Raksha Bandhan Story: भाई-बहन के अटूट प्रेम और कर्तव्य का प्रतीक रक्षाबंधन, सिर्फ़ एक धागा नहीं, बल्कि सदियों से चली आ रही कहानियों और मिथकों से जुड़ा एक त्योहार है। यह त्योहार सदियों से भारतीय संस्कृति में महत्वपूर्ण रहा है और हमारी पौराणिक कथाओं में गहराई से निहित है। ये कहानियाँ देवताओं, राजाओं और आम लोगों के बीच के रिश्तों को दर्शाती हैं, जहाँ एक भाई ने अपनी बहन के बुलाने पर उसकी रक्षा करने का वादा निभाया। तो चलिए आपको इस लेख ऐसी ही 5 मिथक कहानियों के बारे में बताते है।
इंद्र और शचि पौराणिक कथा
माना जाता है कि, एक पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार दैत्यों और देवताओं के बीच भयंकर युद्ध चल रहा था। दैत्यों की शक्ति के आगे देवता कमजोर पड़ रहे थे। इंद्र की पत्नी इंद्राणी इस बात से बहुत चिंतित थीं। उन्होंने भगवान विष्णु से प्रार्थना की और भगवान विष्णु ने इंद्राणी को एक पवित्र धागा दिया। इंद्राणी ने वह धागा इंद्र की कलाई पर बांध दिया। इस धागे के प्रभाव से इंद्र को नई शक्ति प्राप्त हुई और उन्होंने दैत्यों पर विजय प्राप्त की। यह घटना रक्षा बंधन के महत्व को भी दर्शाती है, जहाँ एक धागा सुरक्षा और विजय का प्रतीक बन जाता है।
राजा बलि और देवी लक्ष्मी रक्षा का वचन
एक पौराणिक कथा के अनुसार, जब भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर राजा बलि से तीन पग भूमि दान में माँगी थी, तब राजा बलि ने उन्हें सबकुछ दान कर दिया था। भगवान विष्णु राजा बलि की भक्ति से प्रसन्न हुए और उन्होंने बलि को पाताल लोक का राजा बना दिया। इसके बाद भगवान विष्णु वहीं राजा बलि के द्वारपाल बनकर रहने लगे। इस बात से देवी लक्ष्मी बहुत परेशान हो गईं।
तब देवी लक्ष्मी राजा बलि के पास एक साधारण स्त्री के वेश में गईं और उन्होंने बलि की कलाई पर एक धागा बाँध दिया। बलि ने जब उनसे उनकी इच्छा पूछी, तो देवी लक्ष्मी ने अपने पति भगवान विष्णु को वापस माँगा। बलि ने अपनी बहन के रूप में देवी लक्ष्मी की इच्छा पूरी की और भगवान विष्णु को वापस जाने दिया। तभी से यह दिन भाई-बहन के प्रेम और रक्षा के वचन के रूप में मनाया जाने लगा।
द्रौपदी और भगवान कृष्ण धागे का अटूट बंधन
महाभारत की एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार, एक बार श्री कृष्ण की उंगली में चोट लग गई थी और उसमें से खून बह रहा था। द्रौपदी ने अपनी साड़ी का पल्लू फाड़कर उनकी उंगली पर बाँधा। इस स्नेह और सम्मान से अभिभूत होकर, कृष्ण ने द्रौपदी को वचन दिया कि वे हर संकट में उनकी रक्षा करेंगे। द्रौपदी के चीरहरण के समय उन्होंने यह वचन पूरा किया। यह घटना भाई-बहन के पवित्र रिश्ते का प्रतीक बन गई।
रानी कर्णावती और हुमायूँ
मध्यकालीन इतिहास में एक प्रसिद्ध कथा है कि चित्तौड़ की रानी कर्णावती ने गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह से अपने राज्य की रक्षा के लिए मुगल सम्राट हुमायूँ को राखी भेजी थी। हुमायूँ उस समय कहीं और युद्ध में व्यस्त थे, लेकिन रानी की राखी मिलते ही वे तुरंत अपनी सेना के साथ रानी की सहायता और रक्षा के लिए चित्तौड़ पहुँच गए। यह घटना धर्म और सीमाओं से परे भाई-बहन के रिश्ते को दर्शाती है।
संतोषी माता
एक प्रचलित कथा के अनुसार, भगवान गणेश के पुत्र शुभ और लाभ अपनी बुआ से राखी बंधवाने की ज़िद पर अड़े थे क्योंकि उनकी कोई बहन नहीं थी। गणेश ने उनकी इच्छा पूरी करने के लिए एक दिव्य ज्योति से संतोषी माता की रचना की। संतोषी माता ने शुभ और लाभ को राखी बांधी और तब से भाई-बहन के बीच इस अटूट बंधन का महत्व और भी गहरा हो गया।