Lalan Singh Mutton Party: दिल्ली में आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव और कांग्रेस नेता राहुल गांधी की मटन पार्टी पिछले साल चर्चा में रही थी, और अब बिहार में एक और मटन पार्टी को लेकर सियासत गरमा गई है। यह विवाद केंद्रीय मंत्री ललन सिंह और बिहार सरकार के ग्रामीण विकास मंत्री अशोक चौधरी से जुड़ा है, जिन्होंने लखीसराय जिले के सूर्यगढ़ा में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान मटन पार्टी का आयोजन किया। इस आयोजन में मंत्री ललन सिंह ने खासतौर पर यह घोषणा की कि शाकाहारी और मांसाहारी दोनों तरह के भोजन की व्यवस्था की गई है, और जो लोग सावन के महीने का पालन नहीं करते, उनके लिए भी मटन और अन्य मांसाहारी व्यंजन उपलब्ध थे।
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सावन में मटन पर बवाल- Lalan Singh Mutton Party
ललन सिंह ने मंच से यह ऐलान करते हुए कहा, “आप लोग यहां भोजन करके जाएं। सावन वाला भी भोजन है और जो सावन को नहीं मानते उनके लिए भी भोजन है।” यह बयान बिहार की राजनीति में तूफान लाने वाला था, क्योंकि बिहार में सावन के महीने में मांसाहारी भोजन पर अक्सर बहस होती रहती है। पिछले साल जब राहुल गांधी और लालू यादव ने मटन पार्टी की थी, तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे लेकर तंज कसा था। मोदी ने कहा था कि इन नेताओं को लोगों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ करने में मजा आता है, और भाजपा ने यह आरोप भी लगाया था कि राहुल गांधी, जो खुद को जनेऊधारी ब्राह्मण कहते हैं, ने सावन के महीने में मटन खाकर हिंदुओं की भावनाओं को ठेस पहुंचाई थी।
जेडीयू की मटन पार्टी पर राजनीतिक प्रतिक्रिया
अब ललन सिंह की मटन पार्टी ने इस सियासी मुद्दे को और गहरा कर दिया है। बिहार में आने वाले चुनाव को देखते हुए इस मुद्दे ने नए सियासी संग्राम को जन्म दिया है। लालू यादव की बेटी और जेडीयू नेता रोहिणी आचार्य ने एक्स (पूर्व ट्विटर) पर पोस्ट करते हुए इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा, “जो दूसरों के खान-पान में खोट निकालते हैं, वही खुद दोहरे चरित्र के हैं। ये लोग धर्म के नाम पर धोखाधड़ी करते हैं।”
सियासी समीकरण और चुनावी माहौल
बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए यह मुद्दा सियासी दलों के बीच तकरार का कारण बन सकता है। हाल ही में बिहार में वोटर लिस्ट रिवीजन को लेकर घमासान मचा हुआ है, और राहुल गांधी व तेजस्वी यादव ने इस मुद्दे पर पटना में विरोध प्रदर्शन भी किया था। अब, ललन सिंह की मटन पार्टी ने एक और विवाद को जन्म दिया है, जो बिहार के चुनावी माहौल को और भी गर्म कर सकता है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस तरह के विवादों से चुनावी रणनीतियों पर असर पड़ सकता है, खासकर उन क्षेत्रों में जहां धार्मिक और सांस्कृतिक भावनाओं का महत्व है। सियासी दल अब इस मुद्दे को अपने-अपने तरीके से भुनाने की कोशिश करेंगे, जिससे राज्य में चुनावी मुकाबला और भी दिलचस्प हो सकता है।