Hate against Sikhs in America: 11 सितंबर 2001 को अमेरिका में हुए आतंकी हमलों ने न केवल विश्व के इतिहास में एक काला अध्याय जोड़ा, बल्कि अमेरिकी समाज के अंदर एक नई चुनौती भी पैदा की। अल-कायदा के 19 आतंकवादियों द्वारा चार विमानों का हाईजैक कर वर्ल्ड ट्रेड सेंटर, पेंटागन और एक खेत में टकराने वाले हादसे ने करीब 2,977 लोगों की जान ले ली। इस हमले ने न केवल अमेरिका की सुरक्षा नीतियों को बदल दिया, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक स्तर पर भी गहरे घाव छोड़े। विशेष रूप से सिख समुदाय, जो अपनी पगड़ी और दाढ़ी की विशिष्ट पहचान के लिए जाना जाता है, इस त्रासदी के बाद नफरत और हिंसा का शिकार बना।
आतंक के बाद उभरी नफरत- Hate against Sikhs in America
9/11 के हमलों के तुरंत बाद अमेरिका में इस्लामोफोबिया की लहर दौड़ गई। आतंकियों को इस्लाम से जोड़कर देखा गया, लेकिन इससे सिख समुदाय को भारी नुकसान हुआ क्योंकि उनकी पगड़ी और दाढ़ी को अक्सर मुस्लिम चरमपंथी समझा गया। बीबीसी हिंदी की रिपोर्ट के अनुसार, 9/11 के बाद नस्लीय हिंसा की घटनाएं 17 गुना बढ़ गईं। सिखों पर शारीरिक हमले, गाली-गलौज और संपत्ति को नुकसान पहुंचाने की घटनाएं आम हो गईं।
पहली प्रमुख घटना थी बलवीर सिंह सोढ़ी की हत्या। 15 सितंबर 2001 को, एरिजोना में एक गैस स्टेशन के मालिक बलवीर सिंह को एक हमलावर ने गोली मार दी, क्योंकि उसने उन्हें “आतंकवादी” समझ लिया। यह घटना सिखों के खिलाफ बढ़ती हिंसा को राष्ट्रीय स्तर पर उजागर करने वाली पहली घटनाओं में से एक थी। सिख कोएलिशन के अनुसार, 2001 के अंत तक सिखों के खिलाफ सैकड़ों हिंसक घटनाएं दर्ज की गईं, जिनमें से कई को आधिकारिक तौर पर हेट क्राइम के रूप में वर्गीकृत किया गया।
अज्ञानता और गलतफहमियों का कारण
सिखों के प्रति नफरत की जड़ में उनकी धार्मिक पहचान को समझने में लोगों की अज्ञानता थी। पगड़ी और दाढ़ी, जो सिख धर्म के अनिवार्य अंग हैं, को आतंकवाद से जोड़कर देखा गया। न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, मीडिया में मुस्लिम समुदाय के प्रति नकारात्मक रवैया इस भ्रांति को और हवा देता रहा। सिखों को “आतंकवादी” और “बिन लादेन” जैसे अपमानजनक शब्दों से संबोधित किया गया।
सिख समुदाय पर गहरा असर
हेट क्राइम का प्रभाव सिख समुदाय पर गहरा और दीर्घकालिक रहा। कई सिखों ने अपनी धार्मिक पहचान छुपाने का प्रयास किया। बच्चे स्कूलों में उत्पीड़न का सामना करते रहे, और कार्यस्थलों पर भेदभाव आम बात हो गई। सिख कोएलिशन के एक सर्वे के अनुसार 9/11 के बाद 60% से अधिक सिख बच्चों को स्कूलों में धमकाया गया।
इस उत्पीड़न ने मानसिक स्वास्थ्य पर भी बुरा असर डाला। भय, तनाव और अवसाद के मामले बढ़े। आर्थिक नुकसान भी हुआ क्योंकि कई सिख व्यवसायियों की दुकानों और संपत्तियों को क्षति पहुंचाई गई।
एफबीआई के आंकड़े और कानूनी पहल
संघीय जांच ब्यूरो (एफबीआई) के मुताबिक, वर्ष 2020 में सिखों के खिलाफ नफरत से प्रेरित अपराध के 67 मामले दर्ज किए गए, जो 2015 के बाद सबसे अधिक हैं। इससे पहले एफबीआई इस तरह की घटनाओं की निगरानी नहीं करता था। कानून प्रवर्तन एजेंसियां इन अपराधों को रोकने में नाकाम रहीं। सिख कोलिशन के कार्यकारी निदेशक सतजीत कौर ने कहा कि इस जिम्मेदारी का बोझ उनकी तरह के संगठनों पर आ गया है, जिन्होंने समस्या की पहचान कर समर्थन जुटाया। संगठन ने आतंकवादी हमले के बाद कुछ महीनों में ही 300 से अधिक हिंसा और भेदभाव की घटनाओं का दस्तावेजीकरण किया।
कानूनी और सामाजिक कदम
इस तरह से सिख समुदाय ने हेट क्राइम के खिलाफ आवाज उठाई। सिख कोएलिशन और सिख अमेरिकन लीगल डिफेंस एंड एजुकेशन फंड (SALDEF) जैसे संगठन जागरूकता अभियान चलाने लगे और कानूनी सहायता प्रदान की। 2012 में विस्कॉन्सिन के एक गुरुद्वारे में हुए नरसंहार ने इस मुद्दे को फिर से राष्ट्रीय चर्चा में ला दिया। इस घटना के बाद अमेरिकी सरकार ने सिखों के खिलाफ हेट क्राइम की विशेष श्रेणी बनाई और एफबीआई ने ऐसे मामलों पर कड़ी नजर रखनी शुरू की। हालांकि आज भी सिखों के खिलाफ हेट क्राइम की घटनाएं पूरी तरह खत्म नहीं हुई हैं।