Ambedkar vs Congress: इन दिनों देश की सियासत में एक बार फिर से “संविधान”, “दलित नेतृत्व” और “बाबा साहब अंबेडकर” को लेकर बहस तेज़ हो गई है। ये कोई सामान्य राजनीतिक चर्चा नहीं, बल्कि भारत के लोकतंत्र की जड़ से जुड़ा मुद्दा है। हाल ही में भीमसेना के एक इंटरव्यू में कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत और पत्रकार साधना भारती के बीच इसी मुद्दे पर विस्तार से बातचीत हुई, जो न सिर्फ गंभीर थी, बल्कि कई अहम सवाल खड़े कर गई।
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इस इंटरव्यू में जहां एक तरफ साधना ने भाजपा की नीतियों और संविधान को लेकर उनके कथित रुख पर सवाल उठाए, वहीं उन्होंने कांग्रेस से भी यह पूछा कि राहुल गांधी अगर हर समय हाथ में संविधान रखते हैं, तो क्या उनका दलितों और बाबा साहब के विचारों के प्रति व्यवहार भी उतना ही ज़मीन से जुड़ा है?
जब अंबेडकर जी का अपमान बनता है सियासत का हिस्सा- Ambedkar vs Congress
इंटरव्यू की शुरुआत में ही साधना भारती ने बड़ा सवाल खड़ा किया — “बाबा साहब अंबेडकर का बार-बार अपमान क्यों होता है?” संसद में उनका मज़ाक उड़ाया जाता है, उनकी मूर्तियाँ तोड़ी जाती हैं, और कुछ कथित धार्मिक मंचों से उनके खिलाफ विवादास्पद बयान भी सामने आते हैं। इस पर सुप्रिया श्रीनेत ने हामी भरी कि हां, यह सब होता रहा है और खासतौर पर बीजेपी और संघ परिवार का रिकॉर्ड इसमें कोई छुपा नहीं है।
उन्होंने बीजेपी पर सीधा हमला करते हुए आगे कहा, “जिस बाबा साहब की प्रतिमा को जलाया गया, जिनके विचारों को आरएसएस और बीजेपी के शुरुआती नेताओं जैसे गोलवलकर, सावरकर, श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने अपशब्द कहे आज वही लोग उनके नाम पर राजनीति कर रहे हैं।”
“400 सीट दो, संविधान बदल देंगे” – सुप्रिया का सीधा आरोप
सुप्रिया ने ये भी कहा, “जब बीजेपी के नेता मंच से ये कहते हैं कि हमें 400 सीटें दे दो, हम संविधान बदल देंगे, तो ये बात कोई हवा में नहीं कही गई है। ये खुलकर कहा गया है और कई नेता मंच से इसे बोल चुके हैं। फिर ये कहना कि हम बाबा साहब का सम्मान करते हैं, ये सिर्फ दिखावा है।”
क्या कांग्रेस ने अंबेडकर को चुनाव हरवाया था?
वहीं कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने ऐतिहासिक घटनाओं का हवाला देते हुए यह साफ किया कि बाबा साहब अंबेडकर को संविधान सभा में लाने में कांग्रेस की भूमिका कितनी अहम रही थी।
उन्होंने विस्तार से बताया कि जिस सीट से बाबा साहब चुने गए थे, वह विभाजन के बाद पाकिस्तान चली गई थी, और उस सीट से डी. मंडल पहले लॉ मिनिस्टर बने। ऐसे में अंबेडकर जी के पास संविधान सभा में आने के लिए कोई वैध सीट नहीं बची जिससे वो संविधान सभा का हिस्सा बन सकें।
सुप्रिया ने बताया कि इस स्थिति में जवाहरलाल नेहरू और महात्मा गांधी ने मिलकर यह निर्णय लिया कि महाराष्ट्र से कांग्रेस का एक प्रतिनिधि इस्तीफा देगा और उस सीट से बाबा साहब को नॉमिनेट किया जाएगा।
उन्होंने इसे केवल राजनीतिक फैसला नहीं, बल्कि एक बड़े सम्मान का प्रतीक बताया।
“ये बाबा साहब के ज्ञान, उनकी दृष्टि और संविधान निर्माण में उनकी अद्वितीय क्षमता को देखकर लिया गया फैसला था।” — सुप्रिया श्रीनेत
“चुनाव हारना कोई अपराध नहीं होता”
एक और बड़ी भ्रांति पर सुप्रिया ने बात रखी, जिसमें अक्सर कहा जाता है कि कांग्रेस ने बाबा साहब को चुनाव हरवा दिया था।
इस पर सुप्रिया ने स्पष्ट किया —
“बाबा साहब चुनाव हार गए क्योंकि वो अपने ही बनाए संविधान के दायरे में रहकर चुनाव लड़ना चाहते थे। लेकिन ये चुनावी राजनीति है, हार-जीत होती रहती है। इससे उनके सम्मान में कोई कमी नहीं आती।”
राज्यसभा में भेजने का फैसला भी अद्वितीय था
सुप्रिया ने एक अहम बात पर ज़ोर देते हुए कहा कि जब बाबा साहब चुनाव हार गए और उन्हें राज्यसभा में भेजने की बारी आई, तब भी कांग्रेस ने अपनी महानता दिखाई।
उन्होंने बताया,
“बाबा साहब की पार्टी में सिर्फ एक विधायक (MLA) था, फिर भी नेहरू जी ने साफ कहा कि बाबा साहब अपनी पार्टी से ही राज्यसभा जाएंगे, कांग्रेस के एमएलए सिर्फ उनका समर्थन करेंगे। वो कांग्रेस के सांसद नहीं बनेंगे, बल्कि अपने दल के सांसद बनेंगे। यह कौन करता है?”
