Illuminati: दुनिया में बहुत से रहस्य हैं, लेकिन कुछ रहस्य ऐसे होते हैं जो जितना जानने की कोशिश करो, उतना ही और उलझाते चले जाते हैं। इनमें सबसे ऊपर नाम आता है इल्युमिनाटी (Illuminati) का। सदियों पुराना यह नाम आज भी लोगों की रगों में रोमांच, डर और उत्सुकता एक साथ भर देता है। सबसे दिलचस्प बात यह है कि दुनिया का बड़ा हिस्सा अब तक इसके अस्तित्व को नकारता आया है, जबकि उतनी ही बड़ी आबादी मानती है कि यह गुप्त संगठन आज भी जिंदा है और पर्दे के पीछे बैठकर पूरी दुनिया को अपने हिसाब से मोड़ रहा है।
किसी के पास इसका कोई सबूत नहीं, कोई आधिकारिक सदस्य नहीं, न कोई दफ्तर, न कोई नामों की सूची फिर भी लोग इसे दुनिया का सबसे ताकतवर और खतरनाक गुप्त नेटवर्क मानते हैं। दुनिया की सबसे बड़ी खुफिया एजेंसियों से लेकर सुपरपावर देशों तक, कोई भी यह दावा नहीं कर पाया कि इल्युमिनाटी आखिर है कहाँ… या है भी कि नहीं। और शायद यही रहस्य इसे इतिहास का सबसे दिलचस्प और डराने वाला नाम बना देता है।
क्या है इल्युमिनाटी? दुनिया जिसे मानने को तैयार नहीं, पर डरती जरूर है (Illuminati)
कहा जाता है कि इल्युमिनाटी 18वीं सदी में बना एक गुप्त संगठन था जिसके सदस्यों का मानना था कि दुनिया का नियंत्रण धार्मिक नियमों से नहीं, बल्कि स्वतंत्र सोच से होना चाहिए। आरोप यह भी लगते हैं कि यह समूह भगवान को नहीं बल्कि शैतान लूसिफर की पूजा करता था। इस संगठन के सदस्य दुनिया के अलग-अलग देशों में गुप्त रूप से फैले हुए बताए जाते हैं। कहा जाता है कि वे पर्दे के पीछे बैठकर बड़े-बड़े फैसलों को प्रभावित करते हैं चाहे वह राजनीति हो, युद्ध हो, अर्थव्यवस्था हो या मनोरंजन उद्योग। लेकिन सवाल यही है कि अगर यह संगठन इतना ताकतवर है तो इसकी असलियत का कभी कोई सबूत क्यों नहीं मिला?
कैसे हुई इल्युमिनाटी की शुरुआत? एक प्रोफेसर का बगावत से भरा आइडिया
इल्युमिनाटी की शुरुआत 1 मई 1776 में जर्मनी के बेवेरिया शहर में हुई। इसके संस्थापक थे एडम वाइज़हॉप्ट, जो उस समय जर्मनी की यूनिवर्सिटी ऑफ गॉटिंगन में ‘केनन लॉ और प्रैक्टिकल फिलॉसफी’ के प्रोफेसर थे। एडम को लगता था कि लोग कैथोलिक चर्च के नियमों में बंधकर अपनी सोच व्यक्त नहीं कर पा रहे हैं। वे चाहते थे कि लोग स्वतंत्र रूप से सोचें, खुद फैसले लें और अपनी इच्छानुसार जीवन जिएं। इसी विचार से उन्होंने एक ऐसी गुप्त सोसाइटी का निर्माण करने की योजना बनाई जो धार्मिक बंधनों से मुक्त हो। 1776 में हुई पहली सीक्रेट मीटिंग में उनके साथ सिर्फ पाँच लोग थे। लेकिन एक साल के भीतर यह संख्या 3000 तक पहुँच गई। यह बात खुद उस दौर की सरकारों को चौंकाने के लिए काफी थी।
सख्त नियम और रहस्यमयी प्रतीक चिन्ह
एडम वाइज़हॉप्ट ने इस संगठन का नाम Illuminati रखा, जिसका लैटिन में अर्थ है“प्रकाशित”, यानी ऐसे लोग जो ख़ुद को बाकी समाज से अधिक बुद्धिमान मानते हैं।
संगठन के कथित नियम बेहद अजीब बताए जाते हैं जैसे:
- सदस्यों को भगवान में विश्वास नहीं करना
- लूसिफर की पूजा जरूरी मानी जाती थी
- किसी भी कीमत पर अपनी पहचान छिपानी होती थी
- समाज पर नियंत्रण के लिए गुप्त गतिविधियों का सहारा लिया जाता था
संगठन का आधिकारिक लोगो कभी सामने नहीं आया, लेकिन एक एक आंख वाला त्रिकोणीय चिन्ह सदियों से इसे दर्शाता रहा है। यह प्रतीक दुनिया के कई नोटों, स्मारकों और पेंटिंग्स में देखने को मिलने के कारण और भी चर्चाओं में रहा।
कब और कैसे बदनाम हुआ इल्युमिनाटी?
