Buddha Period Women Status: गौतम बुद्ध के समय, छठी शताब्दी ईसा पूर्व में भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति अत्यंत जटिल थी। वैदिक काल के बाद समाज में पितृसत्तात्मक संरचना मजबूत हो गई थी, जिसके परिणामस्वरूप महिलाओं की स्वतंत्रता सीमित हो गई थी। अधिकांश महिलाएं गृहस्थ जीवन और पारिवारिक जिम्मेदारियों में व्यस्त थीं, और उनके लिए सार्वजनिक जीवन और धार्मिक गतिविधियों में भागीदारी की सीमित जगह थी। हालांकि उच्च वर्ग की कुछ महिलाओं को शिक्षा और कला में भाग लेने का अवसर मिलता था, लेकिन समाज में उनकी भूमिका पुरुषों की तुलना में कमतर मानी जाती थी।
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बौद्ध धर्म के उदय ने महिलाओं के लिए एक नया अवसर प्रस्तुत किया। गौतम बुद्ध ने इस समय की सामाजिक असमानता को नकारते हुए महिलाओं को समानता का अधिकार दिया। विशेष रूप से, बुद्ध की सौतेली माता महाप्रजापति गौतमी ने बौद्ध धर्म में महिलाओं के लिए नया मार्ग प्रशस्त किया, जब उन्होंने भिक्षुणी संघ में प्रवेश की अनुमति मांगी। बुद्ध ने शुरू में इस पर संकोच किया, लेकिन गौतमी की दृढ़ता और बुद्ध के शिष्य आनंद के हस्तक्षेप के बाद, महिलाओं के लिए भिक्षुणी संघ की स्थापना की गई। गौतमी को बौद्ध धर्म की पहली भिक्षुणी बनने का गौरव प्राप्त हुआ।
महिलाओं की सामाजिक स्थिति- Buddha Period Women Status
बुद्ध के समय, महिलाओं को मुख्य रूप से पत्नी, माता या पुत्री के रूप में देखा जाता था। उनका जीवन मुख्यतः घरेलू दायित्वों तक ही सीमित था। वैदिक ग्रंथों में कुछ धार्मिक अधिकार महिलाओं को दिए गए थे, लेकिन समय के साथ यह अधिकार घटते गए। विवाह के बाद महिलाएं अपने पति के घर चली जाती थीं, और विधवाओं की स्थिति विशेष रूप से दयनीय होती थी। उन्हें सामाजिक रूप से हाशिए पर रखा जाता था और उनके पुनर्विवाह की संभावना बहुत कम थी। धार्मिक क्षेत्र में भी महिलाओं को यज्ञ-हवन जैसे कार्यों में भाग लेने का अधिकार नहीं था।
बुद्ध का दृष्टिकोण
गौतम बुद्ध ने लैंगिक समानता की दिशा में क्रांतिकारी कदम उठाए। उनका मानना था कि मोक्ष प्राप्ति में लिंग कोई बाधा नहीं है। उन्होंने यह सिखाया कि आध्यात्मिक प्रगति के लिए पुरुष और महिला दोनों ही समान रूप से सक्षम हैं। यह विचार उस समय के समाज के लिए अभूतपूर्व था, क्योंकि महिलाएं धार्मिक कार्यों में और आध्यात्मिक जीवन में बहुत कम भाग ले पाती थीं। बुद्ध के उपदेशों में करुणा, अहिंसा और समानता पर विशेष जोर दिया गया, जिससे महिलाओं को भी आध्यात्मिक मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया गया।
महाप्रजापति गौतमी की भूमिका
महाप्रजापति गौतमी ने बुद्ध से भिक्षुणी संघ में शामिल होने की अनुमति मांगी, ताकि महिलाएं भी संन्यासिनी बन सकें। बुद्ध ने पहले इस पर हिचकिचाहट दिखाई, लेकिन गौतमी की दृढ़ता और बुद्ध के शिष्य आनंद के समर्थन के बाद, उन्होंने भिक्षुणी संघ की स्थापना की। गौतमी को पहली भिक्षुणी बनने का गौरव प्राप्त हुआ, और यह बौद्ध धर्म में महिलाओं की उपस्थिति और सम्मान का पहला महत्वपूर्ण कदम था।
भिक्षुणी संघ का गठन
भिक्षुणी संघ की स्थापना के साथ महिलाओं को आध्यात्मिक जीवन जीने, ध्यान करने और बुद्ध के उपदेशों का पालन करने का अवसर मिला। बुद्ध ने भिक्षुणियों के लिए कुछ विशेष नियम (अष्ट गरुधम्मा) बनाए, जो उनके आचरण और अनुशासन को नियंत्रित करते थे। हालांकि कुछ विद्वान इन नियमों को असमान मानते हैं, लेकिन उस समय के संदर्भ में यह एक क्रांतिकारी कदम था। इस संघ में महिलाओं को सामाजिक बंधनों से मुक्ति मिली और आत्मनिर्भरता का मार्ग खुला।
महिलाओं का योगदान
गौतमी के नेतृत्व में कई महिलाएं भिक्षुणी संघ में शामिल हुईं, जिनमें राजकुमारियां, गृहिणियां, और विधवाएं शामिल थीं। इन महिलाओं ने बौद्ध धर्म के प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। विशेष रूप से, यशोधरा, जो सिद्धार्थ गौतम की पत्नी थीं, ने अपने पति के तपस्वी जीवन के बारे में सुना और स्वयं भी साधना के रास्ते पर चल पड़ीं। उन्होंने भिक्षुणी बनने का निर्णय लिया और दूसरों के लिए एक आदर्श प्रस्तुत किया। यशोधरा के उदाहरण ने कई अन्य महिलाओं को भी भिक्षुणी बनने की प्रेरणा दी।
इसके अलावा, विशाखा, सुमना, मल्लिकी, खुज्जुत्तरा और आम्रपाली जैसी कई महिलाओं ने भी बौद्ध धर्म के प्रचार में महत्वपूर्ण योगदान दिया। आम्रपाली, जो एक वेश्या थी, ने बुद्ध के उपदेशों को सुना और भिक्षुणी बनीं। उन्होंने बौद्ध धर्म के विकास में बहुत योगदान किया और बुद्ध के उपदेशों का पालन किया।
बुद्ध द्वारा विवाह के निर्देश
बुद्ध ने विवाह के संबंध में कुछ महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश दिए थे। उन्होंने पति-पत्नी के कर्तव्यों को स्पष्ट किया और एक-दूसरे के प्रति सम्मान और विश्वास को महत्व दिया। उन्होंने यह भी बताया कि यौन दुराचार से बचना चाहिए और एक पत्नी से संतुष्ट रहना चाहिए। बौद्ध धर्म में एकपत्नीत्व को महत्व दिया गया है और बुद्ध ने यह घोषणा की कि महिलाएं हर मामले में पुरुषों के बराबर हैं और उनका सम्मान किया जाना चाहिए।