Lalu Yadav Vs Nitish Kumar: बिहार में एक बार फिर ‘जंगलराज’ चुनावी मैदान का सबसे गरम मुद्दा बन चुका है। रोज़ हो रही हत्याओं, जातीय हिंसा और कानून-व्यवस्था पर उठ रहे सवालों ने राजनीतिक बहस को और भी तेज़ कर दिया है। पुलिस अधिकारी हों, कारोबारी या नेता कोई भी सुरक्षित नहीं दिख रहा। हर रैली में, हर भाषण में और हर डिबेट में यही सवाल उठ रहा है — लालू यादव का राज ज्यादा अपराधी था या नीतीश कुमार का?
ताज़ा हत्याओं से गरमाई सियासत- Lalu Yadav Vs Nitish Kumar
हाल के दिनों की बात करें तो 29 अक्टूबर की रात सीवान में इंस्पेक्टर अनिरुद्ध कुमार की गला रेतकर हत्या कर दी गई थी।अगले दिन, यानी 30 अक्टूबर को, मोकामा में जनसुराज समर्थक दुलारचंद यादव को दिनदहाड़े गोलियों से छलनी कर दिया गया। और फिर 31 अक्टूबर की सुबह आरा में कारोबारी प्रमोद महतो और उनके बेटे प्रियांशु महतो की हत्या कर दी गई।
तीन दिन में चार हत्याएं — वो भी बिहार चुनाव 2025 के पहले चरण की वोटिंग से ठीक पहले। विपक्ष को यह मौका मिल गया कि वह नीतीश सरकार पर कानून-व्यवस्था को लेकर हमला बोले। वहीं, जेडीयू ने पलटवार करते हुए लालू-राबड़ी के दौर को याद दिलाया, जब बिहार का नाम सुनते ही लोग डर जाते थे।
35 साल का ‘लालू बनाम नीतीश’ दौर
पिछले 35 सालों से बिहार की सत्ता सिर्फ दो चेहरों के इर्द-गिर्द घूमती रही है — लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार।
- 1990 से 2005 तक लालू और फिर उनकी पत्नी राबड़ी देवी ने बिहार पर राज किया।
- 2005 के बाद से अब तक नीतीश कुमार मुख्यमंत्री की कुर्सी पर हैं, चाहे गठबंधन बदलते रहे हों।
इन दोनों नेताओं ने एक-दूसरे पर “जंगलराज” का ठप्पा लगाया है। लेकिन सवाल अब भी वही है — आखिर सच में किसके राज में अपराध ज्यादा हुए?
आंकड़ों की जुबानी ‘जंगलराज’ की हकीकत
अगर NCRB (नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो) के आंकड़े देखें, तो तस्वीर साफ होती है कि अपराध तो हर दौर में रहे, लेकिन उनकी प्रकृति और रफ्तार दोनों बदली हैं।
लालू यादव का दौर (1990-2005)
- 1992 में कुल अपराध: 1,31,000
- हत्याएं: 5,743
- रेप के मामले: 1,120
- अपहरण के मामले: 2,700+
राबड़ी देवी के कार्यकाल (2000-2004) तक आते-आते अपराध थोड़ा घटा, लेकिन अब भी स्थिति गंभीर थी।
- 2004 में कुल अपराध: 1,15,000
- हत्याएं: 3,800
- रेप केस: 1,000+
- अपहरण: 2,500+
इस दौर को आम जनता ने “जंगलराज” का नाम दिया था। सड़क पर गुंडागर्दी, अपहरण उद्योग और प्रशासनिक ढीलापन आम बात थी।
नीतीश कुमार का दौर (2005 से अब तक)
नीतीश कुमार जब सत्ता में आए तो उनका नारा था — “जंगलराज खत्म, सुशासन की शुरुआत।”
- 2022 में कुल अपराध: लगभग 5 लाख
- हत्याएं: करीब 3,000
- रेप केस: 900 के आसपास
- अपहरण: करीब 12,000
संख्या के हिसाब से कुल अपराध बढ़े हैं, लेकिन इसका एक कारण यह भी है कि अब रिपोर्टिंग ज्यादा होती है और पुलिस में केस दर्ज करने की प्रवृत्ति बढ़ी है।
अगर तुलना की जाए, तो हत्याओं की संख्या 42% तक घटी है, लेकिन अपहरण और अन्य अपराधों में बढ़ोतरी देखी गई है।
अपराध की प्रकृति बदली, डर अब भी वही
लालू-राबड़ी के समय में अपराध संगठित था — अपहरण उद्योग चलता था, सड़कों पर गुंडों का बोलबाला था।
नीतीश कुमार के दौर में अपराध की प्रकृति बदली — अब जातीय हिंसा, आपसी रंजिश और व्यक्तिगत दुश्मनी से जुड़े केस बढ़े हैं। अपराधी बदल गए, लेकिन आम जनता की असुरक्षा की भावना अब भी कायम है।
मोकामा, सीवान, आरा जैसे इलाकों में आज भी बंदूक की आवाजें सियासत की गूंज से ज़्यादा सुनाई देती हैं।
“जंगलराज” किसका — जनता का फैसला बाकी
नीतीश कुमार खुद को “सुशासन बाबू” के तौर पर पेश करते हैं, जबकि विपक्ष उन्हें “नया जंगलराज” कहकर घेरता है।
वहीं, आरजेडी अब यह तर्क देती है कि नीतीश राज में अपराध पहले से भी ज्यादा संगठित और राजनीतिक हो चुका है।
दोनों तरफ से आरोप हैं, लेकिन जनता के लिए फर्क बस इतना है कि चाहे राज किसी का भी रहा हो —
- गोली अब भी चलती है,
- अपराधी अब भी पकड़ से दूर रहते हैं,
- और कानून अब भी कमजोर दिखता है।
बिहार की अर्थव्यवस्था का असर भी जुड़ा है अपराध से
आर्थिक रूप से देखें तो लालू-राबड़ी के दौर में बिहार पिछड़ता गया। उद्योग ठप हो गए, निवेशक भागे और नौजवानों में बेरोजगारी बढ़ी।
नीतीश कुमार के कार्यकाल में सड़कें बनीं, शिक्षा पर फोकस हुआ और ग्रोथ रेट कुछ सालों तक 11% तक पहुंची।
लेकिन बेरोजगारी और गरीबी अब भी बिहार की बड़ी समस्या है, और यही अपराध की सबसे बड़ी जड़ भी मानी जाती है।
मोकामा बना जंगलराज की बहस का एपिसेंटर
वहीं, हाल की घटनाओं में मोकामा का नाम बार-बार आ रहा है। जनसुराज समर्थक दुलारचंद यादव की हत्या ने पूरे राज्य में सनसनी फैला दी। वारदात का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ, जिसमें गाड़ियां रुकती और लोग भागते नज़र आए। इस केस में अनंत सिंह समेत कई लोगों पर FIR दर्ज हुई।
मोकामा वही इलाका है, जहां से बाहुबली राजनीति की जड़ें मजबूत हुईं और आज भी अपराध और राजनीति का रिश्ता टूटा नहीं।
अपराध कम हुआ या चेहरा बदला?
अगर आंकड़ों पर भरोसा करें, तो नीतीश कुमार के दौर में हत्या और रेप के केस घटे हैं, लेकिन कुल अपराध बढ़े हैं। वहीं, लालू यादव के समय में अपराध कम रिपोर्ट होते थे, लेकिन जनता के डर ने उसे “जंगलराज” बना दिया।
यानी, अपराध की कहानी वही है, बस उसका चेहरा बदल गया है।
