भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में हुई गिरफ्तारी पर सर्वोच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र सरकार से गुरुवार तक जवाब देने को कहा है। न्यायालय ने इस विषय पर महाराष्ट्र सरकार को नोटिस भी जारी किया है। यही नहीं, सामाजिक कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज की ट्रांजिट रिमांड पर न्यायालय ने रोक लगा दी है। वहीं गिरफ्तार हुए पांच सामाजिक कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी पर न्यायालय ने सभी आरोपियों को 5 सितंबर तक घर पर नजरबंद रखने का आदेश दिया है। न्यायालय ने अंतरिम आदेश जारी करते हुए महाराष्ट्र सरकार से गुरुवार तक मामले पर जवाब मांगा है। अगली सुनवाई 6 सितंबर को होगी।
उधर, गिरफ्तार किये गये पांच कार्यकर्ताओं में से तीन को बीती देर रात पुणे लाया गया है जिन्हें आज स्थानीय अदालत में पेश होना था। एनएचआरसी ने भी भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले में पांच सामाजिक कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी पर महाराष्ट्र सरकार को नोटिस भेज दिया है। इसके अलावा सरकार को इस विषय पर चार सप्ताह में कोर्ट के सामने रिपोर्ट देने का आदेश जारी किया गया है।
बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या की साजिश के सिलसिले में पुणे पुलिस ने मंगलवार को देश के छह राज्यों में छापे मारकर पांच वामपंथी विचारकों की गिरफ्तारी की। भीमा कोरे गांव हिंसा की जांच कर रही पुणे पुलिस ने सुबह मुंबई, दिल्ली, हैदराबाद औऱ रांची में एक साथ छापेमारी थी।
सुप्रीम कोर्ट के वकील प्रशांत भूषण गिरफ्तार हुए वामपंथी विचारकों की गिरफ्तारी को चुनौती देने की बात कही थी। सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की जानकारी प्रशांत भूषण ने ट्वीट कर दी। उन्होंने लिखा कि ‘फासीवादी फन अब खुल कर सामने आ गए हैं। यह आपातकाल की स्पष्ट घोषणा है। वे सरकार के खिलाफ अधिकारों के मुद्दों पर बोलने वाले किसी भी व्यक्ति के पीछे पड़ रहे हैं। वे किसी भी असहमति के खिलाफ हैं।‘
इस मामले को आज शात सुनवाई के समय रोमिला थापर, प्रभात पटनायक, सतीश देशपांडे, माया डार्नल और एक अन्य कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज गौतम नवलाखा की गिरफ्तारी के खिलाफ उच्चतम न्यायालय पहुंचे।
पुणे पुलिस के मुताबिक, सभी पर प्रतिबंधित माओवादी संगठन से लिंक होने का आरोप है। जबकि देश भर के मानवाधिकार कार्यकर्ता इसे सरकार के विरोध में उठने वाली आवाज को दबाने की दमनकारी कार्रवाई बता रहे हैं। बता दें कि मंगलवार को गिरफ्तार हुए लोगों में रांची से फादर स्टेन स्वामी , हैदराबाद से वामपंथी विचारक और कवि वरवरा राव, फरीदाबाद से सुधा भारद्धाज और दिल्ली से सामाजिक कार्यकर्ता गौतम नवलाख शामिल हैं। बता दें एनएचआर ने भी भारत सरकार को इससे संबंधित नोटिस भेजा है।
भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में हुई गिरफ्तारी पर राहुल ने ट्वीट करके कहा, ‘नए भारत में सिर्फ एक ही एनजीओ के लिए स्थान है और उसका नाम है आरएसएस। बाकी सभी एनजीओ बंद कर देने चाहिए। सभी कार्यकर्ताओं को जेल भेज दीजिए और शिकायत करने वाले को गोली मार दीजिए। न्यू इंडिया में आपका स्वागत है।’
इस पर किरण रिजिजू ने ट्वीट करके कहा, ‘पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए माओवादियों से नंबर एक का खतरा बताया था। लेकिन राहुल गांधी माओवादियों का समर्थन कर रहे हैं।’ उन्होंने कहा कि राजनीति से ऊपर राष्ट्र की सुरक्षा है।
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के बाद अब बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) सुप्रीमो मायावती ने इसे दलितों की बात करने वालों की आवाज दबाने की कोशिश करार दिया। उन्होंने कहा कि यह महाराष्ट्र में बीजेपी सरकार की ओर से सत्ता का बेजा इस्तेमाल करने जैसा है। उन्होंने कहा कि सरकार उन आवाजों को दबाना चाहती है जो दलितों के अधिकार का समर्थन करते हैं। माया ने कहा कि ऐसा करके बीजेपी महाराष्ट्र और केंद्र में अपनी सरकारों की असफलता को छिपाने का प्रयास कर रही है। वहीं सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी ने इसके विरोध में दिल्ली के जंतर-मंतर पर प्रदर्शन का ऐलान किया है।
देश भर के बुद्धिजीवी कर रहे समर्थन
लेखिका अरुंधती रॉय ने कहा है, ‘ये गिरफ्तारियां उस सरकार के बारे में खतरनाक संकेत देती हैं जिसे अपना जनादेश खोने का डर है और वह दहशत में आ रही है। बेवजह के आरोप लगाकर देश भर से वकील, कवि, लेखक, दलित अधिकार कार्यकर्ताओं और बुद्धिजीवियों को गिरफ्तार किया जा रहा है। हमें साफ बताइए कि भारत किधर जा रहा है।
क्या है मामला
31 दिसंबर 2017 को एल्गार परिषद के एक कार्यक्रम के बाद पुणे के पास कोरेगांव-भीमा गांव में दलितों और पेशवाओं के बीच हिंसा की घटना की जांच के तहत ये छापे मारे गए। अधिकारियों का कहना है कि बीते कुछ महीनों में दो पत्र हाथ लगा जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और गृह मंत्री राजनाथ सिंह की हत्या की माओवादियों की साजिश का खुलासा हुआ। इस वजह से भी छापेमारी हुई। जा रहा है।’ बता दें कि कोरेगांव-भीमा, दलित इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। वहां करीब 200 साल पहले एक बड़ी लड़ाई हुई थी जिसमें पेशवा शासकों को एक जनवरी 1818 को ब्रिटिश सेना ने हराया था। अंग्रेजों की सेना में भारी संख्या में दलित सैनिक भी शामिल थे। इस लड़ाई की साल गिरह मनाने हर साल यहां हजारों की तादात में दलित इकट्ठे होते हैं और कोरेगांव भीमा से युद्ध स्मारक तक पैदल मार्च कर जाते हैं।