भी मजिस्ट्रेट से शिकायत कर सकते हैं। क्योंकि यदि कोई लोक सेवक कानूनी गलती करता है तो वह न्यायालय द्वारा क्षमा योग्य नहीं है।

और पढ़ें: जानिए कानून में हाउस ब्रेकिंग शब्द का क्या है मतलब, IPC की धारा 445 में किया गया है वर्णन 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here