Bengal politics: पश्चिम बंगाल की वोटर लिस्ट से करीब 58 लाख नामों का हटना सिर्फ एक प्रशासनिक कवायद नहीं, बल्कि एक ऐसा घटनाक्रम बन गया है जिसने राज्य की राजनीति में हलचल मचा दी है। सबसे दिलचस्प बात यह है कि जिन जिलों में सबसे ज्यादा वोट कटे हैं, वे या तो तृणमूल कांग्रेस (TMC) के अभेद्य किले माने जाते हैं या फिर भाजपा के मजबूत गढ़। यानी असर सीधा-सीधा सियासी समीकरणों पर पड़ने वाला है।
इस पूरी कवायद में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की भवानीपुर सीट और नेता प्रतिपक्ष शुभेंदु अधिकारी की नंदीग्राम सीट के आंकड़ों की तुलना सबसे ज्यादा चर्चा में है। कहीं बड़े पैमाने पर वोट कटे हैं, तो कहीं नाममात्र की कटौती हुई है। सवाल यही है इसका राजनीतिक मतलब क्या है?
कोलकाता: टीएमसी का गढ़, सबसे बड़ी सर्जरी (Bengal politics)
कोलकाता उत्तर और दक्षिण दोनों ही जगहों पर वोटर लिस्ट में भारी कटौती हुई है।
- कोलकाता उत्तर: करीब 25% वोटर (3,90,390 नाम) हटे, जो पूरे राज्य में सबसे ज्यादा प्रतिशत है।
- कोलकाता दक्षिण: 23.82% वोटर (2,16,150 नाम) कटे।
कोलकाता को टीएमसी का सबसे मजबूत किला माना जाता है। 2021 विधानसभा चुनाव में यहां की 11 की 11 सीटों पर टीएमसी ने जीत दर्ज की थी।
भवानीपुर पर खास नजर
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की सीट भवानीपुर, जो कोलकाता दक्षिण में आती है, वहां कुल 2,06,295 वोटरों में से करीब 44,787 नाम (लगभग 21%) हटाए गए हैं। यह इलाका शहरी है, जहां बंगाली भद्रलोक के साथ-साथ मारवाड़ी और गुजराती समुदाय भी बड़ी संख्या में रहता है। 2021 में ममता ने यहां से 58 हजार से ज्यादा वोटों से जीत हासिल की थी।
किसे नुकसान?
अगर कटे नामों में झुग्गी-बस्तियों में रहने वाले या अल्पसंख्यक वोटर ज्यादा हैं, तो यह टीएमसी के लिए सीधी चिंता है। वहीं, कोलकाता उत्तर में हिंदी भाषी वोटरों की संख्या भी काफी है, जो अक्सर भाजपा की तरफ झुकते हैं। अगर उनके नाम कटे हैं, तो भाजपा को झटका लग सकता है।
दक्षिण 24 परगना: टीएमसी की लाइफलाइन
- कटे नाम: 8,18,432 (9.52%)
यह जिला टीएमसी की रीढ़ माना जाता है। 2021 में यहां की 31 में से 30 सीटें टीएमसी ने जीती थीं। सिर्फ भांगड़ सीट आईएसएफ के नौशाद सिद्दीकी के खाते में गई थी।
यहां करीब 35% मुस्लिम आबादी है, जो टीएमसी का मजबूत वोट बैंक है। सुंदरबन इलाकों में एससी/एसटी वोट भी अहम भूमिका निभाते हैं।
सियासी असर
कैनिंग और डायमंड हार्बर (जहां से अभिषेक बनर्जी सांसद हैं) जैसे इलाकों में बड़ी संख्या में नाम कटे हैं। अगर ये नाम अल्पसंख्यक समुदाय से जुड़े हैं, तो टीएमसी इसे एनआरसी जैसे मुद्दों से जोड़कर बड़ा राजनीतिक नैरेटिव खड़ा कर सकती है। लेकिन सच यह है कि इतनी बड़ी कटौती टीएमसी के जीत के मार्जिन को सीधे प्रभावित कर सकती है।
