Bihar Politics: फरवरी 2005 के विधानसभा चुनाव में बिहार की राजनीति बुरी तरह उलझ गई थी। नतीजे आए तो किसी भी दल या गठबंधन को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला। राजद को 75, जदयू को 55, भाजपा को 37, लोजपा को 29, कांग्रेस को 10, और अन्य दलों को छोटी-छोटी संख्या में सीटें मिलीं। 17 निर्दलीय विधायक भी चुनकर आए थे। ऐसे में सरकार बनाने की कोशिशें तेज हो गईं।
लोजपा प्रमुख रामविलास पासवान सत्ता की चाबी लेकर बैठे थे। उन्होंने मुस्लिम मुख्यमंत्री की शर्त रख दी, जो राजद को मंजूर नहीं थी। नतीजा यह रहा कि सरकार बनने में देरी होती रही और राजनीतिक अनिश्चितता गहराती चली गई।
राष्ट्रपति शासन और विधानसभा भंग की कहानी- Bihar Politics
तत्कालीन राज्यपाल बूटा सिंह, जिनकी नियुक्ति खुद लालू यादव के करीबी होने के चलते हुई थी, ने स्थिति को और उलझा दिया। जब एनडीए ने 115 विधायकों का समर्थन जुटाने का दावा किया, तभी अचानक विधानसभा भंग कर दी गई। 22 मई 2005 की आधी रात को मनमोहन सिंह की अगुवाई वाली केंद्र सरकार ने राष्ट्रपति शासन के दौरान विधानसभा भंग करने का फैसला ले लिया।
राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम उस समय रूस में थे। उन्हें रात 2 बजे मास्को में जगाकर दस्तखत करवाए गए। इस अजीबो-गरीब जल्दबाजी पर सवाल उठने लगे। भाजपा और जदयू ने आरोप लगाया कि यह फैसला लालू यादव के इशारे पर लिया गया ताकि नीतीश कुमार मुख्यमंत्री न बन सकें।
‘न्याय यात्रा’ से निकला चुनावी नारा
एनडीए ने इसे अपने खिलाफ ‘अन्याय’ बताया। अरुण जेटली, जो उस समय बिहार भाजपा के चुनाव प्रभारी थे, ने इसे लेकर रणनीति बनाई। फैसला लिया गया कि जनता को बताया जाए कि किस तरह उनके जनादेश का अपमान हुआ है। इसी सोच के साथ ‘न्याय यात्रा’ की शुरुआत हुई।
11 जुलाई 2005 को नीतीश कुमार ने इस यात्रा की घोषणा की। यात्रा की शुरुआत पश्चिम चंपारण के बगहा से हुई। गांव-गांव घूमकर एनडीए नेताओं ने बताया कि कैसे विधानसभा भंग करके जनादेश को रोका गया और उनके साथ अन्याय हुआ।
‘न्याय के साथ विकास’ का नारा बना नीतीश की पहचान
न्याय यात्रा के दौरान ही नीतीश कुमार ने ऐलान किया – हमारा लक्ष्य है “न्याय के साथ विकास”। उनका कहना था कि बिहार में कानून का शासन लाना होगा, भ्रष्टाचार और जंगलराज खत्म करना होगा और सभी तबकों को साथ लेकर विकास करना होगा। यही नारा आगे चलकर उनकी राजनीतिक पहचान बन गया।
बाद में इसे और विस्तार देते हुए उन्होंने कहा – “न्याय के साथ समावेशी विकास”, यानी ऐसा विकास जिसमें समाज के हर वर्ग की भागीदारी हो।
जनता ने दिया न्याय, नीतीश को मिली सत्ता
नीतीश कुमार की न्याय यात्रा का असर चुनाव में साफ नजर आया। अक्टूबर 2005 के विधानसभा चुनाव में जनता ने फैसला सुना दिया। जदयू को 88 और भाजपा को 55 सीटें मिलीं। एनडीए को स्पष्ट बहुमत मिल गया। वहीं, राजद 75 से गिरकर 54 पर पहुंच गई और लालू यादव की पकड़ कमजोर हो गई।
नीतीश कुमार पहली बार पूर्ण बहुमत के साथ मुख्यमंत्री बने और ‘न्याय के साथ विकास’ का नारा सिर्फ एक चुनावी जुमला नहीं रहा, बल्कि उन्होंने इसे शासन का मूलमंत्र बना दिया।