Mayawati vs Chandrashekhar: उत्तर प्रदेश में 2027 के विधानसभा चुनाव अभी काफी दूर हैं, लेकिन सियासी हलचल अभी से तेज हो चुकी है। पश्चिमी यूपी इस राजनीतिक उथल-पुथल का नया केंद्र बना हुआ है, जहां दलित राजनीति की दो बड़ी आवाजें मायावती और चंद्रशेखर आजाद अपनी-अपनी जमीन मजबूत करने में जुट गई हैं। एक ओर बसपा प्रमुख मायावती 6 दिसंबर को बाबा साहब भीमराव आंबेडकर के परिनिर्वाण दिवस पर नोएडा में बड़ी सभा करने की तैयारी कर रही हैं, वहीं दूसरी ओर आजाद समाज पार्टी के अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद ने मुजफ्फरनगर से मिशन–2027 की आधिकारिक शुरुआत कर दी है। दोनों के कदम साफ दिखा रहे हैं कि पश्चिमी यूपी की सियासत में मुकाबला सीधा और दिलचस्प होने वाला है।
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चंद्रशेखर का ‘संवैधानिक अधिकार बचाओ और भाईचारा बनाओ’ अभियान (Mayawati vs Chandrashekhar)
संविधान दिवस पर चंद्रशेखर आजाद ने मुजफ्फरनगर के जीआईसी ग्राउंड में विशाल रैली की, जिसमें सहारनपुर, मेरठ और मुरादाबाद मंडल के कार्यकर्ता जुटे। आजाद ने लोगों को संविधान की शपथ दिलाने की बात कही और घोषणा की कि आने वाले समय में उनकी पार्टी पूरे यूपी में 50 लाख लोगों को ‘संवैधानिक अधिकार बचाओ और भाईचारा बनाओ’ मुहिम के तहत शपथ दिलाएगी।
मुजफ्फरनगर की यह रैली केवल भीड़ जुटाने का प्रयास नहीं थी, बल्कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश को एक स्पष्ट सियासी संदेश देने की कवायद थी कि चंद्रशेखर अब प्रदेश की राजनीति में केवल चेहरा नहीं, बल्कि शक्ति–प्रदर्शन करने वाली ताकत बनकर उभरना चाहते हैं।
पश्चिमी यूपी का चुनावी समीकरण, और मायावती से सीधी टक्कर
मायावती पिछले कुछ समय से काफी एक्टिव दिख रही हैं। कांशीराम के परिनिर्वाण दिवस पर लखनऊ में बड़ी रैली करने के बाद अब वे नोएडा से पश्चिम यूपी का गणित दुरुस्त करना चाहती हैं। लेकिन इससे पहले ही चंद्रशेखर आजाद ने पश्चिम यूपी में अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए मैदान में उतरकर मायावती के मजबूत क्षेत्रों पर सेंध लगाने की रणनीति बना ली है।
चंद्रशेखर और मायावती दोनों जाटव समाज से आते हैं और दोनों की राजनीतिक जड़ें पश्चिम यूपी में ही हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि मायावती की पकड़ अब पहले जैसी मजबूत नहीं रही, खासकर मुस्लिम वोट उनके हाथों से लगातार खिसकते जा रहे हैं। 2024 के चुनाव ने तो साफ कर दिया कि बसपा का दलित-मुस्लिम समीकरण अब उतना असरदार नहीं रह गया।
दलित–मुस्लिम समीकरण: चंद्रशेखर की सबसे बड़ी चाल
नगीना लोकसभा सीट से चंद्रशेखर की जीत इस बात का संकेत है कि दलित-मुस्लिम वोट का फॉर्मूला अभी भी जमीन पर असर दिखाता है। मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, मेरठ, मुरादाबाद, बिजनौर, आगरा, फिरोजाबाद और गाजियाबाद जैसे जिलों में दलित और मुस्लिम मतदाता मिलकर किसी भी चुनाव को पलट सकते हैं।
कांशीराम का फॉर्मूला भी यही था दलित, मुस्लिम और अति पिछड़ी जातियों का साथ। आज इस समीकरण को नए अंदाज में आजमाने की कोशिश चंद्रशेखर कर रहे हैं। दलित युवाओं में उनकी पकड़ पहले ही मजबूत है, अब वे मुस्लिम मतदाताओं को भी अपने साथ जोड़ना चाहते हैं।
सियासत का बड़ा सवाल
अब सबसे बड़ा सवाल यही है कि पश्चिम यूपी के इस बदलते राजनीतिक परिदृश्य में कौन आगे निकलता है मायावती, जो वर्षों से दलित राजनीति की सबसे बड़ा चेहरा रही हैं, या चंद्रशेखर, जो तेजी से नई पीढ़ी के आइकॉन बनकर उभर रहे हैं? मुजफ्फरनगर की रैली ने साफ कर दिया है कि मिशन–2027 की लड़ाई गर्म हो चुकी है और पश्चिम यूपी इस मुकाबले का सबसे बड़ा मैदान बनने जा रहा है।
