मन के भोग की इच्छा का नाश  कैसे करें? प्रेमानंद जी महाराज से जानिए

Learn from Premanand Ji Maharaj how to destroy the mind's desire for pleasures
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वृन्दावन के श्रीहित प्रेमानन्द महाराज जी के बारे में कौन नहीं जानता? देश-दुनिया में मशहूर प्रेमानंद महाराज वृन्दावन में रहकर सिर्फ कृष्ण नाम का जाप करते हैं और भक्ति का उपदेश देते हैं। प्रेम मंदिर के बाद वृन्दावन में सबसे ज्यादा भीड़ प्रेमानंद महाराज के दर्शन के लिए आती है। उनके अच्छे विचारों से लोग काफी प्रेरित हो रहे हैं। परम पूज्य प्रेमानंद महाराज जी, श्री हित प्रेमानंद ने नौवीं कक्षा में ही तय कर लिया था कि वह आध्यात्मिक जीवन की ओर बढ़ेंगे। उन्होंने 13 साल की उम्र में अपनी मां को यह कहकर घर छोड़ दिया कि वह जा रहे हैं और ब्रह्मचर्य का पालन करने लगे। वर्तमान में महाराज जी वृन्दावन में रहते हैं और अपने पास आने वाले भक्तों को जीवन में सही मार्ग पर चलने की शिक्षा देते हैं। वहीं, कई लोग ऐसे भी हैं जो अपने सांसारिक दुखों से मुक्ति पाने के लिए प्रेमानंद महाराज के पास आते हैं। कुछ दिन पहले एक भक्त महाराज के दरबार में आया और पूछा, महाराज जी, मन में भोग की इच्छा कैसे नष्ट करें? भगत के सवाल के जवाब में महाराज जी ने क्या कहा, आपको जरूर सुनना चाहिए।

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मन में भोग की इच्छा कैसे नष्ट करें

महाराज जी ने एक बहुत ही सरल उदाहरण देकर बताया कि मन में भोग की इच्छा को कैसे नष्ट किया जा सकता है। महाराज जी कहते हैं कि उन्होंने एक बार गांव में देखा था कि जब गन्ने का रस पकता है तो इस प्रक्रिया में पतोई निकलती है और वहां के बच्चे इस गन्ने के रस से बनी पतोई को बड़े चाव से खाते हैं, क्योंकि यह खाने में मीठी होती है। अगर इन बच्चों को खाने में रबड़ी मिल जाए तो ये बच्चे पतोई देखना पसंद भी नहीं करेंगे। क्योंकि उनके लिए वह रबड़ी उस पतोई से कई गुना ज्यादा स्वादिष्ट होती है। इसी प्रकार जब हमारे मन को भगवदानन्द अर्थात् भगवान का नाम नहीं मिलता तो हमारा मन इधर-उधर सुखों की ओर भटकता रहता है। महाराज जी कहते हैं कि जो भाग्यशाली लोग नाम जपते हैं और भगवान के नाम का आनंद लेते हैं, उनके लिए मन का आनंद वमन के समान है, यानी मुंह से निकाली गई उल्टी के समान है। अगर किसी को उल्टी हो जाए तो कोई खाना चाहेगा? उल्टी को केवल कुत्ता ही खाना चाहेगा और कोई नहीं खाना चाहेगा। इसी प्रकार मन रूपी हंस, जो सुखों के लिए इधर-उधर दौड़ता रहता है, वह तब तक नहीं रुकेगा जब तक उसे भगवान का नाम जपने का अवसर न मिल जाए। मन बहुत शक्तिशाली है और इसे नियंत्रित करने का एकमात्र तरीका है इसे भगवान के नाम का स्वाद देना है।

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