Rekha Gupta Attacked: दिल्ली की मौजूदा मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता पर जनसुनवाई के दौरान हुए हमले ने राजनीतिक गलियारों में हलचल पैदा कर दी है। बीजेपी इस घटना को एक गंभीर साजिश मान रही है और इसे लोकतांत्रिक मूल्यों पर हमला बता रही है। लेकिन इसी मुद्दे पर लोगों को साल 2019 का वह वाकया भी याद आ रहा है, जब दिल्ली के तत्कालीन मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को सरेआम थप्पड़ मारा गया था, और उस वक्त बीजेपी का रुख कुछ अलग ही था।
ऐसे में यह सवाल उठना लाज़मी है,क्या राजनीतिक हमलों पर पार्टियों की प्रतिक्रिया उनके दलगत हितों के हिसाब से तय होती है?
रेखा गुप्ता पर हमला: बीजेपी का सख्त रुख (Rekha Gupta Attacked)
दरअसल बुधवार सुबह दिल्ली की सीएम रेखा गुप्ता अपने साप्ताहिक ‘जनसुनवाई’ कार्यक्रम के दौरान लोगों से मिल रही थीं, तभी एक व्यक्ति ने उन्हें अचानक धक्का देने की कोशिश की और कथित तौर पर थप्पड़ मार दिया। बीजेपी के तमाम नेताओं ने इस घटना की कड़ी निंदा की और इसे एक राजनीतिक साजिश बताया।
दिल्ली बीजेपी अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा ने कहा, “मुख्यमंत्री जनता से सीधे संवाद कर रही थीं, तभी एक व्यक्ति ने उनका हाथ पकड़कर खींचने की कोशिश की। यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बाधित करने की कोशिश है।” वहीं मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा ने इसे “विपक्ष की साजिश” बताया और कहा कि “रेखा गुप्ता दिन-रात दिल्ली के लोगों के लिए काम कर रही हैं, और यही कुछ लोगों को रास नहीं आ रहा।”
भाजपा सांसद रेखा शर्मा ने कहा, “हमला चौंकाने वाला है और इसके पीछे उन लोगों का हाथ हो सकता है जो मुख्यमंत्री की लोकप्रियता से परेशान हैं।” सांसद कमलजीत सहरावत ने भरोसा जताया कि रेखा गुप्ता और मजबूती से काम करती रहेंगी।
लेकिन केजरीवाल पर थप्पड़ में क्यों था बीजेपी का अलग स्वर?
अब जरा 2019 के उस मामले को याद करें, जब अरविंद केजरीवाल मोती नगर में रोड शो कर रहे थे और एक व्यक्ति ने मंच पर चढ़कर उन्हें थप्पड़ जड़ दिया था। आम आदमी पार्टी ने इसे सीधे तौर पर बीजेपी की साजिश बताया था। लेकिन बीजेपी ने इसे सिरे से खारिज करते हुए, केजरीवाल को ही निशाने पर ले लिया।
बीजेपी नेता विजेंद्र गुप्ता ने उस वक्त कहा था कि “केजरीवाल सस्ती सहानुभूति बटोरना चाहते हैं और हर घटना को राजनीतिक रंग देने की कोशिश करते हैं।” वहीं कुछ अन्य नेताओं ने यह तक कह दिया कि “जो बोया है, वही काट रहे हैं।”
दिलचस्प बात यह रही कि हमलावर सुरेश चौहान, पहले आम आदमी पार्टी का समर्थक रह चुका था और बाद में पार्टी से नाराजगी के चलते ऐसा कदम उठाया। पुलिस जांच में भी कोई राजनीतिक साजिश सामने नहीं आई। लेकिन बीजेपी की ओर से उस हमले पर कोई विशेष संवेदनशीलता नहीं दिखाई गई, उल्टा केजरीवाल के बयानों पर तंज कसे गए।
सवाल: क्या सियासत में हमलों पर भी दलगत सोच हावी?
रेखा गुप्ता पर हुए हमले के बाद जिस तरह बीजेपी के नेताओं ने एक सुर में इस घटना को “लोकतंत्र पर हमला”, “विपक्ष की साजिश” और “जनसुनवाई को बाधित करने की कोशिश” बताया, वह बिलकुल वैसी ही प्रतिक्रिया है जैसी किसी भी लोकतांत्रिक देश में अपेक्षित होती है। लेकिन जब ठीक ऐसी ही घटना 2019 में अरविंद केजरीवाल के साथ हुई थी, तब बीजेपी की प्रतिक्रिया कहीं ज्यादा व्यंग्यात्मक और आलोचनात्मक रही।
विशेषज्ञ मानते हैं कि यह राजनीतिक दलों के दोहरे मापदंड की ओर इशारा करता है। लोकतंत्र में हिंसा या हमला चाहे किसी पर भी हो, उसकी निंदा निष्पक्ष होनी चाहिए। वरना इससे राजनीतिक माहौल और ज्यादा विषाक्त हो सकता है।
सुरक्षा इंतजामों पर सवाल जस के तस
इन दोनों घटनाओं ने एक और बड़ी समस्या की ओर इशारा किया है कि राजधानी दिल्ली में सुरक्षा व्यवस्था की नाकामी। चाहे केजरीवाल हों या रेखा गुप्ता, दोनों ही मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए हमलों का शिकार हुए, जो दर्शाता है कि वीआईपी सुरक्षा के नाम पर सिर्फ औपचारिकताएं निभाई जा रही हैं।
राजनीति से परे, यह सवाल बेहद जरूरी है कि क्या दिल्ली पुलिस और सुरक्षा एजेंसियों ने ऐसी घटनाओं से कोई सबक सीखा है? अगर नहीं, तो अगला हमला किस पर होगा, यह किसी को नहीं पता।