भारतीय राजनीति में इस समय भूचाल आ गया है और इसके पीछे की वजह हैं भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का इस्तीफा (Jagdeep Dhankhar Resign)। दरअसल, खबर आ रही है कि उपराष्ट्रपति धनखड़ (Vice President Jagdeep Dhankhar) ने सोमवार रात को अचानक अपने पद से इस्तीफा दे दिया। हालांकि, उन्होंने अपने इस्तीफे की वजह स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं बताई, लेकिन राजनीतिक गलियारों में इस इस्तीफे को लेकर चर्चाओं का माहौल गर्म हो गया है। हालिया गतिविधियों को देखकर उनके इस्तीफे की टाइमिंग पर कई तरह के सवाल उठाए जा रहे हैं। चलिए, आपको विस्तार से बताते हैं कि क्या उनका इस्तीफा सिर्फ स्वास्थ्य संबंधी था, या इसके पीछे कुछ और सियासत हो सकती है।
फिलहाल, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का इस्तीफा स्वीकार कर लिया है। राष्ट्रपति ने आगे की कार्रवाई के लिए उनका इस्तीफा गृह मंत्रालय को भेज दिया है। खबरों की मानें तो, धनखड़ विदाई समारोह में शामिल नहीं होंगे और न ही कोई विदाई भाषण देंगे।
इस्तीफे से पहले की सक्रियता- Jagdeep Dhankhar Resign
आपको बता दें कि यह इस्तीफ़ा इसलिए भी चर्चा में है क्योंकि यह ठीक ऐसे समय आया है जब इस साल संसद का मानसून सत्र (Monsoon Session 2025) शुरू हुआ है। गौर करने वाली बात यह है कि इस दिन वह पूरी तरह सक्रिय थे, उन्होंने विपक्षी नेताओं से मुलाकात की और राज्यसभा की कार्यवाही का संचालन भी किया। इसके अलावा, उन्होंने महाभियोग प्रस्ताव पर औपचारिक घोषणा भी की। अब सवाल यह उठता है कि अगर स्वास्थ्य ही कारण होता, तो क्या वह इतनी सारी गतिविधियों में शामिल होते? क्या उनकी यह सक्रियता इस बात का संकेत नहीं है कि इस्तीफ़े के पीछे कोई और वजह हो सकती है?
महाभियोग प्रस्ताव से ठीक पहले इस्तीफा
इतना ही नहीं, इस्तीफ़े से कुछ घंटे पहले ही राज्यसभा में महाभियोग प्रस्ताव पर चर्चा हो रही थी। विपक्ष ने जस्टिस वर्मा के ख़िलाफ़ महाभियोग प्रस्ताव पेश किया, जिसे धनखड़ ने स्वीकार कर लिया और उसी दिन सदन में बता दिया। उन्होंने इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाया और क़ानून मंत्री से इसकी पुष्टि भी ली। उनकी सक्रियता यह साबित कर रही है कि इस्तीफ़ा देने से पहले वे अपनी संवैधानिक प्रक्रियाओं को भी आगे बढ़ा रहे थे।
राजनाथ सिंह के कार्यालय में हलचल
सूत्रों की मानें तो इस्तीफ़े से कुछ देर पहले रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह (Defence Minister Rajnath Singh) के कार्यालय में मची थी। भाजपा सांसदों से कोरे कागजों पर दस्तखत करवाए गए। कुछ सांसद आए और बिना कुछ कहे चले गए। इसके बाद ही धनखड़ के इस्तीफ़े की बात सामने आई। अगर इन कड़ियों को जोड़कर देखा जाए तो साफ है कि यह इस्तीफ़ा अचानक नहीं बल्कि पूर्व नियोजित रहा होगा।
सरकार से टकराव: क्या कारण था इस्तीफा?
