Danapur Assembly Election 2025: पटना से सटी हुई दानापुर विधानसभा सीट पर 2025 का चुनावी माहौल अब पूरी तरह गर्म हो चुका है। बिहार की राजनीति में इस सीट का अपना अलग ही महत्व है, क्योंकि यही वह जगह है, जहाँ से लालू प्रसाद यादव ने 1995 में जीत दर्ज कर मुख्यमंत्री बनने की राह बनाई थी। तब से अब तक यह सीट कई राजनीतिक उतार-चढ़ावों की गवाह बन चुकी है, कभी भाजपा का गढ़ रही दानापुर अब राजद (RJD) के नियंत्रण में है। लेकिन 2025 का मुकाबला फिर वही पुराना सवाल लेकर आ रहा है क्या लालटेन फिर जलेगी या कमल फिर खिलेगा?
2020 में हुआ बड़ा उलटफेर- Danapur Assembly Election 2025
2020 के दानापुर विधानसभा चुनाव में आरजेडी के रितलाल यादव ने भाजपा की दिग्गज उम्मीदवार आशा देवी को कड़ी टक्कर देते हुए हराया था। रितलाल यादव को 89,895 वोट मिले, जबकि आशा देवी को 73,971 वोट। जीत का अंतर 15,924 वोटों का रहा। यह नतीजा इसलिए खास था क्योंकि भाजपा लंबे समय से इस सीट पर मजबूत स्थिति में थी, और यह हार उसके गढ़ को हिला देने वाली साबित हुई।
रितलाल यादव की प्रोफाइल भी हमेशा चर्चा में रहती है — वे 12वीं पास हैं, उन पर 14 आपराधिक मुकदमे दर्ज हैं, लेकिन इसके बावजूद वे इलाके में मजबूत पकड़ रखते हैं। उनकी कुल संपत्ति करीब 12 करोड़ रुपए आंकी गई है और दिलचस्प बात यह है कि उन पर कोई देनदारी नहीं है।
आशा देवी का दौर: तीन बार की विजेता
2015 के चुनाव में भाजपा की आशा देवी ने लगातार तीसरी बार जीत दर्ज की थी। उन्हें 66,983 वोट मिले, जबकि आरजेडी के राजकिशोर यादव को 61,774 वोट। जीत का अंतर केवल 5,209 वोटों का था मतलब मुकाबला बेहद कांटे का रहा।
इससे पहले 2010 के चुनाव में आशा देवी ने पहली बार जीत दर्ज की थी, जब उन्होंने निर्दलीय उम्मीदवार रितलाल राय को हराया था। उस वक्त आशा देवी को 59,423 वोट, जबकि रितलाल राय को 41,506 वोट मिले थे। यह जीत लगभग 17,917 वोटों के अंतर से हुई थी।
तीन चुनावों तक लगातार जीतकर आशा देवी ने दानापुर को भाजपा का मजबूत किला बना दिया था, लेकिन 2020 में यह किला आखिरकार ढह गया।
दानापुर की राजनीतिक यात्रा
दानापुर सीट बिहार की राजनीति में हमेशा से अहम रही है।
- 1995: लालू प्रसाद यादव ने यहां से जीतकर मुख्यमंत्री बनने की राह खोली।
- 2000: लालू ने दोबारा जीत हासिल की।
- 2002 उपचुनाव: आरजेडी के रामानंद यादव ने जीत दर्ज की।
- इसके बाद भाजपा ने इस सीट पर कब्जा जमाया और आशा देवी तीन बार विजयी रहीं।
- 2020: रितलाल यादव ने भाजपा के गढ़ को तोड़कर लालटेन फिर जला दी।
जातीय समीकरण बना रहेगा निर्णायक फैक्टर
दानापुर की राजनीति का सबसे बड़ा फैक्टर जातीय समीकरण है।
यहाँ यादव और वैश्य मतदाता मिलकर यह तय करते हैं कि सत्ता किसके हाथ में जाएगी। यादव समुदाय परंपरागत रूप से आरजेडी का मजबूत वोट बैंक है, जबकि वैश्य वर्ग भाजपा की ओर झुकाव रखता है।
इसके अलावा ब्राह्मण, राजपूत, भूमिहार, कुर्मी, मुस्लिम, पासवान और रविदास समुदाय भी इस चुनाव में निर्णायक भूमिका निभाते हैं।
माना जा रहा है कि अगर भाजपा वैश्य मतदाताओं को एकजुट करने में सफल रही तो मुकाबला बराबरी का हो सकता है, लेकिन अगर यादव वोटर आरजेडी के साथ एकजुट रहे, तो रितलाल यादव की राह फिर आसान दिखती है।
2025 का बड़ा सवाल
अब सबसे बड़ा सवाल यही है क्या रितलाल यादव एक बार फिर लालटेन की रोशनी से दानापुर को जगमगाएंगे, या भाजपा कोई नया चेहरा लाकर अपनी खोई जमीन वापस पाएगी?
चुनावी माहौल में अभी से चर्चाएं तेज़ हैं, और इलाके के नुक्कड़ों पर यही बात सबसे ज़्यादा सुनाई देती है
“इस बार कमल खिलेगा कि लालटेन जलेगी?”
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