Kedarnath Dham History: भारत की देवभूमि उत्तराखंड में स्थित केदारनाथ धाम न केवल धार्मिक दृष्टि से, बल्कि रहस्यमय घटनाओं और अनकहे किस्सों के लिए भी चर्चित है। यह स्थान12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है और हिंदू धर्म के अनुयायियों के लिए अत्यंत पवित्र है। यहां आने के लिए श्रद्धालु न केवल भारत से, बल्कि दुनियाभर से आते हैं, जो इस स्थान की आध्यात्मिक शक्ति और अलौकिकता को महसूस करना चाहते हैं। केदारनाथ धाम का मंदिर हर साल 6 महीने के लिए भक्तों के लिए खोला जाता है, और बाकी के महीनों में यह बंद रहता है।
केदारनाथ धाम की कथा- Kedarnath Dham History
महाभारत के युद्ध के बाद पांडवों पर अपने परिजनों की हत्या का आरोप लगा था। इसके लिए भगवान श्री कृष्ण ने पांडवों को भगवान शिव से क्षमा मांगने की सलाह दी थी। पांडवों ने इस सलाह पर अमल किया और भगवान शिव से मिलने का प्रयास किया। लेकिन भगवान शिव पांडवों को क्षमा नहीं करना चाहते थे, इसलिए उन्होंने नंदी के रूप में छिपने का प्रयास किया। वे पहाड़ी इलाकों में मवेशियों के बीच छिप गए थे। लेकिन भीम ने नंदी को पहचान लिया और उनका भेद सबके सामने लाकर उन्होंने भगवान शिव को पांडवों से मिलवाया। इसके बाद भगवान शिव ने उन्हें क्षमा किया और कहा कि उनकी पूजा से पाप समाप्त होते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
पंच केदार और उनका महत्व
महात्मा शिव के दर्शन के बाद, उन्होंने पंच केदार के रूप में प्रकट होना शुरू किया। कहा जाता है कि जहां पांडवों ने भगवान शिव से मिलकर पूजा की, वहां एक और सिद्ध स्थल स्थापित हुआ। गुप्त काशी वह स्थान है, जहां भगवान शिव ने पांडवों से मुलाकात की थी। बाद में भगवान शिव ने केदारनाथ, रुद्रनाथ, तुंगनाथ, मध्यमहेश्वर, और कल्पेश्वर में अपने पांच रूपों में प्रकट होने का निर्णय लिया। इन पांच स्थलों को पंच केदार के नाम से जाना जाता है, और इनका महत्व विशेष रूप से धार्मिक यात्रा पर जाने वाले श्रद्धालुओं के लिए अत्यधिक होता है।
केदारनाथ मंदिर का इतिहास और रहस्य
केदारनाथ मंदिर का इतिहास अत्यंत रोचक है। माना जाता है कि सबसे पहले इस मंदिर का निर्माण पांडवों ने किया था, लेकिन समय के साथ यह मंदिर विलुप्त हो गया था। फिर आदिगुरु शंकराचार्य ने इस मंदिर का पुनर्निर्माण कराया। इस मंदिर के गर्भगृह में स्थित शिवलिंग स्वयंभू है, जो इसे और भी महत्वपूर्ण बनाता है। यहां का वातावरण हमेशा अंधकारमय रहता है, और दीयों के प्रकाश में ही भोलेनाथ के दर्शन किए जाते हैं। यह मंदिर मंदाकिनी नदी के घाट पर स्थित है और यह अपने रहस्यमय वातावरण के कारण श्रद्धालुओं के बीच अत्यधिक प्रसिद्ध है।
मंदिर के कपाट और भविष्यवाणी
केदारनाथ मंदिर के कपाट हर साल मई महीने में भक्तों के लिए खोले जाते हैं और नवंबर में ठंड के कारण बंद कर दिए जाते हैं। यह कपाट केवल सर्दी की वजह से बंद होते हैं, क्योंकि इस क्षेत्र में अत्यधिक ठंड होती है, जो आम इंसान के लिए सहन करना संभव नहीं होता। लेकिन, इस मंदिर से जुड़ी एक और भविष्यवाणी भी है, जो पुराणों में दर्ज है। कहा जाता है कि एक दिन ऐसा आएगा जब नर और नारायण पर्वत एक-दूसरे से मिलकर इस क्षेत्र को पूरी तरह से घेर लेंगे और इस धाम का मार्ग बंद हो जाएगा। इसके बाद, भविष्य में भविश्यबद्री नामक तीर्थ स्थान का उत्थान होगा।