Operation Kashmir: 1947 की वो रात जब कश्मीर पर टूट पड़े दुश्मन, भारतीय जवानों ने पलटवार से बदल दिया खेल

Operation Kashmir
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Operation Kashmir: 30 अक्टूबर 1947 की ठंडी रात कश्मीर घाटी के लिए बेहद निर्णायक साबित हुई। माहौल में सन्नाटा जरूर था, लेकिन श्रीनगर से करीब 25 किलोमीटर दूर पट्टन इलाके में खतरे की आहट महसूस की जा रही थी। इंटेलिजेंस रिपोर्ट के मुताबिक, करीब 200 ट्रक और 1500 से 2000 के बीच हथियारों से लैस पाकिस्तानी कबायली उस इलाके में पहुंच चुके थे। ये वही कबायली थे जो श्रीनगर पर कब्जा करने के इरादे से बढ़ रहे थे।

29 और 30 अक्टूबर की रात दुश्मन की तरफ से हल्की फायरिंग जरूर हुई, लेकिन कोई बड़ा नुकसान नहीं हुआ। भारतीय सेना पूरी तरह सतर्क थी, लेकिन शाम ढलते ही हालात अचानक बिगड़ने लगे।

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भारतीय सेना के काफिले पर घात लगाकर हमला- Operation Kashmir

30 अक्टूबर की शाम 7 बजे भारतीय सेना के तीन ट्रक पट्टन के पास एक ब्रिज पार कर रहे थे, तभी दुश्मनों ने घात लगाकर हमला कर दिया। गोलियों की बौछार से इलाका दहल उठा।
पहले ट्रक का ड्राइवर गोली लगने से घायल हुआ, जबकि दूसरे ट्रक में मौजूद कुमाऊं रेजिमेंट के तीन जवान शहीद हो गए और दो गंभीर रूप से जख्मी हुए। तीसरे ट्रक पर भी फायरिंग हुई, लेकिन वहां कोई हताहत नहीं हुआ।
हमले की खबर मिलते ही 1 (पैरा) कुमाऊं की एक फाइटिंग पेट्रोल टीम तुरंत मौके के लिए रवाना की गई, लेकिन तब तक दुश्मन पीछे हट चुका था। वहां बस टूटे ट्रक, खाली कारतूस और गोलियों के निशान बचे थे।

रात में बड़ा हमला और भारतीय जवाबी कार्रवाई

रात करीब 8 बजे लगभग 1000 कबायली लड़ाके पट्टन के मुख्य मोर्चे पर टूट पड़े। वे भारतीय पोजीशन से सिर्फ 55 मीटर की दूरी तक पहुंच गए थे। लेकिन भारतीय जवानों ने डटकर मुकाबला किया।
दुश्मन के पास मशीन गन और मोर्टार थे, तो वहीं भारतीय सेना ने मीडियम मशीन गन से जोरदार पलटवार किया। गोलियों की आवाज़ से पूरा इलाका गूंज उठा। कुछ देर बाद दुश्मन बुरी तरह हिल गया और अपने घायल साथियों को छोड़कर भागने लगा।

एयरलिफ्ट से पहुंचे सैकड़ों जवान और हॉविट्जर तोपें

इसी दिन 161 ब्रिगेड का हेडक्वार्टर श्रीनगर पहुंचा, जहां ब्रिगेडियर जेसी कटोच ने कमान संभाली। उसी शाम 394 जवानों को एयरलिफ्ट कर घाटी में उतारा गया, जिनमें 1 सिख, 1 (पैरा) कुमाऊं और 1 महार रेजिमेंट के सैनिक शामिल थे।
इनके साथ 3.7 इंच हॉविट्जर तोपें भी भेजी गईं, जिससे भारतीय सेना की ताकत कई गुना बढ़ गई।

31 अक्टूबर की सुबह घाटी में कुछ शांति जरूर थी, लेकिन रिपोर्ट्स के मुताबिक 300 से ज्यादा कबायली दो दिशाओं से भारतीय पोजीशन को घेरने की कोशिश कर रहे थे। तभी निरीक्षण के दौरान ब्रिगेडियर कटोच के पैर में गोली लगी, हालांकि यह जख्म मामूली था।

एयरफोर्स आई एक्शन में, दुश्मन हुआ तबाह

31 अक्टूबर की सुबह इंडियन एयरफोर्स भी पूरी ताकत के साथ मैदान में उतर गई। अंबाला से उड़ान भरते हुए तीन टेम्पेस्ट फाइटर प्लेन ने पट्टन और बारामूला के बीच दुश्मनों पर जबरदस्त हमला किया। चार स्पिटफायर और दो हार्वर्ड विमान भी श्रीनगर एयरफील्ड पर तैनात कर दिए गए।
उस दिन 485 सैनिकों और 46,000 किलो से ज्यादा सप्लाई को हवाई रास्ते से घाटी में पहुंचाया गया।

अक्टूबर के अंत तक भारतीय सेना ने घाटी में न केवल अपनी पकड़ मजबूत कर ली थी, बल्कि दुश्मनों के हौसले भी पस्त कर दिए थे। यही वो मोड़ था, जहां से कश्मीर की लड़ाई ने नया रुख लिया और भारतीय सैनिकों की बहादुरी ने इतिहास में अपना नाम दर्ज करा लिया।

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