Bihar Politics: बिहार की राजनीति में लालू प्रसाद यादव की सत्ता का पर्याय बने ‘सामाजिक न्याय’ के नारे के साथ-साथ ‘जंगलराज’ शब्द ने भी एक जादू की तरह दशकों तक गूंज मचाई। यह शब्द न केवल लालू-राबड़ी के दौर की राजनीति को परिभाषित करता है, बल्कि आज भी बिहार की राजनीति में एक शक्तिशाली राजनीतिक हथियार बना हुआ है।
और पढ़ें: Bihar Election 2025 Date: कब पड़ेगा वोट, कब आएगा नतीजा? बिहार चुनाव 2025 की पूरी टाइमलाइन आई सामने
लेकिन सवाल उठता है कि ‘जंगलराज’ शब्द बिहार की राजनीति में कैसे आया? क्या यह कोई राजनीतिक नारा था, या फिर इसका कोई और इतिहास है? इस सवाल का जवाब एक दिलचस्प कहानी के साथ जुड़ा है, जो बताती है कि शब्द कैसे किसी धारणा को जन्म देते हैं और उसी धारणा के आधार पर किसी नेता या सत्ता की पूरी तस्वीर खींची जाती है।
‘जंगलराज’ का असली उद्भव: पटना हाईकोर्ट की टिप्पणी- Bihar Politics
आइए चलते हैं लगभग 28 साल पीछे, जब बिहार की राजनीतिक और सामाजिक व्यवस्था काफी जर्जर स्थिति में थी। 1997 में चारा घोटाले में फंसे लालू प्रसाद यादव ने 25 जुलाई को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। जेल जाने से पहले उन्होंने सत्ता की बागडोर अपनी पत्नी राबड़ी देवी को सौंप दी। उस साल बिहार की राजनीति में कोहराम मचा हुआ था और राज्य की मशीनरी पूरी तरह ठप पड़ चुकी थी।
पटना शहर में उस समय मॉनसून की भारी बारिश ने बाढ़ की स्थिति पैदा कर दी थी। पूरे शहर में पानी जमा हो चुका था, कई कॉलोनियों में पानी घरों तक घुस चुका था। कीचड़ और गंदगी के कारण हालत नर्क जैसी थी। इस समय एक सामाजिक कार्यकर्ता कृष्ण सहाय ने पटना हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी, जिसमें पटना नगर निगम, बिहार जल निगम और अन्य विभागों की उदासीनता पर सवाल उठाए गए थे।
इसी मामले की सुनवाई करते हुए पटना हाईकोर्ट की खंडपीठ (जस्टिस बीपी सिंह और जस्टिस धर्मपाल सिन्हा) ने कहा, “बिहार में राज्य सरकार नाम की कोई चीज़ नहीं है और जंगलराज कायम है। यहां मुट्ठी भर भ्रष्ट नौकरशाह प्रशासन चला रहे हैं।” कोर्ट ने कहा कि पटना शहर का ड्रेनेज और सीवरेज सिस्टम पूरी तरह से विफल है, और राज्य के निकायों की उदासीनता को “आपराधिक उदासीनता” कहा जा सकता है।
इस टिप्पणी में कोर्ट ने पटना को “भारत की सबसे गंदी राजधानी” तक कहा और सवाल उठाया कि ऐसी संस्थाओं की जनता को क्या जरूरत है जो अपना संवैधानिक दायित्व भी निभाने में असफल रहती हैं।
जंगलराज का राजनीतिक सफर और लालू-राबड़ी का सफर
दिलचस्प बात यह है कि यह ‘जंगलराज’ शब्द किसी राजनीतिक दल का घोषणापत्र नहीं था और न ही किसी राजनीतिक विरोध की पहली आवाज। यह एक न्यायिक टिप्पणी थी, लेकिन जल्दी ही यह शब्द राजनीति का हिस्सा बन गया। 2000 के विधानसभा चुनाव में जनता ने फिर से लालू-राबड़ी को चुना, लेकिन विपक्ष ‘जंगलराज’ शब्द का खूब इस्तेमाल करने लगा।
