Dr Ambedkar: इतिहास में कुछ फैसले ऐसे होते हैं, जो सिर्फ एक इंसान की जिंदगी नहीं बदलते, बल्कि पूरी पीढ़ियों की सोच को नई दिशा दे देते हैं। डॉ. भीमराव अंबेडकर का हिंदू धर्म छोड़कर बौद्ध धर्म अपनाना भी ऐसा ही एक फैसला था। यह कदम सिर्फ धार्मिक नहीं था, यह बराबरी, सम्मान और इंसानी हक़ की लड़ाई का ऐलान था। जिस व्यवस्था ने लोगों को सदियों तक झुकाकर रखा, उसके खिलाफ बाबासाहेब ने खड़े होकर दुनिया को बता दिया कि बदलाव मुमकिन है। आज वही फैसला, वही संघर्ष और वही संदेश एक बार फिर लोगों के बीच नई बहस और नई ऊर्जा पैदा कर रहा है।
जब 7 लाख लोगों ने एक साथ बदला धर्म, दुनिया रह गई थी हैरान (Dr Ambedkar)
अंबेडकर के जीवन की सबसे ऐतिहासिक घटनाओं में से एक 14 अक्टूबर 1956 का दिन भी है। इसी दिन नागपुर में उन्होंने करीब 7 लाख से ज्यादा अनुयायियों के साथ हिंदू धर्म त्यागकर बौद्ध धर्म अपना लिया था। यह दुनिया के इतिहास में अब तक का सबसे बड़ा सामूहिक धर्म परिवर्तन माना जाता है। उस दिन नागपुर के दीक्षाभूमि मैदान में जिस तरह का जनसैलाब उमड़ा था, उसने पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींच लिया था।
उस समय इस फैसले का समर्थन सिर्फ महाराष्ट्र तक सीमित नहीं रहा, बल्कि देश के दूसरे हिस्सों से भी कई बड़े सामाजिक और राजनीतिक नेताओं ने इसका खुले दिल से स्वागत किया था। तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री और द्रविड़ आंदोलन के बड़े नेता सी.एन. अन्नादुरई यानी ‘अन्ना’ भी उनमें सबसे आगे थे।
अंबेडकर और अन्नादुरई की अनोखी मुलाकात की कहानी
अंबेडकरवादी लेखक और पेशे से दंत चिकित्सक डॉ. एसपीवीए साईराम ने ‘द कल्चर केफे’ में छपे अपने एक लेख में अंबेडकर और अन्नादुरई के बीच की नजदीकियों पर रोशनी डाली है। उनके मुताबिक इन दोनों महान नेताओं की पहली अहम मुलाकात साल 1940 के आसपास हुई थी।
6 जनवरी 1940 को डॉ. अंबेडकर ने पेरियार और उनके साथियों के लिए एक चाय पार्टी रखी थी। इसके अगले ही दिन धारावी में एक जनसभा हुई, जहां अंबेडकर ने अंग्रेजी में भाषण दिया और पेरियार ने तमिल में अपने विचार रखे। इस ऐतिहासिक सभा में अन्नादुरई ने अंबेडकर के भाषण का तमिल में और पेरियार के भाषण का अंग्रेजी में अनुवाद किया। इस तरह दोनों नेताओं के विचार सीधे जनता तक पहुंचे और यहीं से वैचारिक सेतु बनना शुरू हुआ।
अन्नादुरई ने क्यों कहा था धर्म परिवर्तन को ‘महान कदम’?
जब 1956 में अंबेडकर ने बौद्ध धर्म अपनाया, तो अन्नादुरई ने इसे समाज के लिए एक बहुत बड़ी घटना बताया। उन्होंने डीएमके के मुखपत्र ‘द्रविड़ नाडु’ में 21 अक्टूबर 1956 को एक लेख लिखकर अंबेडकर के फैसले की खुलकर तारीफ की। उन्होंने लिखा था कि इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है, जब एक ही दिन, एक ही जगह, लाखों लोगों ने एक धर्म छोड़ा और दूसरा अपनाया।
अन्नादुरई ने लिखा कि एक पत्रकार ने उस दृश्य को देखकर कहा था कि दुनिया में ऐसा पहले कभी नहीं देखा गया। दस लाख वर्ग फीट के मैदान में तीन लाख से ज्यादा लोग एक साथ इकट्ठा हुए थे, यह अपने आप में एक अजूबा था।
अंबेडकर के ज्ञान और फैसले की अन्नादुरई ने की थी खुलकर तारीफ
अन्नादुरई ने यह भी लिखा कि डॉ. अंबेडकर हिंदू धर्म के गहरे जानकार थे। उन्होंने वैदिक और आगमिक ग्रंथों तक का गहन अध्ययन किया था। कानून की उनकी समझ इतनी मजबूत थी कि उन्होंने भारतीय संविधान के निर्माण में अहम भूमिका निभाई। ऐसे विद्वान व्यक्ति का हिंदू धर्म छोड़कर बौद्ध धर्म अपनाना कोई भावनात्मक फैसला नहीं था, बल्कि सोच-समझकर लिया गया ऐतिहासिक कदम था।
जाति व्यवस्था पर अन्नादुरई की तीखी टिप्पणी आज भी उतनी ही प्रासंगिक
अन्नादुरई ने हिंदू धर्म की जाति व्यवस्था पर बेहद सख्त शब्दों में टिप्पणी की थी। उन्होंने लिखा था, “छुआछूत, दूर रखने की प्रथा, जन्म के आधार पर ऊंच-नीच… चाहे यह सोने का महल ही क्यों न हो, लेकिन यह एक ऐसी इमारत है जिसमें जहरीले विषाणु भरे हैं। डॉ. अंबेडकर जैसे लोग इसमें रह ही नहीं सकते।”
उन्होंने आगे कहा था कि अंबेडकर का धर्म परिवर्तन हर उस इंसान की प्रशंसा के लायक है, जो समानता और इंसाफ में विश्वास करता है।
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