Political news: बिहार और उत्तर प्रदेश की राजनीति में इन दिनों जैसे भयंकर सियासी तूफान आ गया है। एक तरफ, बिहार के बाहुबली नेता अनंत सिंह ने जेल से ही मोकामा सीट पर ऐतिहासिक जीत दर्ज की, तो दूसरी तरफ, उत्तर प्रदेश के चर्चित नेता आजम खान और उनके बेटे को कोर्ट ने 7-7 साल की सजा सुनाई। इन घटनाओं ने न केवल दोनों राज्यों की राजनीति को फिर से गर्म कर दिया है, बल्कि यह सवाल भी खड़ा कर दिया है कि क्या राजनीतिक ताकत और कानून के बीच की लाइन हमेशा इतनी धुंधली होती है? क्या जेल में बंद रहते हुए भी कोई नेता विधानसभा की कुर्सी पर बैठ सकता है? और क्या सजा के बाद भी नेता बिना सजा भुगते अपनी राजनीतिक पकड़ बनाए रख सकते हैं? आइए, जानते हैं इन दोनों घटनाओं के भीतर की राजनीति और कानून के जटिल पहलुओं को।
अनंत सिंह की जेल से चुनावी जीत: एक नई कहानी
बिहार के बाहुबली नेता अनंत सिंह ने मोकामा विधानसभा सीट पर अपनी ताकत का अहसास कराते हुए अपनी प्रतिद्वंदी वीणा देवी को 28,206 वोटों से हराया। लेकिन यह जीत किसी साधारण चुनावी परिणाम से कहीं अधिक है। अनंत सिंह इस समय दुलारचंद यादव की हत्या के आरोप में जेल में बंद हैं। इस विवादास्पद हत्या के मामले ने अनंत सिंह को बिहार की राजनीति के एक विवादित और प्रभावशाली नेता के रूप में स्थापित किया है।
जीत की नहीं थी उम्मीद- Political news
कई राजनीतिक विश्लेषक मान रहे थे कि दुलारचंद यादव की कथित हत्या का आरोप अनंत सिंह के लिए बड़ा नुकसान साबित होगा, लेकिन तारतार गांव में इसका असर लगभग नगण्य दिखा। हाँ, गांव के आसपास के कुछ बूथों पर इस मामले की हलचल जरूर महसूस की गई। उदाहरण के तौर पर, बूथ नंबर 226 पर जहां अनंत सिंह को सिर्फ 206 वोट मिले, वहीं वीणा देवी को 483 मत हासिल हुए। इसी तरह बूथ नंबर 227 पर अनंत सिंह को 103 वोट मिले जबकि वीणा देवी को 635 वोट पड़े।
इसके बावजूद, पूरे तारतार गांव में अनंत सिंह की बढ़त साफ दिखाई दी। दिलचस्प बात यह रही कि पीयूष प्रियदर्शी को पूरे गांव से सिर्फ 15 वोट ही मिल सके। गांव के कई मतदाताओं ने वोटिंग के बाद साफ कहा,“हम आंकड़ों और जोड़-घटाव में नहीं पड़े, हमें अनंत भैया का काम दिखता है और उसी पर हमने फैसला किया।”
क्या शपथ ग्रहण समारोह में होंगे शामिल
चुनाव परिणाम के बाद अनंत सिंह के समर्थक खुशी के जश्न में डूबे हुए हैं, वहीं बिहार की राजनीति में एक बड़ा सवाल उठ खड़ा हुआ है: क्या अनंत सिंह जेल में रहते हुए विधायक की शपथ ले सकते हैं? क्या वे विधानसभा में अपनी भूमिका निभा सकते हैं? यह सवाल इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि अनंत सिंह के खिलाफ हत्या का आरोप गंभीर है और पुलिस ने अभी तक आरोप पत्र भी दाखिल नहीं किया है।
कानूनी दृष्टिकोण से देखें तो, चुनाव जीतने से अनंत सिंह को शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होने का अधिकार अपने आप नहीं मिल जाता। चूंकि वे न्यायिक हिरासत में हैं, उन्हें अदालत की अनुमति मिलने पर ही जेल से बाहर आ सकते हैं। बिना न्यायिक आदेश के वे अपनी विधायकी के कर्तव्यों को निभाने के लिए जेल से बाहर नहीं आ सकते।
