Mayawati Controversy: उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती, जो बीएसपी (बहुजन समाज पार्टी) की मुखिया हैं, हमेशा ही राजनीति की गलियों में विवादों और कंट्रोवर्सीज़ का हिस्सा रही हैं। मायावती का नाम जब भी लिया जाता है, उनका राजनैतिक सफर और विवादों का जिक्र साथ-साथ चलता है। चाहे वह उनकी व्यक्तिगत संपत्ति हो, पार्टी के फंड्स का इस्तेमाल, या फिर उनके शासनकाल की नीतियाँ, मायावती के खिलाफ आरोपों की लिस्ट काफी लंबी रही है।
कई लोग मायावती को एक सशक्त नेता के रूप में मानते हैं, जिन्होंने दलितों और पिछड़े वर्गों के अधिकारों के लिए आवाज उठाई। लेकिन दूसरी ओर, उनकी राजनीतिक यात्रा में कई ऐसे मोड़ आए, जब उनके खिलाफ गंभीर आरोप सामने आए। यह आरोप कभी व्यक्तिगत थे, कभी पार्टी की नीति और कभी उनके द्वारा लिए गए निर्णयों के कारण उठे।
यमुना एक्सप्रेसवे का 126 करोड़ का ‘लैंड गेम‘: CBI की नजर में
यमुना एक्सप्रेसवे लैंड डील घोटाला 2012 में शुरू हुआ था, जब उत्तर प्रदेश सरकार ने यमुना एक्सप्रेसवे परियोजना का उद्घाटन किया। आरोप था कि 57 हेक्टेयर ज़मीन को 85 करोड़ रुपये में खरीदा गया और फिर YEIDA (यमुना एक्सप्रेसवे इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट अथॉरिटी) को 126 करोड़ रुपये में बेचा गया, जिससे भारी मुनाफा हुआ। यह लैंड डील को लेकर भ्रष्टाचार के आरोप सामने आए, जिनमें पूर्व YEIDA CEO पीसी गुप्ता और 19 कंपनियों का नाम शामिल था। इस मामले में 2018 में एफआईआर दर्ज की गई और बाद में 2019 में CBI को जांच सौंप दी गई। इस घोटाले को अखिलेश यादव ने मायावती के शासनकाल में “लैंड डील घोटाला” करार दिया, और इसे उनके राज में भ्रष्टाचार के बड़े उदाहरण के रूप में पेश किया। जांच अब भी जारी है।
अखिलेश के आरोप, 40,000 करोड़ रुपये के घोटाले (Mayawati Controversy)
अखिलेश यादव ने 2012 में मुख्यमंत्री बनते ही मायावती के शासन (2007-2012) पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे, खासकर स्टैच्यू-मेमोरियल्स और पार्क्स के निर्माण में 40,000 करोड़ रुपये के घोटाले का दावा किया। इसमें NRHM (राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन) के फंड्स में अनियमितताएं, नोएडा लैंड डील्स (फार्महाउस अलॉटमेंट स्कैम), HSRP टेंडर (हाई सिक्योरिटी नंबर प्लेट्स), और सीड डिस्ट्रीब्यूशन जैसे प्रोजेक्ट्स शामिल थे, जिनमें CBI और ED की जांचें चल रही थीं।
संपत्ति विवाद
मायावती पर हमेशा यह आरोप लगता रहा है कि उन्होंने अपने राजनीतिक करियर के दौरान अपनी संपत्ति को बेतहाशा बढ़ाया। वर्ष 2007 में जब मायावती यूपी की मुख्यमंत्री बनीं, तो उनकी संपत्ति का मूल्य अचानक बढ़ गया। मीडिया में यह खबरें आईं कि उन्होंने बहुत बड़े पैमाने पर सरकारी खजाने का दुरुपयोग किया है। इस संदर्भ में कई बार उनके खिलाफ सख्त जांच की मांग उठी, लेकिन उन्होंने इन आरोपों को हमेशा नकारा। मायावती ने खुद को एक गरीब परिवार से आने वाली नेता बताया और कहा कि यह संपत्ति उनके वफादार समर्थकों की मदद से संभव हुई है।
विवादित मूर्तियाँ और पार्क
उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने 2007 से 2012 तक अपने शासनकाल में लखनऊ और नोएडा में दो बड़े पार्क बनवाए थे। इन पार्कों में बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर, बीएसपी के संस्थापक कांशीराम, पार्टी के चुनाव चिह्न हाथी और अपनी भी कई मूर्तियां स्थापित की गई थीं। ये मूर्तियां मुख्य रूप से पत्थर और कांसे की थीं। इन परियोजनाओं पर कुल खर्च 1,400 करोड़ रुपये से अधिक आया था, जिनमें से 685 करोड़ रुपये केवल मूर्तियों पर खर्च किए गए थे। प्रवर्तन निदेशालय ने इस पूरे मामले में सरकारी खजाने को 111 करोड़ रुपये का नुकसान होने का आरोप लगाया था।
विपक्ष ने आरोप लगाया कि सरकार का पैसा बेवजह मूर्तियों और पार्कों पर खर्च किया गया जबकि राज्य में शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य जरूरी सेवाओं की स्थिति खराब थी। बीएसपी सरकार के इन फैसलों को लेकर आलोचकों का कहना था कि यह कदम केवल मायावती और कांशीराम की छवि को चमकाने के लिए उठाया गया था, जबकि सरकारी खजाने का सही इस्तेमाल नहीं हुआ। इस मुद्दे पर मायावती ने हमेशा सफाई दी कि ये काम समाज के सबसे वंचित वर्ग के उत्थान के लिए किए गए थे, ताकि उन्हें भी सम्मान मिले।
नोएडा फार्महाउस घोटाला
2010 में मायावती सरकार ने नोएडा में औद्योगिक विकास के लिए किसानों से ज़मीन अधिग्रहित की, लेकिन इसे लेकर कई सवाल उठे। किसानों को 880 रुपये प्रति वर्ग मीटर की दर से भुगतान किया गया, जबकि वही ज़मीन बाज़ार में 15,000 रुपये प्रति वर्ग मीटर में बिक रही थी। इस सस्ती कीमत पर अधिग्रहित ज़मीन बाद में प्रभावशाली व्यक्तियों को फार्महाउस बनाने के लिए सौंप दी गई, जो इस ज़मीन का गलत तरीके से फायदा उठाने वाले थे। यह घोटाला भ्रष्टाचार की एक बड़ी मिसाल बन गया, जिसमें सरकारी ज़मीन को बाज़ार दर से बहुत कम कीमत पर खास लोगों को दिया गया, जबकि किसानों को उचित मुआवजा नहीं मिला। इस मामले ने मायावती सरकार पर भारी आलोचना और घोटाले के आरोप लगाए।
सामाजिक न्याय और विवादों का मिश्रण
मायावती ने हमेशा समाज के निचले तबकों के अधिकारों की बात की है, खासकर दलितों और पिछड़ों के लिए। हालांकि, इन कोशिशों के बावजूद उनके खिलाफ कई बार यह आरोप लगे कि उन्होंने अपने राजनीतिक लाभ के लिए इन वर्गों का इस्तेमाल किया। उनका ध्यान एकतरफा राजनीति पर था, जहां उन्होंने अपनी पार्टी के विरोधियों को कमजोर करने के लिए कभी भी कठोर कदम उठाने से परहेज नहीं किया।