फरवरी 2000 में राबड़ी देवी ने एक चुनावी रैली में अपने समर्थकों से कहा था, “हाँ बिहार में जंगलराज है, जंगल में एक ही शेर रहता है और सभी लोग उस शेर का शासन मानते हैं।” यह बयान उस दौर की राजनीतिक समझ को दर्शाता था, जब बिहार में अपराध, अपहरण, रंगदारी और माफिया का बोलबाला था।
1990 में सामाजिक न्याय का वादा करके सत्ता में आए लालू यादव पर भ्रष्टाचार, जातिवाद, तुष्टिकरण और बिगड़ती कानून व्यवस्था के आरोप लगने लगे। वरिष्ठ पत्रकार मणिकांत ठाकुर बताते हैं कि ‘जंगलराज’ शब्द को विपक्ष ने अपनाया और हर बार सत्ता पर सवाल उठाने के लिए इसका सहारा लिया गया। खासतौर से जब किडनैपिंग की घटनाओं में वृद्धि हुई, तब यह शब्द और भी ज्यादा जोर पकड़ने लगा।
‘जंगलराज’ बनाम ‘सुशासन’ का चुनावी संग्राम
2005 के विधानसभा चुनाव में बिहार की राजनीति ने नया मोड़ लिया। उस वक्त नीतीश कुमार ने ‘जंगलराज’ शब्द को पकड़कर ‘सुशासन’ का नारा दिया और इसे राजनीतिक नैरेटिव के रूप में स्थापित किया। इस चुनाव में जनता ने ‘सुशासन’ को चुना और आरजेडी सत्ता से बाहर हो गई।
आरजेडी नेता मनोज झा बताते हैं कि ‘जंगलराज’ शब्द की असली कहानी समझना जरूरी है। उन्होंने कहा कि यह शब्द पटना नगर निगम के एक खास मामले से जुड़ा था, न कि पूरे राज्य से। लेकिन लालू यादव ने सही मीडिया मैनेजमेंट नहीं किया और इस शब्द ने राजनीति में अपना स्थान बना लिया।
चारा घोटाले को उजागर करने वाले सुशील मोदी ने भी ‘जंगलराज’ के इस मेटाफर को भुनाया और इसे लालू शासन से जोड़ा। नीतीश कुमार ने इस नैरेटिव को और मजबूती दी और कहा कि बिहार को ‘जंगलराज’ से निकालकर ‘सुशासन’ देना होगा।
लालू यादव की छवि का बदलता दौर
लालू के लिए यह नैरेटिव नुकसानदेह साबित हुआ। जो ‘सामाजिक मसीहा’ की छवि थी, वह ‘अराजक प्रशासक’ की छवि में बदल गई। 2005 के चुनाव में नीतीश कुमार की जीत ने इस धारणा को जनता के बीच और मजबूत कर दिया।
मणिकांत ठाकुर बताते हैं कि लालू के दो साले साधु यादव और सुभाष यादव के काले कारनामों ने ‘जंगलराज’ की छवि को और भी गहरा किया। 1990 से 2004 के बीच बिहार में हुए कई बड़े अपराध जैसे कि चंपा विश्वास कांड, शिल्पी गौतम हत्या, कार चोरी, सामूहिक हत्याएं, डॉक्टरों की किडनैपिंग और व्यवसायियों का पलायन ने ‘जंगलराज’ शब्द को मजबूती दी।
आज भी ‘जंगलराज’ का साया
जब पटना हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी की थी, उस वक्त तेजस्वी यादव मात्र 7 साल के थे। अब, 20 साल बाद भी आरजेडी सत्ता से बाहर है और तेजस्वी यादव पार्टी की कमान संभाल चुके हैं। लेकिन ‘जंगलराज’ का यह जुमला आज भी एनडीए के लिए एक शक्तिशाली राजनीतिक हथियार बना हुआ है और तेजस्वी यादव के लिए चुनौतियां खड़ी करता है।
विश्लेषक मानते हैं कि ‘जंगलराज’ केवल एक शब्द नहीं, बल्कि बिहार की राजनीति का एक बड़ा अध्याय है। यह हमें बताता है कि कैसे एक न्यायिक टिप्पणी समय के साथ एक व्यापक राजनीतिक प्रतीक बन जाती है, जो सत्ता और छवि दोनों को प्रभावित करती है।