अदालतें कभी-कभी ऐसे मामलों में अस्थायी राहत देती हैं, जिससे निर्वाचित प्रतिनिधि शपथ ग्रहण कर सकें। लेकिन यह राहत पूरी तरह से अदालत के विवेक पर निर्भर होती है। इस मामले में अनंत सिंह के लिए राहत मिलने के बाद भी उन्हें विधायक के रूप में काम करने के लिए जमानत की आवश्यकता होगी। और अगर जमानत नहीं मिलती है, तो उनका विधायक बनना और विधानसभा में शामिल होना मुश्किल हो सकता है।
आजम खान और उनके बेटे की सजा: यूपी की राजनीति का उलझा हुआ मामला
वहीं, उत्तर प्रदेश में सपा नेता आजम खान के खिलाफ एक और बड़ा घटनाक्रम सामने आया है। रामपुर कोर्ट ने दो पैन कार्ड रखने के मामले में आजम खान और उनके बेटे अब्दुल्ला आजम को दोषी करार देते हुए 7-7 साल की सजा सुनाई है। इस सजा के बाद दोनों को जेल भेज दिया गया है।
यह मामला 2019 का है, जब भाजपा विधायक आकाश सक्सेना ने आजम खान और उनके बेटे पर दो पैन कार्ड रखने का आरोप लगाया था। सिविल लाइंस कोतवाली थाने में इस मामले की रिपोर्ट दर्ज हुई थी, और अब इस मामले में कोर्ट ने दोनों को दोषी करार दिया। अदालत का कहना था कि आजम खान और अब्दुल्ला आजम ने धोखाधड़ी और फर्जी दस्तावेजों के जरिए यह पैन कार्ड बनाए थे।
सपा नेता आजम खान, जो पिछले कुछ समय से जेल में थे, हाल ही में सीतापुर जेल से जमानत पर बाहर आए थे। अक्टूबर 2023 में वे सीतापुर जेल में बंद थे, लेकिन सितंबर 2025 में उन्हें जमानत मिली और वे बाहर आए। हालांकि, खुली हवा में सांस लेने का उनका समय बहुत छोटा रहा। एक महीने से भी कम समय बाद, उन्हें दो पैन कार्ड के मामले में दोषी करार देते हुए फिर से सजा सुनाई गई है।
क्या कहता है कानून?
आजम खान के खिलाफ यह सजा उनके लिए एक और राजनीतिक और कानूनी चुनौती लेकर आई है। हालांकि, यह सजा ज्यादा लंबी नहीं है, लेकिन उनके लिए यह एक बड़ी झटका साबित हो सकती है। उनके खिलाफ पहले भी कई आपराधिक मामले दर्ज हैं, जिनमें से कुछ में उन्हें सजा मिल चुकी है और कुछ में वे बरी हो चुके हैं।
यहां यह सवाल भी उठता है कि क्या आजम खान और उनके बेटे अब्दुल्ला को जमानत मिल सकती है? जैसा कि पहले बताया गया, अदालतें इस तरह के मामलों में जमानत देने से पहले बहुत सतर्क रहती हैं, और चूंकि यह मामला गंभीर अपराध से जुड़ा है, इसलिए उनके लिए जमानत मिलना आसान नहीं होगा।
राजनीतिक और कानूनी पहलू
इन दोनों मामलों ने बिहार और उत्तर प्रदेश की राजनीति को एक नई दिशा में खड़ा कर दिया है। एक ओर जहां अनंत सिंह की जेल में रहकर चुनाव जीतने की घटना राजनीति के नक्सलवादी और बाहुबली प्रभाव की मिसाल बन रही है, वहीं दूसरी ओर आजम खान की सजा और उनके खिलाफ दर्ज मामलों ने उन्हें उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक विवादित और जटिल चेहरा बना दिया है।
