Buddhism in Australia: 2600 साल पुरानी विरासत, आज ऑस्ट्रेलिया का चौथा सबसे बड़ा धर्म, कैसे बढ़ा बौद्ध धर्म का प्रभाव?

Buddhism in Australia
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Buddhism in Australia: ऑस्ट्रेलिया आज भले ही एक आधुनिक और बहुसांस्कृतिक देश हो, लेकिन आध्यात्मिकता की उसकी कहानी में बौद्ध धर्म की मौजूदगी एक खास जगह रखती है। भारत में गौतम बुद्ध द्वारा 2600 साल पहले शुरू हुई यह शिक्षाएं अब दुनिया के चौथे सबसे बड़े धर्म के रूप में खड़ी हैं। वैश्विक स्तर पर 507 मिलियन से ज्यादा लोग बौद्ध धर्म को मानते हैं यानी पूरी दुनिया की करीब 7% आबादी। धीरे-धीरे यही धर्म ऑस्ट्रेलिया में भी सबसे तेजी से बढ़ने वाले समुदायों में शामिल हो चुका है।

2021 की जनगणना बताती है कि ऑस्ट्रेलिया में 2.4% लोग यानी 6.15 लाख से अधिक नागरिक खुद को बौद्ध मानते हैं। सिर्फ न्यू साउथ वेल्स (NSW) में ही करीब 2.22 लाख बौद्ध रहते हैं। दिलचस्प बात यह है कि ऑस्ट्रेलिया में रहने वाले बौद्ध 60 से ज्यादा देशों से आए हैं। तीन-चौथाई बौद्ध ऑस्ट्रेलिया में जन्मे नहीं हैं, और 80% से अधिक अपने घरों में अंग्रेज़ी के अलावा अन्य भाषाएँ बोलते हैं।

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ऑस्ट्रेलिया में बौद्ध समुदाय की विविधता (Buddhism in Australia)

ऑस्ट्रेलिया में बौद्ध धर्म किसी एक रूप तक सीमित नहीं है, बल्कि यह कई परंपराओं और संस्कृतियों के मिश्रण के रूप में मौजूद है। थेरवाद परंपरा मुख्यतः श्रीलंका, थाईलैंड, बर्मा, लाओस और इंडोनेशिया से आए लोगों में प्रचलित है, जबकि महायान परंपरा चीन, जापान, वियतनाम, कोरिया और ताइवान से आए समुदायों में देखने को मिलती है। वज्रयान परंपरा विशेष रूप से तिब्बत, नेपाल, भूटान और चीन से जुड़े लोगों के बीच प्रचलित है। इसके साथ ही पश्चिमी दुनिया में विकसित हो रहे नए रूप जैसे एंगेज्ड बौद्धिज़्म, सेक्युलर बौद्धिज़्म और माइंडफुलनेस आधारित बौद्ध अभ्यास भी ऑस्ट्रेलिया में तेजी से लोकप्रिय हो रहे हैं। न्यू साउथ वेल्स और देश के अन्य राज्यों में ऐसे सैकड़ों बौद्ध केंद्र, मठ और सांस्कृतिक संगठन सक्रिय हैं, जहाँ लोग अपनी भाषा, रीति-रिवाज और परंपराओं को निभाते हुए भी एक साझा आध्यात्मिक धारा से जुड़े रहते हैं।

ऑस्ट्रेलिया में बौद्ध धर्म का सफर: 19वीं सदी से आज तक

Buddhist Council की रिपोर्ट के मुताबिक, ऑस्ट्रेलिया में बौद्ध धर्म का इतिहास देश की प्रवासी कहानी से जुड़ा है। 1850 के दशक में गोल्ड रश के दौरान एशिया से आए मजदूरों और व्यापारियों ने पहली बार इस धर्म को यहां लेकर आए। धीरे-धीरे यह समुदाय जड़ें जमाता गया और आज यह ऑस्ट्रेलिया का चौथा सबसे बड़ा धर्म है। इसे समझने के लिए पूरे इतिहास को तीन हिस्सों में देखना आसान होगा:

शुरुआती दौर: 19वीं सदी के सुनहरे पन्नों में बौद्ध प्रभाव

1848 से 1850 के बीच, गोल्ड रश के समय चीनी मजदूर विक्टोरिया पहुंचे और अपने साथ बौद्ध और ताओ विचार लेकर आए। 1870 में श्रीलंका (तब सीलोन) से बड़ी संख्या में श्रमिक क्वींसलैंड आए, और 1876 में थर्सडे आइलैंड पर पहली बार एक बौद्ध समुदाय की स्थापना हुई। 1890 के दशक में यहां एक बौद्ध मंदिर भी बनाया गया, जिसकी पहचान आज भी दो बोधि वृक्षों के माध्यम से इतिहास में दर्ज है। इसी दौरान 1880 के दशक में पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया के ब्रोम में जापानी समुदाय ने शिंतो-बौद्ध त्योहार मनाना शुरू किया। इस पूरे दौर में बौद्ध धर्म ऑस्ट्रेलिया में आध्यात्मिक रूप से अधिक नहीं, बल्कि प्रवासी समुदायों की सांस्कृतिक पहचान और सामाजिक जीवन का हिस्सा बनकर मौजूद था।