इस घटनाक्रम को सुप्रिया ने कांग्रेस की विचारधारा और बाबा साहब के प्रति सम्मान का सबसे बड़ा उदाहरण बताया।
बाबा साहब और भगत सिंह – दोनों के विचारों को पढ़ने की चुनौती
सुप्रिया श्रीनेत ने बीजेपी और संघ परिवार को यह कहकर भी घेरा कि ये लोग अक्सर भगत सिंह की बात करते हैं, लेकिन न तो बाबा साहब और न ही भगत सिंह के विचारों को गहराई से पढ़ते हैं। उन्होंने कहा, “अगर पढ़ लें कि बाबा साहब ने सांप्रदायिकता और सामाजिक न्याय को लेकर क्या लिखा है, तो उनके पैरों तले ज़मीन खिसक जाएगी।”
“राहुल गांधी संविधान की लड़ाई लड़ रहे हैं”
इसी बीच जब राहुल गांधी के हर वक्त हाथ में संविधान लेकर चलने को लेकर साधना भारती ने सवाल उठाया कि क्या ये सिर्फ दिखावा है या असल में कोई प्रतिबद्धता? इस पर सुप्रिया ने साफ कहा कि राहुल गांधी सिर्फ संविधान हाथ में नहीं लेते, वो असल में उसी की रक्षा के लिए लड़ाई भी लड़ रहे हैं।
“जब राहुल गांधी कहते हैं – ‘I love my country. I love my Constitution.’ तो वो सिर्फ जुमला नहीं है। ये उनके संघर्ष की धुरी है।”
उन्होंने कहा कि बाबा साहब ने जो संविधान हमें दिया, उसने देश के सबसे अमीर से लेकर सबसे गरीब तक को बराबर का वोट दिया। इसी संविधान ने महिलाओं, दलितों, आदिवासियों और अल्पसंख्यकों को समानता का अधिकार दिया। और यही संविधान आज खतरे में है, अगर हम चुप रहे।
मनुस्मृति बनाम संविधान: विचारधारा की टकराहट
सुप्रिया श्रीनेत ने संघ की विचारधारा पर तीखा प्रहार करते हुए कहा कि ये वो लोग हैं जो आज भी मनुस्मृति को संविधान से बेहतर मानते हैं। “वो आज भी कहते हैं कि संविधान में खामियां हैं और अगर उन्हें बहुमत मिल जाए तो वे संविधान बदल देंगे।”
उन्होंने उदाहरण देकर बताया कि जब संसद में विपक्ष की आवाज को दबाया जाता है, माइक काटा जाता है, बिल बिना बहस के पास होते है, तो ये संविधान के साथ धोखा है। उन्होंने कहा, “72% बिल स्टैंडिंग कमेटी के पास नहीं जा रहे हैं।”
दलित नेतृत्व पर सवाल – बीजेपी के पास क्यों नहीं है कोई दलित चेहरा?
सुप्रिया ने बीजेपी के खिलाफ बड़ा सवाल उठाटे हुए कहा, “बीजेपी के पास अब तक कोई दलित राष्ट्रीय अध्यक्ष क्यों नहीं रहा?”
उन्होंने कहा, “बीजेपी आज 17-18 राज्यों में सरकार चला रही है, लेकिन कहीं भी कोई दलित मुख्यमंत्री नहीं है। आरएसएस में हमेशा चितपावन ब्राह्मण ही सर्वोच्च पद पर क्यों रहता है? एक बार राजपूत अध्यक्ष बने थे, लेकिन कोई दलित, ओबीसी, आदिवासी क्यों नहीं?”
इसके मुकाबले कांग्रेस की स्थिति बताते हुए उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने दो बार दलित को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया है, पांच से अधिक मुख्यमंत्री दलित समुदाय से बनाए हैं, और हमेशा सामाजिक न्याय के पक्ष में खड़ी रही है।
जब धर्म बन जाता है “धंधा”
सुप्रिया ने बेहद तीखे अंदाज़ में धार्मिक मंचों से हो रही जातिगत टिप्पणियों पर बात की। उन्होंने बागेश्वर धाम के धीरेंद्र शास्त्री और रामभद्राचार्य जैसे कथित धर्मगुरुओं के बयानों की आलोचना की। उन्होंने बताया कि कैसे एक ओबीसी नेता के डीएनए पर सार्वजनिक रूप से सवाल उठाया गया, और महिलाओं की चूड़ियों को कायरता का प्रतीक बताया गया।
“आप महिला होकर चूड़ियों को कमजोरी का प्रतीक मानते हैं? ये तो शक्ति का प्रतीक हैं। रानी लक्ष्मीबाई, अवंतीबाई लोधी जैसी महान महिलाओं ने चूड़ियां पहनकर ही इतिहास रचा है,” उन्होंने कहा।
आस्था जरूरी है, लेकिन देश और संविधान उससे ऊपर है
सुप्रिया ने अंत में साफ शब्दों में कहा कि वो धार्मिक लोगों के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन जब आस्था के नाम पर संविधान निर्माता का अपमान किया जाता है, तब चुप रहना अपराध बन जाता है।
उन्होंने जोर देकर कहा,“आस्था अपनी जगह है, लेकिन उससे ऊपर देश है। और देश का संविधान सबसे ऊपर है। बाबा साहब का अपमान संसद से लेकर मंचों तक होगा तो आवाज उठेगी और ज़ोर से उठेगी।”