पॉलिटिकल पार्टियों के पास कहां से आता है इलेक्शन कैंपेन का पैसा?

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चुनावी मौसम में अखबार, टीवी और होर्डिंग्स पर पार्टियों और प्रत्याशियों के विज्ञापनों की भरमार रहती है. जगह जगह रैलियों से परचार और विज्ञापन दिख जाते हैं महंगी-महंगी गाडियां होती हैं. किन सवाल ये है कि इन पार्टियों के पास ये पैसा आख़िर आता कहां से है.

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लेकिन पिछले महीने ही एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स की एक रिपोर्ट आई, जिसमें कहा गया कि देश की पाँच राष्ट्रीय पॉलिटिकल पार्टियों को जो कुछ पैसा मिला, उसमें से 53 फ़ीसदी रकम का स्रोत पता नहीं था.

बेनामी चंदे की भरमार

आम तौर पर पार्टियां स्वैच्छिक दान, क्राउड फंडिंग, कूपन बेचना, पार्टी का साहित्य बेचना, सदस्यता अभियान और कॉर्पोरेट चंदे से पैसे जुटाती हैं. लेकिन पिछले महीने ही एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स की एक रिपोर्ट आई, जिसमें कहा गया कि देश की पाँच राष्ट्रीय पॉलिटिकल पार्टियों को जो कुछ पैसा मिला, उसमें से 53 फ़ीसदी रकम का स्रोत पता नहीं था, यानी ये अज्ञात स्रोतों से थी.

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पार्टियों की 36 फ़ीसदी आय ज्ञात स्रोतों से आई थी और सिर्फ 11 फ़ीसदी रकम ही मेंबरशिप फीस आदि से जुटाई गई.यानी पार्टियों के खजाने में बेनामी चंदे की भरमार है.

चुनावी चंदे में मोदी सरकार का बदलाव

चुनावी चंदे में पारदर्शिता के नाम पर मोदी सरकार ने राजनैतिक चंदे की प्रक्रिया में तीन बड़े बदलाव किए. पहला, अब राजनैतिक पार्टियां विदेशी चंदा ले सकती हैं. दूसरे, कोई भी कंपनी कितनी भी रकम, किसी भी राजनीतिक पार्टी को चंदे के रूप में दे सकती है. और तीसरे, कोई भी व्यक्ति या कंपनी गुप्त रूप से चुनावी बॉन्ड के जरिए किसी पार्टी को चंदा दे सकती है.

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क्या होता है इलेक्टोरल बांड

दरअसल भारत सरकार ने साल 2018 में एक प्रेस रिलीज़ करते हुए पार्टियों की फंडिंग को लेकर कुछ नए नियम लाई थी जिससे पार्टियों और कंपनियों के बीच लेन देन में पारदर्शिता बनी रहे. इस प्रेस रिलीज़ में कहा गया था कि:-

सरकार ने देश में राजनीतिक चंदे की प्रणाली को साफ करने के लिए चुनावी बांड की योजना को अधिसूचित किया है। योजना की व्यापक विशेषताएं नीचे दी गई हैं:

  • इलेक्टोरल बांड प्रॉमिसरी नोट की प्रकृति का बियरर इंस्ट्रूमेंट और ब्याज मुक्त बैंकिंग इंस्ट्रूमेंट होगा. भारत का नागरिक या भारत में निगमित निकाय बांड खरीदने के लिए पात्र होगा.
  • भारतीय स्टेट बैंक (SBI) की निर्दिष्ट शाखाओं से `1,000, `10,000, `1,00,000, `10,00,000 और `1,00,00,000 के गुणकों में किसी भी मूल्य के लिए चुनावी बांड जारी/खरीदे जा सकते हैं.
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  • क्रेता को केवल चुनावी बॉण्ड खरीदने की अनुमति होगी सभी मौजूदा केवाईसी मानदंडों की पूर्ति और बैंक खाते से भुगतान करके. इसमें प्राप्तकर्ता का नाम नहीं होगा. चुनावी बांड की अवधि केवल 15 दिनों की होगी, जिसके दौरान इसका उपयोग जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 (1951 का 43) की धारा 29ए के तहत पंजीकृत राजनीतिक दलों को चंदा देने के लिए किया जा सकता है और जो प्रति व्यक्ति कम से कम एक प्राप्त करता है. लोक सभा या किसी विधान सभा के पिछले आम चुनाव में डाले गए मतों का प्रतिशत.
  • योजना के तहत बांड खरीद के लिए उपलब्ध होंगे जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर के महीनों में प्रत्येक 10 दिनों की अवधि, जैसा केंद्र सरकार द्वारा निर्दिष्ट किया जा सकता है. लोक सभा के आम चुनाव के वर्ष में केंद्र सरकार द्वारा 30 दिनों की एक अतिरिक्त अवधि निर्दिष्ट की जाएगी.
  • बांड को एक पात्र राजनीतिक दल द्वारा प्राधिकृत बैंक के साथ नामित बैंक खाते के माध्यम से ही भुनाया जाएगा.

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घटा दी गयी नकद चंदे की सीमा

बेनामी नकद चंदे की सीमा 20 हज़ार से घटाकर दो हज़ार रुपये कर दी गई है, लेकिन सवाल ये है कि नकद बेनामी चंदा लेने की सीमा तय किये बिना ये उपाय किस काम का है? राजनीतिक दलों के विदेशी कंपनियों से चंदा लेने पर क्या चुनावों में दूसरे देशों का दखल बढ़ने की संभावना नहीं है?

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