Gurdwara Chuna Mandi: लाहौर के कश्मीरी दरवाज़े के समीप पुरानी कोतवाली चौक के नज़दीक स्थित, गुरुद्वारा श्री जनम स्थान गुरु रामदास सिख धर्म के इतिहास में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थल है। यह वही स्थान है जहां चौथे सिख गुरु, गुरु रामदास जी का जन्म हुआ था। यह गुरुद्वारा न केवल उनकी जन्मभूमि के रूप में पूजनीय है, बल्कि सिख इतिहास में एक परिवर्तनकारी युग की आध्यात्मिक शुरुआत का भी प्रतीक है। लाहौर के भीड़-भाड़ वाले चूना मंडी बाज़ार के बीच बसा यह गुरुद्वारा आमतौर पर ‘गुरुद्वारा चूना मंडी’ के नाम से जाना जाता है।
गुरु रामदास जी का जन्म और प्रारंभिक जीवन- Gurdwara Chuna Mandi
गुरु रामदास जी का जन्म 26 सितंबर 1534 को चूना मंडी, लाहौर में हुआ था। वे ठाकुर दास और जसवंती के पुत्र थे। उनके माता-पिता ने वर्षों की प्रार्थना और भक्ति के बाद उन्हें प्राप्त किया था। बचपन में उनका नाम “जेठा” था। उनका स्वभाव विनम्र, आध्यात्मिक और शांतिपूर्ण था। वे अपने माता-पिता की सेवा में अग्रसर रहते थे और ईश्वर की भक्ति में लगे रहते थे। उनकी यही भावनाएं और संस्कार भविष्य में उनके गुरु बनने के लिए नींव बने।
आध्यात्मिक यात्रा का आरंभ
सात वर्ष की आयु में जेठा ने अपने माता-पिता को खो दिया। इसके बाद उन्होंने आत्मनिर्भरता के लिए बासी उबले हुए चने बेचने का काम शुरू किया। वे चने लेकर रावी नदी के किनारे गए, जहां उन्होंने कई साधुओं को भोजन कराया। साधुओं ने उनकी दयालुता और सेवा भावना की प्रशंसा करते हुए उनकी भलाई की कामना की। यही घटना गुरु रामदास जी की आध्यात्मिक यात्रा की शुरुआत मानी जाती है, जिसने बाद में पूरे सिख समुदाय को आध्यात्मिक और सामाजिक रूप से प्रेरित किया।
गुरुद्वारा श्री जनम स्थान का ऐतिहासिक महत्व
गुरु रामदास जी के पूर्वजों का यह छोटा सा घर समय के साथ एक पवित्र स्थल बन गया। बाद में सिख शासकों ने इस स्थल की महत्ता को समझते हुए इसे संरक्षित और पुनर्निर्मित किया। महाराजा रणजीत सिंह ने यहां के आसपास के मकानों को खरीदकर गुरुद्वारे का पुनर्निर्माण कराया। यह गुरुद्वारा श्री हरमंदिर साहिब (स्वर्ण मंदिर) की वास्तुकला की तरह बनाया गया है, जो गुरु रामदास जी के प्रति सिख समुदाय की श्रद्धा को दर्शाता है।
गुरुद्वारे के अंदर नियमित रूप से श्री गुरु ग्रंथ साहिब का प्रकाश (धार्मिक पाठ) होता है। इसके अलावा, गुरुद्वारे के प्रांगण में शांतिपूर्ण चिंतन के लिए जगह है और नीचे के स्तर पर लंगर खाना है, जो गुरु रामदास जी के निस्वार्थ सेवा के सिद्धांत को जीवित रखता है।
महाराजा रणजीत सिंह का योगदान
महाराजा रणजीत सिंह ने इस गुरुद्वारे के पुनर्निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने क्वाज़ी से आसपास के मकानों को खरीदकर गुरुद्वारे के लिए जमीन मुहैया कराई। 122 फुट 6 इंच गुणा 97 फुट 6 इंच के विशाल आयाम वाले इस गुरुद्वारे का निर्माण एक भव्य परियोजना थी, जो गुरु रामदास जी के प्रति सिख समुदाय की गहरी श्रद्धा को दर्शाती है।
गुरु रामदास जी की शिक्षाएं और विरासत
गुरु रामदास जी ने समता, भक्ति और निस्वार्थ सेवा को सिख धर्म का आधार बनाया। उनके विचार आज भी विश्व के लाखों सिखों के जीवन का मार्गदर्शन करते हैं। उनका जीवन सरलता, विनम्रता और आध्यात्मिक समर्पण का संदेश देता है।
तीर्थयात्रियों के लिए महत्वपूर्ण स्थल
जो यात्री Crossworld Visa के माध्यम से यात्रा कर रहे हैं, उनके लिए गुरुद्वारा श्री जनम स्थान गुरु रामदास एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है। यहां आकर वे गुरु रामदास जी के जीवन की शुरुआती कहानियों को जान सकते हैं, सिख धर्म की नींव को समझ सकते हैं और गुरुओं की समृद्ध आध्यात्मिक विरासत से जुड़ सकते हैं।
गुरुद्वारा श्री जनम स्थान गुरु रामदास न केवल एक ऐतिहासिक स्मारक है, बल्कि यह एक आध्यात्मिक धरोहर भी है जो सिख धर्म के जीवन्त और गूढ़ संदेशों को जीवित रखता है। यह स्थल श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक शांति और गुरु रामदास जी के आदर्शों से प्रेरणा लेने का अवसर प्रदान करता है। यहाँ की वास्तुकला, धार्मिक कार्यक्रम और सेवा का माहौल हर आने वाले को एक गहरे आध्यात्मिक अनुभव से जोड़ता है।