Pitru Paksha 2025: पितृ पक्ष, जिसे श्राद्ध पक्ष भी कहा जाता है, हिंदू धर्म में पूर्वजों को समर्पित पंद्रह दिनों का एक महत्वपूर्ण काल है। यह भाद्रपद पूर्णिमा से शुरू होकर आश्विन अमावस्या तक चलता है, जिसे ‘सर्वपितृ अमावस्या’ या ‘महालय’ भी कहा जाता है। इस दौरान लोग अपने दिवंगत पूर्वजों की आत्मा की शांति और मोक्ष के लिए श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान जैसे अनुष्ठान करते हैं। लेकिन क्या आप जानते है इस साल पितृ पक्ष कब से शुरू है अगर नहीं तो चलिए आपको इस लेख में विस्तार से बताते हैं।
पितृ पक्ष 2025: तिथि और श्राद्ध
पितृ पक्ष हर साल भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से शुरू होकर आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तक चलता है। यह 15 दिवसीय अवधि भाद्रपद पूर्णिमा से आश्विन अमावस्या तक चलती है, जिसमें लोग अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा और सम्मान व्यक्त करते हैं। यह समय विशेष रूप से उन लोगों के लिए आरक्षित है जिनके पूर्वज इस दुनिया से विदा हो चुके हैं।
चंद्र ग्रहण का दुर्लभ संयोग
- पितृ पक्ष 7 सितंबर 2025 को भाद्रपद पूर्णिमा के दिन से शुरू हो रहा है और उसी दिन पूर्ण चंद्र ग्रहण भी लग रहा है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, चंद्र ग्रहण और पितृ पक्ष का एक साथ होना एक विशेष योग है, जिसे पितृ पूजन के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है।
- यह चंद्र ग्रहण भारत में दिखाई देगा, इसलिए इसका सूतक काल भी मान्य होगा। सूतक काल 7 सितंबर को दोपहर लगभग 12:57 बजे से शुरू होगा और ग्रहण के साथ ही समाप्त होगा।
- ग्रहण काल में श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान जैसे कर्मकांड वर्जित होते हैं। इसलिए जिन लोगों का श्राद्ध पूर्णिमा तिथि पर पड़ता है, उन्हें सूतक काल शुरू होने से पहले, यानी दोपहर 12:57 बजे से पहले अपने सभी पितृ कार्य संपन्न कर लेने चाहिए।
पितृ पूजन के लिए यह सबसे शुभ समय क्यों है?
आपको बता दें, धार्मिक और ज्योतिषीय मान्यताओं के अनुसार, ग्रहण के समय किए गए पूजा-पाठ, जप, तप और दान का महत्व कई गुना बढ़ जाता है। साथ ही पितृ पक्ष जैसे पवित्र काल में ग्रहण लगने पर पितरों की आत्मा की शांति के लिए किए गए कर्मों का फल भी कई गुना बढ़ जाता है।
मान्यता है कि इस दुर्लभ संयोग में पितरों की पूजा और उनके निमित्त दान-पुण्य करने से पितृ दोष से मुक्ति मिलती है और पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इसके अलावा, इस वर्ष पितृ पक्ष के समापन दिवस, 21 सितंबर को सूर्य ग्रहण भी लगेगा। इस प्रकार, पितृ पक्ष का आरंभ और अंत दोनों ही ग्रहण के संयोग में हो रहे हैं, जो इस काल को और भी विशेष बनाता है।
तीर्थस्थल या नदी के तट पर श्राद्ध करें
साथ ही किसी दूसरे की ज़मीन पर श्राद्ध कर्म नहीं करना चाहिए। यदि यह संभव न हो, तो किसी मंदिर, तीर्थस्थल या नदी के तट पर श्राद्ध कर्म किया जा सकता है। हालाँकि पितृ पक्ष के दौरान पितरों के नाम पर गरीबों और ज़रूरतमंदों को दान देना अत्यंत पुण्यकारी माना जाता है। इसके घर में सुख शांति बनी रहती है साथ पितृ देवताओ का भी आशीर्वाद प्रप्ता होता है।