Kidnapping of Rubaiya Sayeed: कश्मीर की राजनीति और भारत की आंतरिक सुरक्षा के इतिहास में 8 दिसंबर 1989 का दिन एक निर्णायक मोड़ बनकर सामने आया। यह वह दिन था जब तत्कालीन केंद्रीय गृहमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी रूबैया सईद का JKLF (जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट) द्वारा अपहरण कर लिया गया। इस घटना ने कश्मीर में आतंकवाद के उस दौर की शुरुआत की जिसे आज भी भारत के सबसे काले अध्यायों में गिना जाता है।
कौन थे मुफ्ती मोहम्मद सईद? (Kidnapping of Rubaiya Sayeed)
अनंतनाग के बिजबेहड़ा से ताल्लुक रखने वाले मुफ्ती मोहम्मद सईद कश्मीर की राजनीति में बेहद महत्वाकांक्षी नेता माने जाते थे। उन्होंने कांग्रेस, नेशनल कॉन्फ्रेंस और जन मोर्चा जैसी पार्टियों में सक्रिय भूमिका निभाई। 1989 में जब वी.पी. सिंह प्रधानमंत्री बने, तो उन्होंने सईद को भारत का पहला मुस्लिम गृहमंत्री नियुक्त किया।
रुबैया सईद का अपहरण और सरकार की घुटने टेकती रणनीति
8 दिसंबर को रुबैया, जो श्रीनगर के लाल डेड मेडिकल कॉलेज की छात्रा थीं, क्लास के बाद नौगाम स्थित अपने घर लौट रही थीं। तभी JKLF के पांच आतंकियों ने बस को हाईजैक कर लिया और रुबैया को पंपोर के पास नटिपोरा इलाके में ले जाकर एक नीली मारुति में बिठा दिया। बाद में उन्हें सोपोर के एक उद्योगपति के घर में छुपाया गया।
इस हाइजैकिंग के पीछे यासीन मलिक और अशफाक माजिद वानी जैसे कुख्यात आतंकियों के नाम सामने आए। आतंकियों ने सरकार के सामने अपने पांच साथियों की रिहाई की मांग रखी। जब तक आतंकियों ने एक लोकल अखबार में फोन कर अपनी शर्तें नहीं बताईं, तब तक प्रशासन को इस घटना की भनक तक नहीं लगी थी।
सरकार का सरेंडर और कश्मीर में आतंक की दस्तक
पांच दिनों की ऊहापोह के बाद 12 दिसंबर को केंद्र सरकार ने आतंकियों की शर्तें मान लीं और पांच खूंखार आतंकियों को रिहा कर दिया गया। कुछ ही घंटों बाद रुबैया को छोड़ दिया गया, लेकिन इस फैसले के दूरगामी परिणाम बेहद खतरनाक साबित हुए।
13 दिसंबर को श्रीनगर की सड़कों पर आतंकी हीरो बनकर निकले। ‘आजादी’ के नारे लगे, हथियारबंद जुलूस निकले और रिहा किए गए आतंकी पाकिस्तान भाग निकले। इस एक रिहाई ने JKLF जैसे संगठनों के हौसले बुलंद कर दिए और भारतीय राज्य के प्रति अविश्वास गहरा गया।
आतंकवाद की बाढ़ और बेगुनाहों का खून
1990 से घाटी में आतंकवाद ने जड़ें जमा लीं। पाकिस्तान में चल रहे ISI समर्थित ट्रेनिंग कैंपों में हजारों कश्मीरी युवाओं को हथियार चलाने की ट्रेनिंग दी गई। अपहरण, हत्याएं और धमकियों का दौर शुरू हुआ।
6 अप्रैल 1990 को कश्मीर यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर डॉ. मुशीर उल हक और उनके सचिव अब्दुल घनी को अगवा कर मौत के घाट उतार दिया गया। 11 अप्रैल को HMT फैक्ट्री के जनरल मैनेजर H.L. खेड़ा की हत्या ने घाटी में भय का माहौल और गहरा कर दिया।
नतीजा: पलायन, पीड़ा और इतिहास की टीस
सरकारी कर्मचारियों, नेशनल कॉन्फ्रेंस के कार्यकर्ताओं और कश्मीरी पंडितों का बड़े पैमाने पर पलायन हुआ। मानवाधिकार हनन, तलाशी अभियानों और फर्जी एनकाउंटर की खबरें सामने आईं। कश्मीर अब सिर्फ एक भू-राजनीतिक मुद्दा नहीं रह गया था, यह हिंसा, भय और अस्थिरता का मैदान बन चुका था।
रूबैया सईद का अपहरण सिर्फ एक बेटी का मामला नहीं था, वह भारतीय शासन व्यवस्था की कमजोरी, कश्मीर की उथल-पुथल और आतंकवाद की शुरुआत का प्रतीक बन गया। इस एक निर्णय ने ना सिर्फ सईद की राजनीति को बल्कि पूरी घाटी की किस्मत को नई और भयावह दिशा दे दी – एक ऐसी दिशा, जिसमें आज भी धुआं, दर्द और दहशत बाकी है।