Naga Sadhus 17 Shringar: प्रयागराज में आयोजित महाकुंभ, भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता का प्रतीक है। इस महापर्व में सबसे अधिक आकर्षण का केंद्र होते हैं नागा साधु। उनकी परंपरा, रहन-सहन और शृंगार में एक अद्भुत रहस्य छिपा होता है। विशेष रूप से शाही स्नान के अवसर पर नागा साधुओं का शृंगार भव्यता और आध्यात्मिकता का मिश्रण पेश करता है। पत्रकार और लेखक धनंजय चोपड़ा की किताब “भारत में कुंभ” में नागा साधुओं के 17 शृंगार का विस्तृत विवरण मिलता है, जो उनकी आध्यात्मिकता और भगवान शिव से गहरे संबंध को प्रदर्शित करता है।
नागा साधुओं के 17 शृंगार- Naga Sadhus 17 Shringar
नागा साधुओं के शृंगार में प्रत्येक अलंकार का एक गहरा प्रतीकात्मक अर्थ है, जो सीधे भगवान शिव के विभिन्न स्वरूपों से जुड़ा है। आइए इन 17 शृंगारों पर विस्तार से नज़र डालते हैं:

- भभूत (भस्म):
 भभूत नागा साधुओं के लिए वस्त्र के समान है। इसे वे स्नान के बाद पूरे शरीर पर लगाते हैं। यह भस्म हवन सामग्री और गोबर जलाकर बनाई जाती है। यह श्मशान के वैराग्य और शिव के त्याग का प्रतीक है।
- लंगोट (कौपीन):
 यह साधुओं के ब्रह्मचर्य और अनुशासन का प्रतीक है। प्राचीन परंपरा के अनुसार, इसके तीन कोर तीन तप, तीन लोक और तीन व्रतों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
- रुद्राक्ष:
 भगवान शिव के नेत्रों से उत्पन्न माने जाने वाले रुद्राक्ष नागा साधुओं के मुख्य अलंकार हैं। ये गले, भुजाओं और यहां तक कि जटाओं में भी धारण किए जाते हैं।
- चंदन, रोली और हल्दी:
 माथे पर त्रिपुंड (तीन रेखाएं) और अन्य प्रतीक बनाने के लिए चंदन, हल्दी और रोली का उपयोग किया जाता है। यह शिव के त्याग और तपस्या को दर्शाता है।
- लोहे का छल्ला:
 पैरों में पहने जाने वाले लोहे या चांदी के छल्ले साधुओं की सादगी और अनुशासन का प्रतीक हैं।
- हाथ का कड़ा:
 धातु से बने ये कड़े नागा साधुओं के जीवन का हिस्सा हैं, जो उनकी आध्यात्मिक ताकत और दृढ़ता को दर्शाते हैं।
- अंगूठी:
 नागा साधु अक्सर रत्नजड़ित अंगूठियां पहनते हैं, जो उनके जीवन में ऊर्जा और संतुलन का प्रतीक होती हैं।
- कुंडल:
 कानों में धारण किए गए कुंडल (बालियां) शिव के अर्धनारीश्वर स्वरूप का प्रतीक हैं।
- फूलों की माला:
 साधु गेंदे और अन्य फूलों की मालाएं धारण करते हैं। ये उनकी जटाओं और गले को सजाती हैं।
- जटा:
 नागा साधुओं की लंबी जटाएं उनके जीवन का अभिन्न हिस्सा हैं। जटा भगवान शिव का सीधा प्रतीक हैं, जिन्होंने गंगा को अपनी जटाओं में धारण किया था।
- पंचकेश:
 पंचकेश (पांच प्रकार के बालों का संग्रह) नागा साधुओं की परंपरा का महत्वपूर्ण हिस्सा है।
- काजल या सूरमा:
 आंखों में लगाया गया काजल उनकी दृष्टि को दिव्य और तेजस्वी बनाता है।
- अर्धचंद्र:
 सिर पर चांदी का अर्धचंद्र शिव के प्रतीक के रूप में धारण किया जाता है।
- डमरू:
 डमरू भगवान शिव के संगीत और सृजन का प्रतीक है। यह नागा साधुओं के जीवन का हिस्सा है।
- चिमटा:
 चिमटा साधुओं का महत्वपूर्ण उपकरण है, जिसे वे धूनी रमाने और आशीर्वाद देने के लिए इस्तेमाल करते हैं।
- गंडा:
 यह उनके गुरु की उपस्थिति और संरक्षण का प्रतीक है।
- अस्त्र-शस्त्र:
 नागा साधु तलवार, त्रिशूल, फरसा और लाठी जैसे अस्त्र-शस्त्र धारण करते हैं, जो शिव के युद्ध और सुरक्षा के प्रतीक हैं।
महाकुंभ में नागा साधुओं का महत्व
महाकुंभ के दौरान नागा साधुओं के इन 17 शृंगारों को देखना अद्भुत अनुभव होता है। ये शृंगार उनकी तपस्या, त्याग और अनुशासन का प्रतीक हैं। श्रद्धालु इन्हें देखकर शिवत्व का अनुभव करते हैं और उनके जीवन से प्रेरणा लेते हैं।

रहस्यमयी और अनुशासित जीवनशैली
नागा साधुओं का जीवन गहन अनुशासन और त्याग से भरा होता है। वे न केवल शिव के प्रति समर्पित होते हैं, बल्कि समाज को आध्यात्मिकता और तपस्या का संदेश भी देते हैं। महाकुंभ में उनकी उपस्थिति इस आयोजन को अद्वितीय और भव्य बनाती है।



