Dalai Lama Guru Avalokiteshvara: दलाई लामा के उत्तराधिकारी को लेकर उठे विवाद और चीन के साथ बढ़ते तनाव के बीच, एक सवाल ने सबका ध्यान खींचा है: दलाई लामा के गुरु अवलोकितेश्वर कौन हैं और तिब्बती बौद्ध धर्म में उनकी भूमिका क्या है? ये सवाल सिर्फ तिब्बतियों के लिए नहीं, बल्कि दुनिया भर के बौद्ध अनुयायियों और धार्मिक शोधकर्ताओं के लिए बेहद अहम बन गया है। अवलोकितेश्वर, जिन्हें करुणा का प्रतीक माना जाता है, ने बौद्ध धर्म में अपने अवतारों और सिद्धांतों के माध्यम से संसार को एक अद्भुत दृष्टिकोण दिया है। अब, दलाई लामा के जीवन के इस महत्वपूर्ण मोड़ पर इस रहस्यमयी गुरु के बारे में जानना उतना ही जरूरी हो गया है, जितना तिब्बत के धार्मिक भविष्य को लेकर समझना।
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अवलोकितेश्वर (Avalokiteshvara) कौन हैं?
अवलोकितेश्वर महायान बौद्ध धर्म के प्रमुख बोधिसत्त्वों में से एक हैं। इन्हें करुणा और सहानुभूति का प्रतीक माना जाता है। तिब्बती बौद्ध परंपरा में दलाई लामा को अवलोकितेश्वर का अवतार माना जाता है। विशेष रूप से, जब एक दलाई लामा का निधन होता है, तो अवलोकितेश्वर का नया अवतार इस पृथ्वी पर आता है, और इसे पहचानने का कार्य तिब्बती सन्यासी करते हैं।
अवलोकितेश्वर का नाम और अर्थ
अवलोकितेश्वर का शाब्दिक अर्थ है “जो सभी के दृष्टिकोण को देखता है”। यहाँ ‘अवलोक’ का अर्थ होता है देखना और ‘ईश्वर’ का अर्थ होता है स्वामी। इन्हें करुणा और पीड़ितों की सहानुभूति का सागर माना जाता है। अवलोकितेश्वर का जीवन-दर्शन ‘जब तक प्राणी पीड़ित हैं, तब तक मुझे निर्वाण नहीं’ का संकल्प लिया था। वे ब्रह्मांड की सभी पीड़ाओं को दूर करने के लिए प्रतिबद्ध थे।
अवलोकितेश्वर के प्रतीकवाद और रूप- Dalai Lama Guru Avalokiteshvara
अवलोकितेश्वर का रूप विविध रूपों में प्रस्तुत किया जाता है, जिनमें से सबसे प्रमुख रूप है – हजार भुजाओं वाला अवलोकितेश्वर (Sahasra-bhuja)। ये हजारों भुजाओं और आंखों के साथ प्रदर्शित होते हैं, जो उनकी सर्वदृष्टिता और सर्वशक्तिमत्ता का प्रतीक हैं। इसके अतिरिक्त, कुछ रूपों में उन्हें चार मुखों वाला या बिना हाथों वाला (अभया मुद्रा) भी दिखाया जाता है। इनकी पांचमुखी आकृति और कमल के फूल को धारण करने वाला रूप भी अत्यधिक पूजनीय है।
तिब्बती बौद्ध धर्म में अवलोकितेश्वर की भूमिका
तिब्बती बौद्ध धर्म में अवलोकितेश्वर को अत्यधिक महत्व दिया जाता है। तिब्बती परंपरा में इन्हें छेचुआ शाक्यमुनि (गौतम बुद्ध) के बाद सबसे पूजनीय माना जाता है। तिब्बती लोग मानते हैं कि दलाई लामा का हर अवतार अवलोकितेश्वर का एक ‘जीवंत रूप’ होता है। जब एक दलाई लामा का देहांत होता है, तो अवलोकितेश्वर अपना प्रकाश छोड़ते हुए एक नए शरीर में अवतार लेते हैं, और तिब्बती सन्यासी उसे पहचान कर दलाई लामा के रूप में उसे घोषित करते हैं।
अवलोकितेश्वर का जाप और साधना
अवलोकितेश्वर का सबसे प्रसिद्ध मंत्र है ‘ओं मणि पद्मे हूं’ (ॐ मणिपद्मे हूं), जिसे संसारभर में बौद्ध साधक बड़े श्रद्धा और विश्वास के साथ जपते हैं। यह मंत्र करुणा के छह गुणों का प्रतिनिधित्व करता है, और इसे जाप करने से साधकों को दयालुता, शांति, और सेवा की भावना प्राप्त होती है। यह मंत्र न सिर्फ तिब्बत, नेपाल, भूटान, और भारत में बल्कि पूरे एशिया में व्यापक रूप से पूजित है।
अवलोकितेश्वर का पूजन और महत्त्व
अवलोकितेश्वर की पूजा का एक विशेष महत्व है, खासकर तिब्बत, नेपाल, भूटान और पूर्वोत्तर भारत में। इनकी प्रतिमाएं अक्सर मंदिरों और स्तूपों पर उकेरी जाती हैं, जो दर्शाती हैं कि करुणा सर्वव्यापी है। इन प्रतिमाओं में हजारों छोटे-छोटे रूपों में अवलोकितेश्वर को दर्शाया जाता है, जो यह बताने का प्रतीक है कि करुणा केवल एक व्यक्ति के लिए नहीं, बल्कि सभी जीवों के लिए है।
दलाई लामा के गुरु कौन हैं?
14वें दलाई लामा तेंज़िन ग्यात्सो के जीवन में कई महान बौद्ध गुरु रहे हैं जिन्होंने उन्हें बौद्ध धर्म, विशिष्ट योग, ध्यान और तिब्बती विवेकधर्म की गहरी शिक्षाएं दीं। इनमें से प्रमुख तीन गुरु थे:
- लिंग रिनपोचे (Ling Rinpoche) – ये दलाई लामा के सबसे प्रमुख गुरु थे, जिन्होंने उन्हें त्सोंगखपा के दर्शन और विशिष्ट योग की शिक्षा दी।
- त्रिजांग डोर्जे चंग रिनपोचे (Trijang Dorje Chang Rinpoche) – त्रिजांग रिनपोचे ने तिब्बती विवेकधर्म (Lamrim) और त्सोंगखपा के शास्त्रों पर गहरी दृष्टि दी।
- केया-जीन लामा और अन्य उपगुरु – इन गुरुओं ने शांति और ध्यान की साधना सिखाई और दलाई लामा को तांत्रिक अभ्यास की शिक्षा भी दी।
इन गुरु-शिष्य संबंधों ने दलाई लामा को गहन तांत्रिक संप्रदाय, शास्त्रीय विवेक और सार्वभौमिक करुणा की शिक्षा दी। इनके मार्गदर्शन में ही दलाई लामा ने अपने आध्यात्मिक पथ को उच्चतम स्तर तक पहुंचाया।