उत्तर 24 परगना: मतुआ फैक्टर की परीक्षा
- कटे नाम: 7,92,133 (9.54%)
यह बंगाल का सबसे बड़ा जिला है, जहां 33 विधानसभा सीटें हैं। 2021 में टीएमसी ने यहां शानदार प्रदर्शन किया था, लेकिन बैरकपुर और बनगांव बेल्ट में भाजपा की पकड़ बनी रही।
यहां का सबसे अहम फैक्टर है मतुआ समुदाय, जो दलित शरणार्थी हैं और कई सीटों पर हार-जीत तय करते हैं। भाजपा का CAA कार्ड इसी वोट बैंक को साधने की कोशिश है।
अगर कटे नामों में मतुआ वोटर ज्यादा हुए, तो भाजपा इसे बड़ा मुद्दा बना सकती है। वहीं, बशीरहाट जैसे सीमावर्ती इलाकों में नाम कटने का असर टीएमसी के अल्पसंख्यक वोट बैंक पर पड़ सकता है।
मुर्शिदाबाद: अल्पसंख्यक बहुल, लेकिन संवेदनशील
- कटे नाम: 2,78,837 (4.84%)
मुर्शिदाबाद में 66% से ज्यादा मुस्लिम आबादी है। कभी कांग्रेस का गढ़ रहा यह जिला 2021 में टीएमसी के हाथों पूरी तरह ढह गया था। 22 में से 20 सीटें टीएमसी ने जीती थीं।
यहां प्रतिशत भले कम दिखे, लेकिन ढाई लाख से ज्यादा नाम कटना मामूली बात नहीं है। घुसपैठ और नागरिकता जैसे मुद्दों के चलते यह जिला हमेशा संवेदनशील रहता है। टीएमसी के लिए यहां की हर कटौती सियासी सिरदर्द बन सकती है।
पश्चिम वर्धमान: औद्योगिक और हिंदी भाषी इलाका
- कटे नाम: 3,06,146 (13.1%)
आसनसोल-दुर्गापुर बेल्ट में हिंदी भाषी और प्रवासी मजदूरों की बड़ी संख्या है। 13% से ज्यादा नाम कटना यह दिखाता है कि या तो लोग पलायन कर गए हैं या फिर ‘घोस्ट वोटर’ हटाए गए हैं। यह इलाका भाजपा के लिए अहम माना जाता है, क्योंकि हिंदी भाषी वोटर पारंपरिक रूप से उसके समर्थन में माने जाते हैं। ऐसे में यहां की कटौती भाजपा की चिंता बढ़ा सकती है।
उत्तर बंगाल: भाजपा का पावर हाउस
- दार्जिलिंग: 1,22,214 (9.45%)
- जलपाईगुड़ी: 1,33,107 (6.95%)
- कूचबिहार: 1,13,370 (4.55%)
उत्तर बंगाल भाजपा का मजबूत इलाका है। गोरखा, राजबंशी और चाय बागान मजदूर यहां निर्णायक भूमिका निभाते हैं। नाम कटने का मुद्दा यहां ‘अस्मिता’ से जुड़ सकता है, खासकर दार्जिलिंग में।
पूर्व मेदिनीपुर: नंदीग्राम बनाम भवानीपुर
- कटे नाम: 1,41,936 (3.31%)
यह शुभेंदु अधिकारी का गृह जिला है। सबसे दिलचस्प तुलना यहीं देखने को मिलती है। नंदीग्राम में जहां सिर्फ 10,599 नाम कटे, वहीं भवानीपुर में 44 हजार से ज्यादा नाम हटे। कम कटौती शुभेंदु के लिए राहत की बात है, जबकि ममता के गढ़ में बड़ी सर्जरी सवाल खड़े करती है।
जंगलमहल: जहां मामूली फर्क भी बड़ा असर डाल सकता है
पुरुलिया, बांकुरा और पश्चिम मेदिनीपुर में आदिवासी और कुर्मी वोट निर्णायक हैं। 2021 में कई सीटों पर जीत-हार का अंतर सिर्फ 2–5 हजार वोटों का था। ऐसे में लाखों नामों का कटना किसी भी पार्टी का पूरा गणित बिगाड़ सकता है।
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