Mj Akbar Diplomatic Comeback: भारत के प्रसिद्ध पत्रकार और राजनेता एमजे अकबर एक बार फिर सुर्खियों में हैं। कभी पत्रकारिता में अपने तीखे लेखन के लिए पहचाने जाने वाले अकबर, फिर मीटू विवादों में उलझे और अब एक बार फिर सरकार के कूटनीतिक मिशन का हिस्सा बनकर वैश्विक राजनीति में वापसी कर रहे हैं। नरेंद्र मोदी सरकार ने उन्हें सात बहुदलीय प्रतिनिधिमंडलों में से एक में शामिल किया है, जो पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के खिलाफ भारत का पक्ष अंतरराष्ट्रीय मंच पर रखेंगे। यह न केवल उनकी वापसी का संकेत है, बल्कि एक बार फिर उनके अनुभव और विशेषज्ञता को राष्ट्रीय हित में उपयोग में लाने की रणनीति भी है।
पत्रकारिता से मिली पहचान- Mj Akbar Diplomatic Comeback
एमजे अकबर का नाम भारतीय पत्रकारिता के उस दौर से जुड़ा है जब अखबारों की धार लेखनी से तय होती थी। उन्होंने 1970 के दशक में संडे और एशिया जैसी पत्रिकाओं में अपने विचारों से पाठकों को प्रभावित किया। द टेलीग्राफ और एशियन एज जैसे प्रमुख अखबारों की स्थापना कर उन्होंने पत्रकारिता को नई दिशा दी। उनकी लिखी किताबें – नेहरू: द मेकिंग ऑफ इंडिया और कश्मीर: बिहाइंड द वेल – आज भी इतिहास और राजनीति के गहन अध्ययनों में मानी जाती हैं।
राजनीति में उठापटक
अकबर ने 1989 में कांग्रेस के टिकट पर बिहार के किशनगंज से संसद में कदम रखा, लेकिन उनका राजनीतिक सफर स्थिर नहीं रहा। 2014 में उन्होंने भारतीय जनता पार्टी का दामन थामा और 2015 में राज्यसभा पहुंचे। 2016 में उन्हें विदेश राज्य मंत्री बनाया गया, जहां उन्होंने भारत की विदेश नीति को मज़बूती से अंतरराष्ट्रीय मंच पर प्रस्तुत किया। लेकिन उनका करियर 2018 में एक बड़े संकट में घिर गया।
मीटू विवाद की छाया
मीटू आंदोलन के दौरान कई महिला पत्रकारों ने उन पर यौन उत्पीड़न के गंभीर आरोप लगाए। इनमें पत्रकार प्रिया रमानी भी शामिल थीं, जिनके खिलाफ अकबर ने मानहानि का मुकदमा दायर किया। हालांकि, अदालत ने रमानी को बरी कर दिया और इस फैसले के खिलाफ अकबर ने दिल्ली हाईकोर्ट में अपील की हुई है। इस विवाद के चलते उन्हें मंत्री पद छोड़ना पड़ा और वे राजनीतिक रूप से हाशिए पर चले गए।
नई भूमिका में वापसी
अब जब मोदी सरकार ने उन्हें विदेशों में भारत का पक्ष रखने वाले प्रतिनिधिमंडल में शामिल किया है, यह उनकी कूटनीतिक समझ और अंतरराष्ट्रीय मामलों में पकड़ को फिर से मान्यता मिलने जैसा है। यह प्रतिनिधिमंडल यूरोप के प्रमुख देशों—यूके, फ्रांस, जर्मनी, इटली और डेनमार्क—का दौरा करेगा और भारत के खिलाफ आतंकवाद को लेकर पाकिस्तान की भूमिका को उजागर करेगा।
पाकिस्तान पर सख्त रवैया
एमजे अकबर ने हालिया लेखों और सोशल मीडिया पोस्ट्स में पाकिस्तान को आतंकवाद का संरक्षक बताया है। उनकी चर्चित किताब टिंडरबॉक्स: द पास्ट एंड फ्यूचर ऑफ पाकिस्तान में उन्होंने पड़ोसी देश की वैचारिक संरचना का विश्लेषण किया है। हाल ही में उन्होंने लिखा, “प्रधानमंत्री मोदी ने आतंकवाद पर निर्णायक कदम उठाकर पाकिस्तान को स्पष्ट संदेश दिया है।”
क्या यह वापसी स्थायी होगी?
एमजे अकबर की यह नई भूमिका यह संकेत देती है कि सरकार फिर से उनके अनुभव का लाभ उठाना चाहती है। हालांकि, मीटू विवाद की परछाई अभी पूरी तरह से हटी नहीं है। सवाल यह है कि क्या जनता और राजनीतिक मंच उन्हें दोबारा स्वीकार करेगा? आने वाले समय में यह स्पष्ट होगा कि यह वापसी उनके लिए सिर्फ एक मिशन तक सीमित रहती है या वे पूरी तरह से सार्वजनिक जीवन में फिर से सक्रिय होते हैं।