20वीं सदी: आध्यात्मिकता का विस्तार, लेकिन चुनौतियों के साथ

इसके बाद बीसवीं सदी की शुरुआत हुई। इस दौरान ऑस्ट्रेलिया में बौद्ध धर्म के लिए काफी चुनौतीपूर्ण रही। 1901 में लागू हुई White Australia Policy ने एशियाई प्रवास को लगभग रोक दिया, जिससे बौद्ध समुदाय का विस्तार बाधित हुआ। फिर 1911 की जनगणना में केवल 3,269 बौद्ध दर्ज किए गए। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापानी मूल के लोगों को ‘दुश्मन’ मानकर कैद किया गया और युद्ध के बाद कई लोगों को देश वापस भेज दिया गया।

इन वजहों से 1947 की जनगणना में बौद्धों की संख्या घटकर सिर्फ 411 रह गई। इसके बावजूद इस समय कुछ महत्वपूर्ण आध्यात्मिक घटनाएं हुईं। 1910 में बर्मा से पहले भिक्षु U Sasana Dhaja ऑस्ट्रेलिया आए। 1938 में मेलबर्न में बौद्ध स्टडी ग्रुप की स्थापना हुई और 1952 से 1956 के बीच विक्टोरिया और न्यू साउथ वेल्स में बौद्ध सोसायटियों की स्थापना हुई, जिन्होंने बौद्ध धर्म के प्रसार और समुदाय के संगठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

1970 के बाद: नया अध्याय, तेज़ी से बढ़ता बौद्ध समुदाय

1970 के दशक से ऑस्ट्रेलिया में बौद्ध धर्म ने एक नया मोड़ लिया। वियतनाम युद्ध और एशिया में राजनीतिक अस्थिरता के कारण बड़ी संख्या में शरणार्थी ऑस्ट्रेलिया आए, खासकर वियतनाम और कंबोडिया से। 1973 में कातूम्बा में न्यू साउथ वेल्स का पहला बड़ा मठ, Australian Buddhist Vihara, स्थापित हुआ, और 1975 में सिडनी में पहला थाई मंदिर, Wat Buddharangsee, खुला। 1980 के दशक में विपश्यना आंदोलन, ज़ेन बौद्धिज़्म और तिब्बती बौद्ध परंपरा तेजी से फैलने लगी। 1983 में दलाई लामा की सिडनी यात्रा ने ऑस्ट्रेलियाई नागरिकों को बौद्ध विचारों की ओर आकर्षित किया। जैसे-जैसे माइंडफुलनेस, मेडिटेशन और मानसिक स्वास्थ्य पर वैश्विक चर्चा बढ़ी, ऑस्ट्रेलिया में बौद्ध धर्म का प्रभाव और भी व्यापक होता गया।

21वीं सदी: ऑस्ट्रेलिया में बौद्ध धर्म का उभार

नई सदी बौद्ध समुदाय के लिए बेहद महत्वपूर्ण साबित हुई। 2001 में बौद्धों की संख्या बढ़कर 3.6 लाख हो गई, जो 1996 की तुलना में 79% अधिक थी। 2009 में पहली बार ऑस्ट्रेलिया में भिक्षुणियों (महिला साध्वियों) का दीक्षा समारोह संपन्न हुआ, जो बौद्ध धर्म में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ावा देने वाला महत्वपूर्ण कदम था। 2010 के दशक में mindfulness और secular meditation की लहर ने देशभर में लोकप्रियता हासिल की। 2021 तक ऑस्ट्रेलिया में बौद्धों की संख्या बढ़कर 6 लाख के पार पहुंच गई। आज, Christmas Island में बौद्ध धर्म 18% आबादी के साथ प्रमुख धर्मों में शामिल है, जो इसे स्थानीय धार्मिक परिदृश्य में महत्वपूर्ण स्थान देता है।

ऑस्ट्रेलिया में बौद्ध धर्म की वर्तमान तस्वीर

वहीं, ऑस्ट्रेलिया में बौद्ध धर्म की जनसंख्या की बात करें तो 2021 की जनगणना के अनुसार ऑस्ट्रेलिया में कुल 6,10,000 से अधिक लोग बौद्ध धर्म को मानते हैं। इनमें सबसे अधिक बौद्ध आबादी विक्टोरिया (3.07%) और न्यू साउथ वेल्स (2.78%) में है, जबकि टैस्मानिया में सबसे कम 0.79% बौद्ध आबादी पाई जाती है। सिडनी और मेलबर्न शहरों में मिलाकर लगभग 63% बौद्ध समुदाय बसता है। यह आंकड़ा दर्शाता है कि ऑस्ट्रेलिया में बौद्ध समुदाय न केवल मजबूत है, बल्कि लगातार फैलता और विकसित होता जा रहा है।

क्यों बढ़ रहा है बौद्ध धर्म का असर?

आपको बता दें, बौद्ध धर्म का असर ऑस्ट्रेलिया में लगातार बढ़ रहा है, और इसके पीछे कई कारण माने जाते हैं। आधुनिक, तनावपूर्ण जीवनशैली में मेडिटेशन और माइंडफुलनेस ने लोगों को शांति और संतुलन प्रदान किया है, जिससे बौद्ध धर्म की प्रासंगिकता बढ़ी है। इसके अलावा, शरणार्थी और एशियाई देशों से बढ़ती प्रवासी आबादी ने भी बौद्ध समुदाय को मजबूत किया है।

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