Azam Khan News: उत्तर प्रदेश की राजनीति के बड़े चेहरे और समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता आजम खान करीब 23 महीने बाद सीतापुर जेल से रिहा होने जा रहे हैं। मंगलवार, 23 सितंबर को उन्हें जेल से रिहा किया जाएगा। लंबे वक्त से कानूनी लड़ाई लड़ रहे आजम को आखिरकार राहत मिली है और अब उनकी रिहाई ने यूपी की सियासत में नया मोड़ ला दिया है।
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रामपुर की राजनीति में वापसी, फिर से केंद्र में आजम? Azam Khan News
दरअसल रामपुर की राजनीति में आजम खान का दशकों से दबदबा रहा है। लेकिन जब से वो जेल गए, इस इलाके की सियासी तस्वीर काफी हद तक बदल चुकी है। हाल ही में रामपुर लोकसभा उपचुनाव और विधानसभा सीट पर सपा की पकड़ बरकरार तो रही, लेकिन आजम की गैरमौजूदगी से उनके प्रभाव में भारी गिरावट आई। अब जब वो वापसी कर रहे हैं, तो सवाल ये है कि क्या वे फिर से उसी ताकत के साथ वापसी करेंगे?
आजम के करीबी अभी भी सपा के संगठन में सक्रिय हैं, जिससे साफ है कि उनकी पकड़ अब भी कमजोर नहीं हुई है। रामपुर के साथ-साथ पूरे पश्चिमी यूपी की राजनीति में आजम खान की वापसी हलचल मचाने वाली साबित हो सकती है।
अखिलेश यादव से रिश्ते में आई खटास?
आजम खान और सपा प्रमुख अखिलेश यादव के रिश्तों को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं। पिछले दो सालों में अखिलेश सिर्फ एक-दो बार ही आजम से मिलने सीतापुर जेल पहुंचे। उनकी जमानत के लिए पार्टी की तरफ से भी कोई बड़ा सार्वजनिक प्रयास नहीं दिखा। इन बातों को लेकर ये अटकलें तेज हैं कि आजम अब सपा से नाराज़ हैं।
इस बीच नगीना से सांसद चंद्रशेखर आजाद की आजम से मुलाकात और कुछ नेताओं की तरफ से बसपा जॉइन करने के कयास भी लगने लगे हैं। हालांकि, आजम के सपा छोड़ने की फिलहाल कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है, लेकिन राजनीति में “संकेत” भी बहुत कुछ कह जाते हैं।
बसपा का ऑफर और सपा के लिए खतरे की घंटी?
आजम खान की रिहाई से ठीक एक दिन पहले, बसपा के इकलौते विधायक उमाशंकर सिंह ने एक बड़ा बयान देकर माहौल और गर्मा दिया। उन्होंने कहा, “अगर आजम खान बसपा में आते हैं तो उनका दिल से स्वागत होगा।” उनका मानना है कि आजम जैसे नेता के आने से बसपा को मजबूती मिलेगी और 2027 विधानसभा चुनाव में यह कदम फायदेमंद साबित हो सकता है।
इस बयान ने सपा की चिंता बढ़ा दी है, क्योंकि अगर आजम खान जैसा मजबूत मुस्लिम चेहरा बसपा में शामिल होता है, तो मुस्लिम-दलित वोटों का एक नया समीकरण बन सकता है। ये न सिर्फ सपा के लिए झटका होगा, बल्कि भाजपा के लिए भी नई चुनौती बन सकती है।
क्या वाकई सपा छोड़ेंगे आजम?
हालांकि, सपा के अंदरूनी सूत्रों का दावा है कि आजम खान पार्टी छोड़ने वाले नहीं हैं। एक वरिष्ठ नेता ने कहा, “आजम खान की वफादारी समाजवादी पार्टी के साथ रही है। उनके बसपा जाने की बातें सिर्फ अफवाह हैं।” लेकिन इन अफवाहों की वजह भी कुछ ठोस हैं जैसे अखिलेश यादव से दूरी, जमानत के लिए व्यक्तिगत प्रयासों की कमी, और विपक्षी नेताओं से मुलाकातें।
वहीं, यह भी खबरें हैं कि मायावती ने चुपचाप आजम खान के परिवार से संपर्क बढ़ाया है, ताकि एक मजबूत मुस्लिम चेहरा पार्टी में जोड़ा जा सके। मायावती की नजरें 2027 विधानसभा चुनाव पर हैं, और आजम जैसे नेता को साथ लाना उनकी रणनीति का हिस्सा हो सकता है।
2027 की राजनीति की तैयारी?
आजम खान की रिहाई के साथ ही यूपी की राजनीति एक नए मोड़ पर आ गई है। आने वाले हफ्तों में साफ होगा कि आजम अपने पुराने घर यानी सपा में ही रहेंगे या फिर बसपा का दामन थामेंगे। अगर वो बसपा में जाते हैं, तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुस्लिम-दलित गठजोड़ बन सकता है, जिससे सपा का पारंपरिक वोट बैंक कमजोर हो सकता है।