कौन थे भाई काहन सिंह, जिनका था सिखों की विरासत में बड़ा योगदान

Bhai Kahan Singh
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Bhai Kahan Singh – भाई काहन सिंह, पंजाब के साहित्यिक और आध्यात्मिक विशिष्टता के महान व्यक्ति थे. यह एक ऐसे विचारक थे, जिनका सिखों की विरासत को समझने में बहुत बड़ा योगदान निभाया है. इनकी शिक्षा के प्रति भक्ति से जाने कितने सिखों का उधर किया. यह एक सच्चे पुनर्जागरण व्यक्ति थे, इन्होने सिख लोकाचार पर एक स्थायी छाप छोड़ रखी है.

भाई काहन सिंह का जन्म एक सिख परिवार में हुआ था, उन्हें औपचारिक शिक्षा प्राप्त नहीं हुई थी. लेकिन भाई काहन सिंह ने बचपन में ही खुद को विद्वतापूर्ण अध्ययन में लगा लिया था. 20 वर्ष के आयु में वह सिख दर्शक और धर्मग्रंथों के अच्छे जानकर बन गए थे, उसके साथ उन्हें काफी भाषाओ का ज्ञान्भी हो गया था. उन्होंने भारत की भाषाओ ओए साहित्य का ज्ञान प्राप्त करने के अलग फारसी, अंग्रेजी और अरबी भी सिख ली थी. वद साथ में एक संगीतकार भी थे.

भाई काहन ने अपने गुणों से महाराजा हीर सिंह को इतना प्रभावित कर लिया था कि उन्हें शाही संरक्षण में ले लिया गया था. उन्होंने वहीं रहकर कई पदों पर काम किया था, राजा के निजी सचिव से लेकर उच्च न्यायालय के न्यायधीश तक. उन्होंने 1909 में पारित आनंद विवाह अधिनियम का मसौदा तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. 1912 में उन्होंने अपना अस्तीफा दे दिया था.

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भाई काहन सिंह की रचनाएं

भाई काहन सिंह की रचनाओं (Bhai Kahan Singh Books) में 29 प्रकाशन शामिल थे, उनकी सबसे महान रचना ‘गुरशबद रत्नाकर महाकोश’ है, जिसे पूरा करने में उन्हें 15 साल का समय लग गया था. इन्होने 1930 में इसके चार शानदार खंड प्रकाशित किए जिनमे: मूल संरक्षक, नाभा के महाराजा, सिख विचार, धर्मग्रंथ, इतिहास, प्राचीन भारतीय शास्त्रीय कार्यों, संगीत थे इस विश्वकोश में लगभग 65000 शब्द शामिल थे. मानचित्रों और चित्रों के महाकोश में 7,000 से अधिक फारसी और अरबी शब्द थे, जिसके साथ उचारण भी शामिल था. इन्होने कई सारी ओर रचनाएं की जैसे दो खंडो वाला ‘गुरमत मार्तंड’ जो गुरबानी पर आधारित था.

भाई काहन सिंह (Bhai Kahan Singh) की बुद्धि की व्यापकता उनके कार्यों के पता चलती है. जैसे उन्होंने गुरु महमा रत्नावली को 99 प्राचीन कविताओ पर जीवनी सम्बंधी नोट के साथ साथ उनके उदाहरण भी लिखे. यह पुस्तक उनके जीवन में पूरी नहीं सकी जिसे बाद में गुरु नानक देव विश्वविद्यालय के प्रोफेसर प्रीतम सिंह द्वारा पूरा करके प्रकाशित किया गया.

भाई काहन सिंह को पुनर्जागरण पुरुष क्यों कहा जाता है

क्या आप जानते है कि भाई काहन सिंह को पुनर्जागरण पुरुष कहा जाता है आईये हम आपको बताते है. भाई काहन सिंह ने पौराणिक ग्रंथों के साथ गुरुचंद दिवाकर पर तीन टिप्पणियाँ भी लिखीं. जो छंद के काव्यात्मक रूप है. उनकी लिखने की वही शैली मिली है जिसमे गुरु ग्रन्थ साहिब लिखी गयी है. इन्होने समाजिक मुद्दों पर भी लिखा है. जैसे धार्मिक स्थानों में शोषणकारी प्रथाओं का आरोप, राज धर्म, शासन की एक परीक्षा, शाही संरक्षक जो महाराजा हिरा के साथ बातचीत पर आधारित है.

उनका लघु खण्ड ‘हम हिन्दू नहीं’ में उनके व्यक्तित्व और विचारो को दर्शाया है, वह सिख पुनर्जागरण और सिंह सभा आंदोलन के सबसे प्रमुख सदस्यों में से एक थे. उनके कार्य सनातन धर्म, आर्य समाज विचार, सिख मूल्यों, और सिख पहचान में गिरावट आदि विवादों पर विशेष प्रतिक्रिया थी. इन्ही यह रचनाये संवादात्मक शैली में लिखी गयी है न तो शत्रुतापूर्ण है और न ही आक्रामक.

भाई काहन सिंह तो धर्मं में शांति पैदा करना चाहते थे, यह 20वीं सदी की शुरुआत में एक स्पष्ट धार्मिक और राजनीतिक सिख पहचान को फिर से उभरने में सक्षम बनाने में एक मौलिक प्रभाव साबित हुआ. उन्होंने अपनी रचनाओ से दिखाया की बिना औपचारिक शिक्षा भी पढ़ने की लगन से सब हो सकता है.

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