Bihar Elections 2025: बिहार विधानसभा चुनाव की सरगर्मी तेज़ है, लेकिन सियासी समीकरण उलझे हुए हैं। एक ओर एनडीए (NDA) ने सीट बंटवारे का ऐलान कर बाज़ी तो मार ली, मगर अंदरूनी खटास अब भी बरकरार है। वहीं महागठबंधन (MGB) में सीट शेयरिंग पर सहमति न बन पाने से हालात और बिगड़ते दिख रहे हैं। चुनावी रणभूमि में उतरने से पहले ही दोनों गठबंधनों के भीतर असंतोष और अविश्वास की आवाज़ें तेज हो गई हैं।
महागठबंधन में दरार, कांग्रेस बनी रोड़ा- Bihar Elections 2025
महागठबंधन में सबसे बड़ी समस्या सीट बंटवारे को लेकर चल रही तनातनी है। आरजेडी और कांग्रेस के बीच सहमति नहीं बन पा रही है। कांग्रेस कभी 70 तो कभी 100 सीटों की मांग कर रही है, साथ ही डिप्टी सीएम पद पर भी अड़ गई है। तेजस्वी यादव के फार्मूले पर कांग्रेस ने अभी तक अपनी मंज़ूरी नहीं दी है।
आरजेडी अपने स्तर पर उम्मीदवारों के नामों की घोषणा करने लगी है, जबकि कांग्रेस ने भी सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी शुरू कर दी है। उसने अपने संभावित प्रत्याशियों की स्क्रीनिंग तक शुरू कर दी है। हालांकि, सूत्रों का कहना है कि बातचीत बुधवार तक किसी नतीजे पर पहुंच सकती है।
एनडीए में भी सब ठीक नहीं
दूसरी तरफ नीतीश कुमार के नेतृत्व वाला एनडीए भी पूरी तरह एकजुट नहीं दिख रहा। भाजपा और जेडीयू के बीच 101-101 सीटों पर सहमति बनी है, जबकि चिराग पासवान की एलजेपी(आर) को 29 सीटें दी गई हैं। जीतन राम मांझी की हम पार्टी और उपेंद्र कुशवाहा की आरएलएम को 6-6 सीटों पर संतोष करना पड़ा। लेकिन, यह “सहमति” सिर्फ कागज़ों तक सीमित लगती है।
चिराग पासवान ने सीट बंटवारे को लेकर शुरू से ही हार्ड बार्गेनिंग की। कभी 243 सीटों पर लड़ने की बात कही, तो कभी खुद को बिहार का नेतृत्वकर्ता बताने लगे। भाजपा नेताओं को पटना से दिल्ली तक उनके साथ लगातार बातचीत करनी पड़ी। आखिरकार काफी दबाव के बाद एलजेपी(आर) को 29 सीटें मिलीं, लेकिन इससे जेडीयू के भीतर असंतोष बढ़ गया।
नामांकन की रफ्तार धीमी
नामांकन की प्रक्रिया 10 अक्टूबर से शुरू हो चुकी है और आखिरी तारीख 17 अक्टूबर तय है। 18 को नामांकन पत्रों की जांच होगी। इसके बावजूद, अब तक दोनों गठबंधनों में से किसी ने भी पूरी उम्मीदवार सूची जारी नहीं की है।
एनडीए और महागठबंधन दोनों में ही केवल कुछ गिने-चुने उम्मीदवारों ने नामांकन दाखिल किया है। मोकामा से जेडीयू के अनंत सिंह का नामांकन खासा चर्चित रहा, तो परबत्ता से आरजेडी के डॉ. संजीव ने पर्चा दाखिल किया। जन सुराज और अन्य छोटे दल इस मौके का फायदा उठाते हुए तेजी से मैदान में उतर गए हैं।
दलों के बीच बढ़ी खटास, उत्साह में कमी
भले ही सीटों का ऐलान हो गया हो, लेकिन दल के नेताओं और कार्यकर्ताओं में उत्साह की कमी साफ झलक रही है। एनडीए में कुछ सीटों के वितरण को लेकर नाराजगी है, जबकि महागठबंधन के घटक दलों में भरोसे की कमी। कई नेताओं ने खुले तौर पर असंतोष जाहिर किया है, वहीं कुछ समर्थकों ने इस्तीफे तक दे दिए हैं।
यह स्थिति बताती है कि दोनों गठबंधन अधूरे मन से चुनावी मैदान में उतर रहे हैं, जिससे न सिर्फ उनका जोश कम हुआ है, बल्कि मतदाताओं में भी भ्रम की स्थिति बनी हुई है।
आसान नहीं बिहार की राह
बिहार की सियासत हमेशा समीकरणों के संतुलन पर टिकी रही है। इस बार भी तस्वीर कुछ वैसी ही है बस फर्क इतना है कि अंदरूनी मतभेद ज़्यादा गहरे हैं।
नामांकन की आखिरी तारीख करीब है, मगर गठबंधन अब भी सीटों और उम्मीदवारों पर अटका है। ऐसे में सवाल उठता है कि जब संगठन ही असमंजस में हैं, तो जनता तक भरोसे का संदेश कैसे पहुंचेगा?
शायद यही कारण है कि इस बार बिहार की चुनावी लड़ाई पहले से कहीं ज़्यादा पेचीदा और अप्रत्याशित नज़र आ रही है।