वहीं, कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि धनखड़ का इस्तीफा सरकार से कुछ मुद्दों पर मतभेद के कारण हो सकता है। किसानों के मुद्दे, महाभियोग प्रस्ताव की स्वीकृति, या विपक्ष के साथ संतुलन साधने की उनकी कोशिशें, इन सभी बिंदुओं पर उनकी स्थिति स्पष्ट नहीं थी। शायद यही कारण रहा हो कि उन्होंने इस्तीफे का रास्ता चुना।
विपक्ष का रुख और संदेह
वहीं, कांग्रेस और विपक्षी दलों का मानना है कि यह इस्तीफा स्वास्थ्य कारणों से ज्यादा राजनीतिक कारणों से दिया गया है। कांग्रेस नेताओं ने कहा कि धनखड़ पूरी तरह से स्वस्थ थे और इस्तीफे का कोई संकेत नहीं दिया था। अब विपक्षी दल इस पूरे घटनाक्रम को सियासी दृष्टिकोण से देख रहे हैं और यह सवाल उठा रहे हैं कि क्या यह कदम सरकार के खिलाफ था।
जगदीप धनखड़ के उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफ़ा देने पर कांग्रेस नेता सुप्रिया श्रीनेत मीडिया से बातचित में कहती हैं, “आपकी तरह मैं भी हैरान हूँ, उन्होंने आज के लिए एक मीटिंग तय की थी, कल उन्हें राजस्थान जाना था। अचानक उन्हें इस्तीफ़ा देना पड़ा। कुछ दिन पहले उन्होंने कहा था कि वह अगस्त 2027 में रिटायर होंगे। प्रधानमंत्री की तरफ़ से भी एक पोस्ट आई है। लेकिन मुझे लगता है कि इस कहानी में कई किरदार हैं, कई परतें हैं। एक सीख भी है, जब आप किसी संवैधानिक पद पर हों, तो सिर्फ़ संविधान ही आपका मार्गदर्शक होना चाहिए…”
उपराष्ट्रपति पद छोड़ते हुए अपने त्यागपत्र में जगदीप धनखड़ जी ने ख़राब स्वास्थ्य का उल्लेख किया था
ज़ाहिर है, अगर यह सच होता तो प्रधानमंत्री और अन्य भाजपाई उनको शुभकामनाएँ देकर कसीदे पढ़ रहे होते
पर यहाँ तो सुई टपक सन्नाटा है 🤔🤔 https://t.co/9mSvBiskXo
— Supriya Shrinate (@SupriyaShrinate) July 22, 2025
कार्यकाल कितना था बाकी?
अब उपराष्ट्रपति धनखड़ के कार्यकाल की बात करें तो उन्होंने अगस्त 2022 में उपराष्ट्रपति का पद संभाला था और उनके 5 साल के कार्यकाल को अभी 3 साल भी पूरे नहीं हुए थे। उनका कार्यकाल 2027 तक था। वहीं, उनका इस्तीफा ऐसे समय में आया है जब विपक्षी नेताओं के साथ उनके रिश्ते तनावपूर्ण हो गए थे।
हरिवंश नारायण सिंह की भूमिका
खबरों की मानें तो, धनखड़ के इस्तीफे के बाद राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश नारायण सिंह कार्यवाहक सभापति की जिम्मेदारी संभालेंगे। वह अब राज्यसभा की कार्यवाही को सुचारू रूप से चलाएंगे। हालांकि, यह उनकी अस्थायी भूमिका होगी और नए उपराष्ट्रपति के चुनाव तक वह इसे संभालेंगे।
उपराष्ट्रपति के चुनाव की प्रक्रिया
चलिए अब जानते हैं कि भारतीय संविधान इस स्थिति के बारे में क्या कहता है। संविधान के अनुसार, उपराष्ट्रपति का पद रिक्त होने के 60 दिनों के भीतर नए उपराष्ट्रपति का चुनाव करना ज़रूरी है। यानी 19 सितंबर 2025 तक नए उपराष्ट्रपति का चुनाव हो जाएगा। चुनाव आयोग जल्द ही उपराष्ट्रपति चुनाव की तारीखों का ऐलान कर सकता है। इस चुनाव में लोकसभा और राज्यसभा के सांसद गुप्त मतदान के ज़रिए वोट डालेंगे।
नए उपराष्ट्रपति के लिए उम्मीदवार की तलाश
इसी बीच, एनडीए के पास बहुमत होने के कारण यह अटकलें शुरू हो गई हैं कि भाजपा किसे उपराष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार के रूप में सामने लाएगी। भाजपा के पास कई विकल्प हो सकते हैं, जैसे राज्यपालों, अनुभवी नेताओं या केंद्रीय मंत्रियों में से किसी को उपराष्ट्रपति पद के लिए चुना जा सकता है।
भाजपा के पास क्या विकल्प?
बता दें, भाजपा के पास कई मजबूत नेताओं का एक समूह है, जिनमें से किसी को उपराष्ट्रपति के पद के लिए चुना जा सकता है। एक ओर संभावित उम्मीदवार के रूप में राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश नारायण सिंह को देखा जा रहा है, क्योंकि वह 2020 से इस पद पर कार्यरत हैं और उन्हें सरकार का पूरा विश्वास प्राप्त है।