‘हेमकुंड साहिब’ जहां मन्नत पूरी होने पर तीर्थ यात्रा करने आते हैं सिख

history of gurudwara hemkund sahib
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सिखों का इतिहास काफी वृहद है, जिसे किसी भी एक वीडियो में समेटा नहीं जा सकता है. सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में कई ऐसी जगहें हैं जो सीधे तौर पर सिखों के बलिदान और संघर्ष की याद दिलाती है. भारत में भी सिखों से जुड़ी वैसी कई सांस्कृति और ऐतिहासिक स्थले हैं. हिमालय में करीब 15,200 फीट की ऊंचाई पर 7 विशाल चट्टानों के बीच स्थित एक ऐसा ही गुरुद्वारा है, जिसका कनेक्शन मुगलों को धूल चटाने वाले गुरु गोविंद सिंह जी से जुड़ा हुआ है.

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उत्तराखंड के चमोली में स्थित गुरुद्वारा हेमकुंड साहिब सिखों के लिए सबसे पवित्र स्थान है. इसकी खूबसूरती ऐसी है कि किसी का भी मन मोह ले. ऐसा माना जाता है कि यहां सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोविंद सिंह जी ने अपने पूर्व जन्म में ध्यान साधना की थी और वर्तमान जीवन जिया था. अगर हम हेमकुंड का अर्थ समझें तो इसका मतलब होता है बर्फ का कटोरा.

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7 चट्टानों वाली पहाड़ी के बीच ‘हेमकुंड साहिब’

यह गुरुद्वारा दुनिया का सबसे बड़ा गुरुद्वारा है. कहा जाता है कि प्राचीन समय में हेमकुंड साहिब स्थल पर एक मंदिर हुआ करता था, जिसे भगवान राम और लक्ष्मण ने मिलकर बनाया था. उसी स्थान पर गुरु गोविंद साहिब ने कई वर्षों तक तपस्या और पूजा की थी. हेमकुंड की खोज तो वैसे 1930 से ही शुरू हो गयी थी लेकिन इस जगह पर गुरद्वारे का निर्माण करीब 1935-36 तक हुआ. आज के समय में इस स्थल पर सिखों के साथ-साथ हिंदू श्रद्धालुओं की भी भीड़ लगी रहती है. आपको बता दें कि हेमकुंड साहिब की खोज के पीछे कई दिलचस्प कहानियां जुड़ी हुई हैं.

यह स्थान करीब दो सदियों तक गुमनामी में रहा. इस स्थान के बारे में गुरुजी द्वारा रचित दशम ग्रंथ के एक भाग बिचित्र नाटक में बताया गया है. गुरु गोविंद सिंह जी अपने पूर्वजन्म का वृत्तांत ‘बचित्र नाटक’ में इस प्रकार बतलाते हैं-

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अब मैं अपनी कथा बखानो।

तप साधत जिह बिध मुह आनो॥

हेमकुंड परबत है जहां,

सपतसृंग सोभित है तहां ॥

सपतसृंग तिह नाम कहावा।

पांडराज जह जोग कमावा ॥

तह हम अधिक तपसया साधी।

महाकाल कालका अराधी ॥

इह बिध करत तपसिआ भयो।

द्वै ते एक रूप ह्वै गयो ॥

अर्थात् अब मैं अपनी कथा बताता हूँ. जहाँ हेमकुंड पर्वत है और सात शिखर शोभित हैं, सप्तश्रृंग (जिसका) नाम है और जहां पाण्डवराज ने योग साधना की थी, वहाँ पर मैंने घोर तप किया. महाकाल और काली की आराधना की. इस विधि से तपस्या करते हुए द्वैत से एक रूप हो गया, ब्रह्म का साक्षात्कार हुआ. आगे वह कहते है कि ईश्वरीय प्रेरणा से उन्होंने यह जन्म लिया यानी दूसरा जन्म लिया, जिसमें वह गुरु गोविंद सिंह कहलाएं.

गुरु गोबिंद सिंह जी से जुड़ा है हेमकुंड साहिब का इतिहास 

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ध्यान देने वाली बात है कि पंडित तारा सिंह नरोत्तम, हेमकुंड की भौगोलिक स्थिति का पता लगाने वाले पहले सिख थे. दसम ग्रंथ में इस जगह का वर्णन किया गया है…दसम ग्रंथ सिखों का एक पवित्र ग्रंथ है, जिसे सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह जी की वाणी एवं रचनाओं को संग्रहित किया गया है. इस क्षेत्र को बहुत ही पवित्र स्थान का दर्जा दिया गया है. पहाड़ों से घिरी इस जगह पर एक बड़ा तालाब भी है, जिसे लोकपाल कहते हैं. जिसका अर्थ होता है लोगों का निर्वाहक. सात पर्वत चोटियों की चट्टान पर एक निशान साहिब सजा हुआ है. सिख धर्म का पताका यहां गर्व से फहरा रहा है.

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