Jitiya Vrat 2025: जितिया या जीवित्पुत्रिका व्रत माताओं द्वारा अपनी संतान की लम्बी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए किया जाने वाला एक अत्यंत महत्वपूर्ण और कठिन व्रत है। इस व्रत में महिलाएं अपनी संतान की सुरक्षा के लिए एक विशेष धागा भी धारण करती हैं, जिसे जितिया धागा कहते हैं। तो चालिए आपको इस लेख में जितिया व्रत कब है? और जितिया धागे का क्या महत्व है इस धागे से जुड़े नियम और इसके विसर्जन की विधि के विस्तार से बताते हैं।
जितिया धागे का महत्व
यह धागा लाल और पीले रंग का होता है, जिसे शक्ति, भक्ति, पवित्रता और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। महिलाएं पूजा के दौरान भगवान से आशीर्वाद प्राप्त करने के बाद इस धागे को अपने गले या हाथ में धारण करती हैं। यह धागा संतान की रक्षा के लिए सुरक्षा कवच का काम करता है।
इस धागे को जितिया व्रत के पारण के बाद ही उतारना चाहिए। व्रत पूरा होने से पहले इसे नहीं उतारना चाहिए, क्योंकि यह व्रत का एक अभिन्न अंग है। पारण के बाद माताएँ श्रद्धापूर्वक इस धागे को अपने गले या हाथ से उतार सकती हैं। धागा उतारते समय मन ही मन अपनी संतान की दीर्घायु और कल्याण की कामना करनी चाहिए।
जितिया धागा विसर्जन के नियम
जितिया धागा विसर्जन करते समय कुछ नियमों का पालन करना आवश्यक है। जैसे जितिया धागा विसर्जन के लिए सबसे उपयुक्त स्थान किसी पवित्र नदी या तालाब का जल है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस धागे में निहित सकारात्मक ऊर्जा जल में प्रवाहित होकर प्रकृति में वापस मिल जाती है। इसे विसर्जित करते समय सूर्य देव और जीमूतवाहन देवता से अपनी संतान के लिए प्रार्थना करनी चाहिए।
वही अगर यदि आपके आस-पास कोई नदी या तालाब नहीं है, तो आप इस धागे को पीपल के पेड़ के नीचे रख सकते हैं। पीपल का पेड़ पूजनीय माना जाता है और इसे देवस्थान के समान माना जाता है। धागे को पेड़ की जड़ के पास रखने से भी व्रत का पुण्य फल प्राप्त होता है।
गलती से भी न करें ये भूल
जितिया धागे को कभी भी कूड़ेदान या किसी अपवित्र स्थान पर नहीं फेंकना चाहिए। इसे व्रत की पवित्रता और आस्था का अपमान माना जाता है और ऐसा करने से व्रत का फल नष्ट हो सकता है। इस धागे को घर में ज़्यादा देर तक नहीं रखना चाहिए, बल्कि नियमानुसार तुरंत विसर्जन कर देना चाहिए।
इसके अलवा आपको बता दें, जितिया व्रत 14 सितंबर 2025, रविवार के दिन है। जिसके एक दिन पहले नहाय-खाय जाता है यानी 13 सितंबर 2025 को ये विधि की है। वही व्रत का समापन 15 सितंबर 2025 किया जायेगा। ध्यान देने वाली बाद यह जानकारी सामान्य मान्यताओं और धार्मिक ग्रंथों पर आधारित है। कृपया अपनी परंपराओं और मान्यताओं के अनुसार इन नियमों का पालन करें।