पहले लोकसभा चुनाव में एक वोट पर खर्च हुए थे 30 पैसे, जानिए पिछले कुछ सालों में कितना बढ़ा खर्च?

Expenses of Lok Sabha election
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लोकसभा चुनाव 2024 से पहले सभी राजनीतिक पार्टियां अपने वोटरों को लुभाने में लगी हुई हैं। इस बार 18वीं लोकसभा के लिए चुनाव होंगे। यह चुनाव 97 करोड़ से अधिक मतदाताओं को आकर्षित करेगा। मतदान प्रतिशत के लिहाज से यह दुनिया का सबसे बड़ा चुनाव होगा। वहीं, वोट पाने के लिए पार्टियां हर साल अपने वोटरों पर करोड़ों रुपये खर्च करती हैं। आजादी के बाद से लोकसभा चुनाव में वोट करने वाले लोगों और वोट देने के तरीके में काफी बदलाव आया है। जहां पहले बैलेट पेपर का इस्तेमाल होता था, अब ईवीएम और वीवीपैट का इस्तेमाल होता है। ऐसे में आम चुनाव पर होने वाला खर्च काफी बढ़ गया है।

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पहले आम चुनाव का खर्च

लोकसभा चुनाव के खर्च के आंकड़ों की बात करें तो 1951 में जब देश में पहली बार आम चुनाव हुए तो करीब 17 करोड़ मतदाताओं ने इसमें हिस्सा लिया। उस समय प्रति वोटर खर्च 60 पैसे था। तब चुनाव आयोग ने सिर्फ 5.9 करोड़ रुपये खर्च किये थे। यानी प्रति वोटर चुनावी खर्च सिर्फ 30 पैसे हुआ, अगर हिसाब लगाया जाए तो पहले आम चुनाव में सिर्फ 10.5 करोड़ रुपये खर्च हुए।

हर साल खर्च बढ़ता है

1957 के बाद से, आम चुनावों पर खर्च साल दर साल बढ़ता गया है। 2009 से 2014 के बीच चुनाव खर्च लगभग तीन गुना बढ़ गया। 2009 के लोकसभा चुनाव में 1114.4 करोड़ रुपये, 2014 में 3870.3 करोड़ रुपये और 2019 के लोकसभा चुनाव में 6500 करोड़ रुपये खर्च हुए। हालांकि, 2024 के लोकसभा चुनाव में इससे ज्यादा खर्च बढ़ने की संभावना है।

खर्च में बढ़ोतरी की वजह

लोकसभा चुनाव में खर्च बढ़ने का सबसे बड़ा कारण मतदाताओं की संख्या में बढ़ोतरी है. साथ ही उम्मीदवारों, मतदान केंद्रों और संसदीय क्षेत्रों की संख्या में भी वृद्धि हुई है। 1951-1952 के लोकसभा चुनावों में 53 पार्टियों के 1874 उम्मीदवारों ने 401 सीटों पर चुनाव लड़ा। 2019 में यह आंकड़ा काफी बढ़ गया। पिछले आम चुनाव में 673 पार्टियों के 8054 उम्मीदवारों ने 543 सीटों के लिए प्रतिस्पर्धा की थी। देशभर में 10.37 लाख मतदान स्थलों पर वोटिंग हुई।

कौन उठाता है खर्च                                                                     

सूत्रों के मुताबिक, लोकसभा चुनाव से जुड़े सभी खर्चों की जिम्मेदारी केंद्र सरकार की है। इसमें चुनाव आयोग के प्रशासनिक श्रम, चुनाव सुरक्षा, मतदान बूथ मशीन खरीद, मतदाता शिक्षा और मतदाता पहचान पत्र के निर्माण के खर्च शामिल हैं। आजादी के बाद लंबे समय तक चुनाव केवल मतपत्रों से ही होते रहे। 2004 से, प्रत्येक लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) का उपयोग किया जाता है। चुनाव आयोग के मुताबिक, साल दर साल ईवीएम उपकरण खरीदने की लागत बढ़ती जा रही है। जिसके कारण चुनाव खर्च में भारी बढ़ोतरी हुई है।

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