Bihar Election 2025: बिहार विधानसभा चुनाव नजदीक हैं, लेकिन महागठबंधन की अंदरूनी कलह थमने का नाम नहीं ले रही। राजद, कांग्रेस, वाम दल और वीआईपी जैसे सहयोगी दलों ने एकजुटता का दावा तो किया, मगर हकीकत यह है कि एक-दूसरे के खिलाफ ही मैदान में उतर आए हैं। साझा घोषणापत्र तैयार करने की बात हो या फिर साझा प्रचार अभियान हर मोर्चे पर असहमति हावी है।
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साझा घोषणापत्र फंसा, प्रचार ठप- Bihar Election 2025
महागठबंधन की मेनिफेस्टो ड्राफ्ट कमेटी अभी तक किसी एक मत पर नहीं पहुंच सकी है। राजद और कांग्रेस के अपने-अपने चुनावी वादे हैं, और इन्हें एक साझा दस्तावेज में पिरोना टेढ़ी खीर बन गया है। यही कारण है कि अब तक साझा चुनाव प्रचार की शुरुआत तक नहीं हो पाई है। अंदरखाने से आ रही खबरों के मुताबिक कांग्रेस ने इस गतिरोध को सुलझाने के लिए अपने वरिष्ठ नेता अशोक गहलोत को पटना भेजा है, जहां वो तेजस्वी यादव से मुलाकात कर सकते हैं। कांग्रेस ने प्रदेश प्रभारी कृष्ण अल्लावारु को फिलहाल पीछे कर दिया है।
‘फ्रेंडली फाइट’ नहीं, खुली जंग
महागठबंधन के दावे चाहे जो भी हों, लेकिन जमीन पर हालात बिल्कुल अलग हैं। कई सीटों पर कांग्रेस और राजद आमने-सामने हैं। वैशाली, कहलगांव, सिकंदरा, वारसीलगंज, सुल्तानगंज और नरकटियागंज में दोनों दलों ने अपने-अपने उम्मीदवार उतार दिए हैं। ये वहीं सीटें हैं जहां एनडीए को टक्कर देने के बजाय महागठबंधन खुद आपस में लड़ रहा है।
इसी तरह, कांग्रेस और सीपीआई चार सीटों बछवाड़ा, बिहार शरीफ, करगहर और राजापाकर में एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं। वहीं, राजद और वीआईपी के बीच भी दो सीटों बाबूबरही और चैनपुर पर टकराव सामने आया है।
सीट बंटवारे से बढ़ा घमासान
महागठबंधन में सीटों के बंटवारे को लेकर काफी खींचतान चली। 20 अक्टूबर को नामांकन की आखिरी तारीख से ठीक पहले तक तस्वीर साफ नहीं थी। आखिरकार, राजद ने 143, कांग्रेस ने 61, वाम दलों को 30 और वीआईपी को 9 सीटें दी गईं। लेकिन इसके बावजूद कई दलों ने तय सीमा से ज्यादा उम्मीदवार उतार दिए। उदाहरण के लिए, वीआईपी को 9 सीटें मिलीं लेकिन उसने 15 उम्मीदवार मैदान में उतार दिए। सीपीएम को 4 सीटें दी गईं लेकिन 6 उम्मीदवार खड़े किए गए।
सम्राट चौधरी का तंज
बिहार के डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी ने इस मौके को भुनाने में देर नहीं लगाई। उन्होंने तंज कसते हुए कहा कि महागठबंधन में असली नेता सिर्फ लालू यादव हैं, बाकी पार्टियां बस नाम की हैं। साथ ही उन्होंने कांग्रेस नेता राहुल गांधी पर चुटकी लेते हुए कहा कि “SIR वाले नेता तो अब दिखाई ही नहीं दे रहे, शायद हनीमून पीरियड में हैं।”
मतदाता हुए कन्फ्यूज
महागठबंधन की इस आपसी लड़ाई का सीधा असर मतदाताओं पर पड़ रहा है। जहां एक तरफ एनडीए ने समय रहते सीट बंटवारा और प्रचार की रणनीति तय कर ली, वहीं महागठबंधन अब तक असमंजस में है। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि इस आपसी खींचतान का नुकसान गठबंधन को चुनाव नतीजों में उठाना पड़ सकता है।
फिलहाल तस्वीर साफ है महागठबंधन के दल अपने-अपने एजेंडे में उलझे हैं, साझा सोच नदारद है और मतदाता भ्रमित। अगर यह हालात यूं ही रहे तो बिहार चुनाव में विपक्ष का दावा कमजोर पड़ सकता है।