Khatu Shyam Mela 2025: खाटू श्याम का लक्खी मेला,12 दिन तक उमड़ेगा भक्तों का सैलाब

Khattu Shyam Mela
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Khatu Shyam Mela: आज यानी 28 फरवरी से बाबा खाटू श्याम का लक्खी मेला से शुरू होने वाला है, जो 12 दिन तक चलेगा। मेले की तैयारियां जोरशोर से चल रही हैं।

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बाबा खाटू श्याम का लक्खी मेला

बाबा खाटू श्याम का लक्खी मेला एक वार्षिक उत्सव है जो राजस्थान के सीकर जिले के खाटू गांव में आयोजित किया जाता है। यह मेला फाल्गुन महीने में आयोजित किया जाता है और इसमें देश भर से लाखों भक्त आते हैं। वही यह मेला इस साल 28 फरवरी से शुरू हो गया है जो कि 12 दिनों चलने वाले है। खास बात यह है कि इस बार श्री श्याम मंदिर कमेटी की ओर से श्याम भक्तों के लिए 17 किलोमीटर लंबे पैदल मार्ग पर कालीन बिछाई जा रही है, ताकि भक्तों को किसी परेशानी का सामना न करना पड़े।

वही  श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए विशेष व्यवस्थाएं की गई हैं। इसके अलवा बुजुर्गों और दिव्यांगों के लिए विशेष इंतजाम किए गए हैं। दूसरी और वीआईपी दर्शन बंद रहेंगे।  इसके अलवा बाबा खाटू श्याम के दर्शन के लिए भक्तों के लिए 14 अलग लाइनें बनाई गई हैं जहाँ श्रद्धालुओं की सुविधा को ध्यान में रखते हुए कलेक्टर मुकुल शर्मा और मंदिर समिति के पदाधिकारियों ने मेले की तैयारियों को लेकर कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए हैं। श्रद्धालु मंदिर में इत्र की शीशी, कांटेदार डंठल वाले गुलाब के फूल और झंडे नहीं ले जा सकेंगे।

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दर्शन में लगेगे पांच घंटे

आपको बता दें, रींगस से आने वाले भक्त नगरपालिका के समीप बन रहे मुख्य प्रवेश द्वार के रास्ते से होकर विद्युत ग्रिड की ओर जाते हुए खटीकान मोहल्ला और कैरपुरा तिराहा से होते हुए चारण मैदान तक पहुंचेंगे। इसके बाद, वे लखदातार मेला ग्राउंड के रास्ते मंदिर परिसर में प्रवेश करेंगे। ऐसे में बाबा श्याम के दर्शन के लिए भक्तों को लगभग पांच घंटे का समय लगेगा। बाबा श्याम के मेले को लेकर सभी श्याम भक्तों में उत्साह का माहौल है। मंदिर कमेटी और प्रशासन की टीम व्यवस्था सुनिश्चित करने में जुटी है ताकि आने वाले श्रद्धालुओं को किसी तरह की कठिनाई का सामना न करना पड़े।

क्यों मनाया जाता है लक्खी मेला

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जब भगवान श्री कृष्ण ने बर्बरीक से उसका शीश मांगा था, तब बर्बरीक ने पूरी रात भजन करते हुए समय बिताया। फाल्गुन माह के शुक्ल द्वादशी को उसने स्नान किया और सच्चे मन से भगवान की पूजा की। इसके पश्चात, बर्बरीक ने भगवान श्री कृष्ण को अपना शीश काटकर अर्पित कर दिया। यही मान्यता है कि हर साल इसी कारण लक्खी मेला आयोजित किया जाता है।

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