Khatu Shyam Facts: बाबा श्याम, जिन्हें हारे का सहारा कहा जाता है, भारतीय भक्तों के बीच एक विशेष स्थान रखते हैं। उनकी मान्यता के अनुसार, बाबा श्याम अपने भक्तों के सभी कष्ट दूर कर देते हैं, यही कारण है कि हर साल लाखों भक्त खाटूश्याम जी के दरबार में अपनी अरदास लेकर जाते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि महाभारत काल के बर्बरीक, जो बाबा श्याम के रूप में पूजे जाते हैं, खाटू कैसे पहुंचे? आइए, जानते हैं इस रहस्य को।
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बर्बरीक का महाभारत काल से जुड़ाव- Khatu Shyam Facts
बर्बरीक, जो भीम के पौत्र थे, महाभारत काल के महान योद्धा थे। उनके पास तीन शक्तिशाली तीर थे, जिनसे वे पूरी सृष्टि का विनाश कर सकते थे। महाभारत के युद्ध के दौरान, बर्बरीक ने एक प्रण लिया था कि वह उस पक्ष का साथ देंगे, जो हार रहा होगा। उनका यह निर्णय युद्ध के परिणाम को पूरी तरह बदल सकता था।
जब कौरवों की स्थिति युद्ध में कमजोर हो रही थी, भगवान श्री कृष्णा ने सोचा कि अगर बर्बरीक ने युद्ध में भाग लिया, तो पांडवों की हार निश्चित हो जाएगी। इस स्थिति को देखते हुए, भगवान श्री कृष्णा ने ब्राह्मण का रूप धारण कर बर्बरीक से मिलने का निर्णय लिया।
शक्ति का परीक्षण और भगवान श्री कृष्ण का दर्शन
जब भगवान श्री कृष्ण ब्राह्मण के रूप में बर्बरीक के पास पहुंचे, तो उन्होंने बर्बरीक से उसकी पहचान पूछी। बर्बरीक ने उन्हें बताया कि वह भीम के पौत्र हैं और महाभारत के युद्ध में भाग लेने जा रहे हैं। तब भगवान श्री कृष्णा ने बर्बरीक से उनकी शक्ति के बारे में पूछा।
बर्बरीक ने पीपल के पेड़ के नीचे आराम करते हुए अपने तीर से पेड़ के सारे पत्तों को छेद दिया। भगवान श्री कृष्णा ने अपनी चतुराई से एक पत्ता अपने पैर के नीचे दबा लिया। जैसे ही बर्बरीक ने तीर छोड़ा, वह तीर भगवान कृष्ण के पैर के पास आकर रुक गया। बर्बरीक ने तुरंत भगवान श्री कृष्णा से कहा कि वह अपना पैर हटा लें, तभी तीर फिर से आगे बढ़ेगा। भगवान श्री कृष्णा ने अपना पैर हटाया, और तीर पत्ते के आर-पार हो गया। इस घटना ने भगवान श्री कृष्ण को यह साबित कर दिया कि बर्बरीक एक महान योद्धा हैं।
दान में शीश देने का वचन
इसके बाद, भगवान श्री कृष्णा ने बर्बरीक से दान मांगा। बर्बरीक ने बिना किसी विचार के अपना शीश भगवान श्री कृष्ण को दान में दे दिया। बर्बरीक की इस महान दानशीलता से भगवान श्री कृष्ण बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने बर्बरीक को वरदान दिया।
रूपवती नदी से खाटू तक का सफर
महाभारत के युद्ध में पांडवों की जीत के बाद, भगवान श्री कृष्ण ने बर्बरीक को कलयुग का अवतार बाबा श्याम बनने का वरदान दिया। इसके बाद भगवान श्री कृष्ण ने बर्बरीक का शीश रूपवती नदी में बहा दिया, जो बहते हुए खाटू तक पहुंचा।
खाटू में बाबा श्याम का मंदिर
बाद में, एक ग्वाले को बाबा श्याम का शीश रूपवती नदी में बहते हुए मिला। ग्वाले ने शीश को जागीरदार को सौंप दिया, और जागीरदार ने खाटू में बाबा श्याम का मंदिर बनवाया। यही मंदिर आज भी भव्य और विशाल रूप में खाटू में स्थित है और लाखों भक्त यहां अपनी अरदास लेकर आते हैं।
इस प्रकार, महाभारत काल के बर्बरीक का शीश खाटू तक पहुंचा और वहां बाबा श्याम के रूप में उनकी पूजा शुरू हुई। बाबा श्याम की भक्ति और उनके द्वारा दिए गए वरदानों की शक्ति आज भी भक्तों के दिलों में बसती है, और हर साल लाखों लोग खाटू के मंदिर में आकर अपनी प्रार्थनाएं अर्पित करते हैं।