पवार ने अपनी आत्मकथा में ऐसा क्या लिखा, जिसे लेकर मच गया बवाल?

Name of Sharad Pawar Biography
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Name of Sharad Pawar Biography – NCP के दिग्गज शरद पवार ने पार्टी अध्यक्ष पद से इस्तीफे का एलान किया है. उनकी पार्टी के कई नेताओं की ओर से उन्हें मनाने की कोशिशें हो रही हैं कि वो पार्टी के अध्यक्ष पद पर बने रहे. और इसी बीच शरद पवार की मराठी भाषा में आत्मकथा ‘लोक माझे सांगाती’ (Lok Maze Sangati) प्रकाशित हुई है. इसमें उन्होंने महाराष्ट्र की सियासत से संबंधित कई चौंकाने वाली बातें लिखी हैं.

2019 के विधानसभा चुनाव (Maharashtra Assembly Election 2019) के परिणाम के बाद महाराष्ट्र की सियासी उथल-पुथल और अजित पवार के बीजेपी के साथ जाने के फैसले से संबंधित कई बातें भी उन्होंने किताब में लिखी हैं. अजित पवार बीजेपी के साथ अचानक क्यों चले गए थे, इस बारे में शरद पवार ने खुलासा करते कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराया है. इस किताब में पवार ने मोदी से अपने संबंधो, अडानी से हुई मुलाकातों का जिक्र किया है और साथ ही आपको बता दें कि इस वक़्त भारतीय राजनीति में शरद पवार सबसे अनुभवी हिस्सा हैं और ऐसे में कोई भी पार्टी इनको जाने या पार्टी छोड़ने जैसा रिस्क नहीं ले सकती.

मोदी से रिश्तों का किया जिक्र

शरद पवार ने अपनी आत्मकथा (Lok Maze Sangati) में जिक्र किया है कि क्यों उनके और पीएम मोदी के रिश्तों की इतनी चर्चा होती है. पवार लिखते हैं, 2004 से 2014 में वे गुजरात सरकार और केंद्र के बीच ब्रिज का काम करते थे. तब गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी थे और उस समय उनके केंद्र की सत्ताधारी कांग्रेस से रिश्ते अच्छे नहीं थे.

पवार ने लिखा, ”इस दौरान केंद्र और गुजरात सरकार की बात नहीं हो रही थी. ऐसे में गुजरात की जनता को नुकसान हो रहा था. इसलिए मैंने पहल की और तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह से बात की. वह काफी समझदार और सुलझे हुए नेता थे क्योंकि वह इस बात को समझते थे. बाद में मुझे गुजरात और केंद्र के बीच संवाद स्थापित करने की जिम्मेदारी सौंपी गई. मेरे और नरेंद्र मोदी के बीच अच्छे संबंधों के बारे में बहुत कुछ कहा जाता है. ये संबंध उस वक्त बने जब 10 साल तक मैं केंद्र में प्रतिनिधित्व कर रहा था.”

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उन्होंने लिखा, राजनीतिक और प्रशासनिक कार्यों में संवाद जरूरी है. बड़े पद पर बैठे व्यक्ति को संवाद से परहेज नहीं करना चाहिए. यह पूरे देश के लिए नुकसानदायक है. मुख्यमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी का संवाद बहुत सीमित था.

‘अजित के चेहरे से साफ जाहिर हो रहा था…’

किताब में शरद पवार ने लिखा, ”जब मैंने सोचना शुरू किया कि अजित ने ऐसा फैसला क्यों लिया, तब मुझे एहसास हुआ कि सरकार गठन में कांग्रेस के साथ चर्चा इतनी सुखद नहीं थी. उनके व्यवहार के कारण हमें हर रोज सरकार गठन पर चर्चा में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा था.”

उन्होंने लिखा, ‘हमने चर्चा में बहुत नरम रुख अपनाया था लेकिन उनकी प्रतिक्रिया स्वागत योग्य नहीं थी. ऐसी ही एक मुलाकात में मैं भी आपा खो बैठा और मेरा मानना ​​था कि यहां आगे कुछ भी चर्चा करने का कोई मतलब नहीं है. जिससे मेरी ही पार्टी के कई नेताओं को झटका लगा था.

