Samrat Chaudhary: बिहार के उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी इन दिनों राजनीति की सुर्खियों में हैं। भाजपा के बड़े चेहरे माने जाने वाले वे अक्सर प्रधानमंत्री मोदी या पार्टी अध्यक्ष जे.पी. नड्डा की सभाओं में अगली पंक्ति में बैठे दिखते हैं। कुल मिलाकर उनकी छवि मजबूत मानी जाती है और कई बीजेपी समर्थक उन्हें मुख्यमंत्री पद का दावेदार भी बताते हैं। लेकिन इन हालिया दिनों में उन पर लगे गंभीर आरोपों ने उनके राजनीतिक भविष्य और छवि पर तूल पकड़ लिया है।
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आरोपों की लंबी श्रंखला- Samrat Chaudhary
सम्राट चौधरी पर समय-समय पर कई तरह के आरोप लगाए जाते रहे हैं जैसे फर्जी दस्तावेज, हत्या में संलिप्तता, नाम-उम्र में फेरबदल और शैक्षिक प्रमाणपत्रों की वैधता पर सवाल।
फर्जी मार्कशीट और डिग्री के सवाल
आपको बता दें, प्रशांत किशोर ने एक आरोप यह लगाया कि चौधरी ने कभी मैट्रिक पास नहीं किया। उनका दावा है कि बिहार स्कूल एग्जामिनेशन बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि “सम्राट कुमार मौर्य” नाम से उन्होंने परीक्षा दी थी जिसमें 234 अंक मिले थे और वह फेल हुए। किशोर यह भी कहते हैं कि किसी प्रकार से बाद में चौधरी ने अमेरिकी कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी से डी.लिट. डिग्री का दावा कर लिया जबकि मैट्रिक पास किए बिना यह संभव नहीं हो सकता।
तारापुर हत्याकांड का आरोप
इतना ही नहीं, प्रशांत किशोर का आरोप है कि 1995 के तारापुर हत्याकांड में करीब 6–7 लोगों की हत्या हुई थी, और तब सम्राट चौधरी का नाम (तब वे राकेश कुमार / मौर्य के नाम से थे) आरोपी के रूप में सामने आया था। उस समय उन्हें नाबालिग बताया गया और कोर्ट में हलफनामा देकर रिहा कर दिया गया। किशोर का तर्क है कि उन्होंने अपने बचाव के लिए उम्र बदलने या दावे बदलने की कोशिश की।
शिल्पी गौतम मामला
एक अन्य आरोप है कि शिल्पी गौतम हत्याकांड में चौधरी का नाम संदिग्ध अभियुक्तों में था। कहते हैं कि जांच के दौरान उन्हें सैंपल देने या जांच में सहयोग करने की पहल नहीं की गई। जबकि अदालत ने उन्हें बरी कर दिया था, आलोचक कहते हैं कि उनकी भूमिका साफ नहीं हुई।
नाम और उम्र में फेरबदल
वहीं, तेजस्वी यादव ने आरोप लगाया कि सम्राट चौधरी ने अलग-अलग चुनावों में अलग-अलग जन्म प्रमाण पत्र पेश किए हैं। 2005 में 26 वर्ष, 2010 में 28 वर्ष और 2020 में 51 वर्ष बताई गई। इसी तरह, नाम परिवर्तित करने की आदत भी उन पर आरोपों में आई है मूल नाम सम्राट कुमार मौर्य, फिर राकेश कुमार, अंततः सम्राट चौधरी। तेजस्वी यादव का कहना है कि यह सब सुविधा और लाभ लेने के लिए किया गया।
हलफनामों और चुनावी दावों की पड़ताल
आपको जनक्री हैरानी होगी कि सम्राट चौधरी के विधानसभा चुनावी हलफनामों में ये विवरण देखने को मिलते हैं:
- 2005: चुनावी नाम अशोक कुमार, उम्र 26 वर्ष, शिक्षा सातवीं पास
- 2010: नाम दिया “सम्राट चौधरी / राकेश कुमार”, उम्र 28 वर्ष, शिक्षा सातवीं पास
- 2020: उम्र 51 वर्ष बताई गई, शिक्षा विवरण में कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी से D.Litt सहित अन्य संस्थानों का उल्लेख
इन हलफनामों में भारी असंगति दिखाई देती है इच्छा के अनुसार नाम, उम्र और शैक्षिक विवरण बदलते रहे हैं।
सम्राट चौधरी की प्रतिक्रिया और बचाव
अलग‑अलग आरोपों के सामने आने पर सम्राट चौधरी ने अपनी सफाई में कहा है कि ये सभी आरोप दुर्भावनापूर्ण हैं। उनका कहना है कि 1995 में उन्हें और उनके परिवार के सदस्यों को राजनीतिक प्रतिशोध के तहत जेल में बंद किया गया था। उन्होंने दावा किया कि उस समय पुलिस और सरकार द्वारा हो रही कार्रवाई अन्यायपूर्ण थी।
शिल्पी गौतम हत्याकांड पर उन्होंने कहा कि इसकी जांच सीबीआई ने पूरी तरह से की है और उनका नाम आरोपी सूची में नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि प्रशांत किशोर पर 241 करोड़ रुपये की कमाई और उसकी जवाबदेही की बात करनी चाहिए, बजाय उनकी छवि पर वार करने के।
राजनीतिक पृष्ठभूमि और महत्व
वहीं, सम्राट चौधरी के राजनीतिक सफर की बात करें, तो उनके राजनीतिक सफर की शुरुआत उनके परिवार से है। उनके पिता, शकुनी चौधरी, समता पार्टी से जुड़े एक कुशवाहा समाज के बड़े नेता रहे। राजनीति में कदम रखते ही सम्राट चौधरी ने कई मोड़ देखे आरजेडी से शुरुआत, जेडीयू से समर्थन, और अंततः बीजेपी में शामिल हो जाना।
बीजेपी ने 2017 में उन्हें पार्टी में शामिल किया और जल्द ही उन्हें प्रदेश अध्यक्ष बनाया। छह साल बाद उपमुख्यमंत्री पद मिला। उनके सामने अभी एक बड़ा राजनीतिक अवसर है पार्टी उन्हें उत्तराधिकारी मुख्यमंत्री के रूप में देख सकती है। कुर्शवाहा (कोइरी) समुदाय, जिसकी आबादी बिहार में लगभग 4.2% है, उन्हें एक सामाजिक आधार देता है। कुर्मी-कोइरी वोट बैंक को साधने में उनकी भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है।
आज की चुनौतियाँ और आगे का रास्ता
इन तमाम आरोपों और विवादों के बीच सम्राट चौधरी का राजनीतिक भविष्य परीक्षण में है। यदि ये आरोप सही ठहरते हैं, तो उन्हें पार्टी पदों तथा जनता की विश्वसनीयता खोनी पड़ सकती है। दूसरी ओर, अगर वे इन आरोपों का सफल बचाव कर लेते हैं, तो उनका सियासी कद और भी मजबूत हो सकता है।