Kadhi-rice made on Kanha Ji’s Chhath: भगवान कृष्ण का जन्मोत्सव यानी जन्माष्टमी 16 अगस्त 2025 को मनाई गई। भगवान के जन्म के बाद छठी मनाई जाती है। ज्योतिषीय गणना और पंचांग के अनुसार, इस वर्ष जन्माष्टमी कुछ स्थानों पर 15 अगस्त को मनाई गई, जबकि अधिकांश स्थानों पर यह 16 अगस्त को मनाई गई। इसी के आधार पर, कान्हा जी की छठी की तिथि में भी थोड़ा अंतर है। तो चलिए आपको इस लेख में कृष्ण छठी के बारें में विस्तार से बताते हैं।
क्या है छठी का महत्व
हिंदू धर्म में, किसी भी बच्चे के जन्म के बाद के छठे दिन को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन छठी माता की पूजा की जाती है, जिन्हें सौभाग्य और संतान की देवी माना जाता है। कृष्ण जी की छठी मनाना भी इसी परंपरा का एक हिस्सा है। इस दिन नंद बाबा के यहाँ श्री कृष्ण का जन्मोत्सव मनाया गया था। यह पर्व हमें श्री कृष्ण के बाल रूप की याद दिलाता है और उनके जीवन से जुड़ी लीलाओं को स्मरण करने का अवसर प्रदान करता है।
हालाँकि जिन लोगों ने 15 अगस्त को जन्माष्टमी मनाई थी, वे 21 अगस्त 2025 को कान्हा जी की छठी मनाएँगे। दूसरी और जिन लोगों ने 16 अगस्त को जन्माष्टमी मनाई थी, वे 22 अगस्त 2025 को कान्हा जी की छठी मनाएँगे।
कान्हा जी की पूजा विधि
कृष्ण छठी का त्यौहार बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस दिन भक्त अपने घरों में लड्डू गोपाल की पूजा करते हैं, ठीक वैसे ही जैसे नवजात शिशु की देखभाल की जाती है। वही छठी के दिन कान्हा जी की पूजा करने की विधि यह है कि सबसे पहले घर की सफाई करें और स्नान करके साफ़ वस्त्र धारण करें। इसके बाद कान्हा जी की मूर्ति को पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, गंगाजल) से स्नान कराएँ। इसके बाद कान्हा जी को नए और सुंदर वस्त्र पहनाएँ, उनका श्रृंगार करें, उन्हें मोरपंख, मुकुट, बांसुरी और माला आदि से सुसज्जित करें।
छठी माता की पूजा
इस दिन छठी माता की पूजा का भी प्रावधान है। कान्हा जी को उनका पसंदीदा भोग लगाएं, जिसमें धनिये की पंजीरी, माखन-मिश्री, खीर, चूरमा आदि शामिल हो सकते हैं। कान्हा जी को झूले में बैठाएं और उन्हें धीरे-धीरे झुलाएं और भजन गाएं। अंत में कान्हा जी की आरती करें और सभी को प्रसाद बांटें।
छठी पर क्यों कढ़ी चावल बनाया जाता है
भगवान कृष्ण को मक्खन और दही वाली कढ़ी बहुत पसंद है। यही कारण है कि कृष्ण षष्ठी पर कढ़ी चावल बनाया जाता है। एक और कारण यह है कि दही और बेसन सात्विक भोजन की श्रेणी में आते हैं और यह भोजन पौष्टिक होने के साथ-साथ आसानी से पचने वाला भी होता है। इन्हीं कारणों से कृष्ण षष्ठी पर कढ़ी चावल बनाने की परंपरा चली आ रही है।
इसके अलवा मान्यता है कि ‘षष्ठी देवी’ (छठी मैया) जन्म के छठे दिन घर में आती हैं। यह व्यंजन उनके आगमन का स्वागत करने और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए बनाया जाता है। कढ़ी को शुभ माना जाता है और इसे सुख-समृद्धि का प्रतीक भी माना जाता है।