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अजित के चेहरे से साफ जाहिर हो रहा था कि वह भी कांग्रेस के इस रवैये से खफा हैं. मैं बैठक से चला गया लेकिन अपनी पार्टी के अन्य सहयोगियों से बैठक जारी रखने के लिए कहा. कुछ समय बाद मैंने जयंत पाटिल को फोन किया और बैठक की प्रगति के बारे में पूछा, उन्होंने मुझे बताया कि अजित पवार मेरे (शरद पवार) तुरंत बाद चले गए.”

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पवार ने अपनी किताब (Name of Sharad Pawar Biography) में लिखा, ”मैंने नहीं सोचा था कि उस समय से कुछ गलत होगा. इस तरह के विद्रोह को तोड़ने के लिए और सभी विधायकों को वापस लाने के लिए तत्काल पहला कदम उठाया. वाईबी चव्हाण केंद्र में मैंने बैठक बुलाई. उस बैठक में 50 विधायक मौजूद रहे, इसलिए हमें विश्वास हो गया कि इस बागी में कोई ताकत नहीं है.”

‘उद्धव के मंत्रालय के 2-3 दौरे हमें रास नहीं आ रहे थे’

पवार ने लिखा, ”स्वास्थ्य कारणों से उद्धव की कुछ मर्यादाएं थीं. कोविड के दौरान उद्धव के मंत्रालय के 2-3 दौरे हमें रास नहीं आ रहे थे. बालासाहेब ठाकरे से बातचीत में जो सहजता हमें मिलती थी, उसमें उद्धव की कमी थी. उनके स्वास्थ्य और डॉक्टर की नियुक्ति को देखते हुए मैं उनसे मिलता था. मुख्यमंत्री के रूप में राज्य से संबंधित सभी समाचार होने चाहिए.

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सभी राजनीतिक घटनाओं पर मुख्यमंत्री की कड़ी नजर होनी चाहिए और भविष्य की स्थिति को देखते हुए कदम उठाए जाने चाहिए. हम सभी ने महसूस किया कि यह कमी थी और इसका मुख्य कारण अनुभव की कमी थी, लेकिन एमवीए सरकार गिरने से पहले जो स्थिति बनी थी, उद्धव ने कदम पीछे खींच लिए और मुझे लगता है कि उनका स्वास्थ्य इसका मुख्य कारण था.”

‘उद्धव के मंत्रालय के 2-3 दौरे हमें रास नहीं आ रहे थे’

पवार ने लिखा, ”स्वास्थ्य कारणों से उद्धव की कुछ मर्यादाएं थीं. कोविड के दौरान उद्धव के मंत्रालय के 2-3 दौरे हमें रास नहीं आ रहे थे. बालासाहेब ठाकरे से बातचीत में जो सहजता हमें मिलती थी, उसमें उद्धव की कमी थी. उनके स्वास्थ्य और डॉक्टर की नियुक्ति को देखते हुए मैं उनसे मिलता था. मुख्यमंत्री के रूप में राज्य से संबंधित सभी समाचार होने चाहिए.

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सभी राजनीतिक घटनाओं पर मुख्यमंत्री की कड़ी नजर होनी चाहिए और भविष्य की स्थिति को देखते हुए कदम उठाए जाने चाहिए. हम सभी ने महसूस किया कि यह कमी थी और इसका मुख्य कारण अनुभव की कमी थी, लेकिन एमवीए सरकार गिरने से पहले जो स्थिति बनी थी, उद्धव ने कदम पीछे खींच लिए और मुझे लगता है कि उनका स्वास्थ्य इसका मुख्य कारण था.”

क्या हुआ था 2019 में?

दरअसल, महाराष्ट्र में 2019 में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी और शिवसेना ने मिलकर चुनाव लड़ा था. वहीं, एनसीपी कांग्रेस के साथ मिलकर मैदान में उतरी थी. बीजेपी-शिवसेना गठबंधन को बहुमत मिला था. लेकिन सीएम के पद को लेकर दोनों पार्टियों में विवाद हो गया था. इसके बाद बीजेपी और शिवसेना की राह अलग अलग हो गई थीं. इसके बाद शिवसेना सरकार बनाने के लिए एनसीपी और कांग्रेस के संपर्क में थी. तभी एक सुबह अचानक से बीजेपी ने अजित पवार गुट के साथ मिलकर सरकार बनाने का दावा पेश किया.