शुरुआती दौर में यह समूह स्वतंत्र विचारों का समर्थक माना जाता था, लेकिन समय के साथ इस पर काले जादू और हिंसक अनुष्ठानों के आरोप लगने लगे। कहा गया कि इसके सदस्य शैतान को खुश करने के लिए इंसानों की बलि देते थे और आत्माओं को गिरवी रखते थे। कुछ आरोप यह भी लगाए गए कि यह समूह ईसाई धर्म का विरोध करने वालों को विशेष दर्जा देता था और कई देशों में अवांछनीय माने जाने वाले एबॉर्शन को बढ़ावा देता था। कई कथित सदस्यों में आत्महत्या को भी “बलिदान” का रूप दिया जाता था। इतने आरोपों के बाद सरकारों को इस समूह का असर खतरनाक लगने लगा।
जर्मन सरकार की कार्रवाई और पारदर्शी स्याही वाली कहानी
1779 में जर्मन सरकार ने इस संगठन पर सख्त कार्रवाई शुरू की। इल्युमिनाटी से जुड़ने वालों को मौत की सजा देने का फरमान जारी किया गया। कई घरों में छापेमारी हुई और उस दौरान उनके पास से एक “ट्रांसपेरेंट इंक” मिली, जिससे वे लोग एक-दूसरे को गुप्त संदेश भेजते थे। 1780 आते-आते सरकार ने इस संगठन पर पूरी तरह बैन लगा दिया। एडम वाइज़हॉप्ट को यूनिवर्सिटी से निकाल दिया गया और शहर से भी बाहर कर दिया गया। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही है कि एडम के जाने के बाद भी यह संगठन आखिर कैसे दुनिया में फैला रहा?
जेएफके हत्या से लेकर फ्रेंच क्रांति तक हर जगह इल्युमिनाटी का शक
1963 में अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी की हत्या आज भी रहस्य है। इस घटना से ठीक पहले एक महिला कैमरा जैसी बंदूक पकड़े दिखाई दी थी जिसे अब “बबुश्का लेडी” के नाम से जाना जाता है। उसकी पहचान आज तक सामने नहीं आई। कई सिद्धांत मानते हैं कि कैनेडी की हत्या के पीछे इल्युमिनाटी का हाथ था, क्योंकि कैनेडी खुले तौर पर कई गुप्त संगठनों के खिलाफ बोलते थे। इतना ही नहीं, कई इतिहासकार फ्रेंच रेवोल्यूशन को भी इल्युमिनाटी की “पर्दे के पीछे से की गई कार्रवाई” बताते हैं। हालांकि इन आरोपों के कोई प्रमाण कभी नहीं मिल सके।
हॉलीवुड और म्यूज़िक इंडस्ट्री के सेलेब्स भी इस ग्रुप से जुड़े बताए जाते हैं
आज की दुनिया में भी इल्युमिनाटी का नाम सबसे ज्यादा मनोरंजन उद्योग में चर्चा का विषय है। माना जाता है कि कई ग्लोबल सितारे अपने कॉन्सर्ट्स, एलबम्स और परफॉर्मेंस में इल्युमिनाटी से जुड़े प्रतीक दिखाते हैं।
इनमें शामिल हैं:
- कैटी पैरी
- जस्टिन बीबर
- माइली सायरस
- लेडी गागा
- किम कार्दशियन
- कान्ये वेस्ट
- ब्रिटनी स्पीयर्स
- एमिनेम
- मडोना
- और भारतीय रैपर यो यो हनी सिंह
हालांकि, इनमें से किसी ने भी खुलकर स्वीकार नहीं किया, लेकिन इनके वीडियो में त्रिकोण, एक आंख और गुप्त संकेत का उपयोग अक्सर देखने को मिलता है, जिससे चर्चाएं और भी बढ़ जाती हैं।
क्या इल्युमिनाटी आज भी जिंदा है?
21वीं सदी में भी यह मान्यता बनी हुई है कि इल्युमिनाटी पूरी तरह खत्म नहीं हुआ। दुनिया के कई लोग मानते हैं कि यह संगठन आज भी छुपकर काम कर रहा है और सरकारों, बड़ी कंपनियों और फिल्म-इंडस्ट्री पर अपने तरीके से असर डालता है। कुछ लोग यह दावा भी करते हैं कि इस समूह में शामिल लोगों को हर तरह की सफलता और ताकत मिलती है, बशर्ते वे इसकी गुप्त शपथ निभाएं।
सच क्या है?
इल्युमिनाटी के अस्तित्व को लेकर दुनिया आज भी दो हिस्सों में बंटी है। कोई इसे सिर्फ कहानी मानता है, तो कोई इसे दुनिया की सबसे ताकतवर छाया सरकार कहता है। इस बात का कोई ठोस सबूत नहीं है कि यह संगठन आज भी मौजूद है या कभी पूरी तरह सक्रिय हुआ। लेकिन सोशल मीडिया, फिल्मों, डॉक्यूमेंट्रीज़ और इंटरनेट पर लगातार उभरते दावों ने इसे एक ऐसा रहस्य बना दिया है जो शायद कभी पूरी तरह सुलझ नहीं पाएगा।