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इसके कुछ घंटों बाद देवेंद्र फडणवीस ने सीएम और अजित पवार ने डिप्टी सीएम पद की शपथ ली थी. हालांकि, शरद पवार की कोशिशों के चलते अजित अपने साथ जरूरी विधायक लाने में सफल नहीं हो सके और उन्होंने इस्तीफा दे दिया था. इसके बाद उद्धव के नेतृत्व में शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी ने सरकार बनाई थी. इस सरकार में भी अजित पवार डिप्टी सीएम बने थे.

उद्धव ठाकरे ने बिना लड़े इस्तीफा दे दिया- पवार

एनसीपी नेता (Name of Sharad Pawar Biography) ने किताब में लिखा, ”एमवीए का गठन सिर्फ सत्ता के लिए नहीं हुआ था, यह छोटे दलों को कुचलकर सत्ता में आने की बीजेपी की रणनीति का करारा जवाब था. एमवीए पूरे देश में बीजेपी के लिए सबसे बड़ी चुनौती थी और हमें पहले से ही अंदाजा था.

कि वे हमारी सरकार को अस्थिर करने की कोशिश करेंगे, लेकिन हमें अंदाजा नहीं था कि उद्धव के मुख्यमंत्री बनने के बाद से ही शिवसेना में बगावत शुरू हो जाएगी, लेकिन शिवसेना का नेतृत्व करने वाले संकट को संभाल नहीं सके और बिना संघर्ष किए उद्धव ने इस्तीफा दे दिया जिसके कारण एमवीए सरकार का गिर गई.”

‘सोनिया गांधी को बताया था विदेशी’

शरद पवार ने अपनी राजनीति की शुरुआत कांग्रेस से की थी. इसी पार्टी से वे विधायक भी बने थे. लेकिन 1999 में पवार ने ही सबसे पहले सोनिया गांधी के विदेशी होने का मुद्दा उठाया था. इसके बाद उन्हें पार्टी से निकाल दिया गया था. इसके बाद पवार ने एनसीपी का गठन किया.

पवार ने अपनी आत्मकथा (Name of Sharad Pawar Biography) में महाविकास अघाड़ी के गठन के वक्त कांग्रेस की भूमिका का भी जिक्र किया. उन्होंने लिखा, ”एक तरफ बीजेपी के खिलाफ महाविकास अघाड़ी गठबंधन बनाने के लिए कांग्रेस को शामिल करना जरूरी था. लेकिन कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व का रवैया अहंकारी था.” शरद पवार ने कहा, ”मैंने अपने एक इंटरव्यू में भी कांग्रेस की अहंकारी प्रवृत्ति की बात कही थी.

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कांग्रेस को डर था कि महाविकास अघाड़ी में शिवसेना के साथ आने से कांग्रेस की देशव्यापी धर्मनिरपेक्ष छवि को नुकसान पहुंच सकता है. लेकिन लेकिन जब महाविकास अघाड़ी बनी तो कांग्रेस की यह भूमिका बदलने लगी जिससे हमारी पार्टी के नेता बेचैन हो उठे.”

उन्होंने कहा, कांग्रेस के मल्लिकार्जुन खड़गे, अहमद पटेल चर्चा के लिए मुंबई आए. इस चर्चा से बहुत कुछ नहीं निकला. सैद्धांतिक रूप से सरकार बनाने में कोई बाधा नहीं थी, लेकिन कांग्रेस के साथ बातचीत में धैर्य की परीक्षा हो रही थी. एनसीपी और शिवसेना दोनों को महसूस हो रहा था कि सरकार बनाने में जितना अधिक समय लगेगा, सत्ता संघर्ष के खेल में बने रहना उतना ही मुश्किल होगा. इसका एक कारण यह भी था कि राष्ट्रपति शासन की तलवार लटक रही थी, क्योंकि राज्य में विधानसभा का कार्यकाल समाप्त होने वाला था.

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