Truck Driver Kamal Nayan story: साल 1965… भारत-पाकिस्तान युद्ध का वह दौर जब पूरा देश एक साथ खड़ा दिखाई देता था कि चाहे सैनिक हों, किसान हों या फिर आम लोग। प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के नेतृत्व में भारत केवल मोर्चे पर ही नहीं, बल्कि मनोबल और एकता में भी आगे था। यही वह साल था जब पूरे देश ने हफ्ते में एक दिन उपवास रखा, जब भारतीय सेना ने पाकिस्तान की धरती पर तिरंगा फहराया, जब तनोट मंदिर पर गिराए गए हजारों बम भी नहीं फटे और इसी साल सामने आई वह कहानी जिसे आज भी सुनकर लोग दंग रह जाते हैं।
यह कहानी है एक साधारण ट्रक ड्राइवर कमल नयन की, जिसने अपनी जान की परवाह किए बिना युद्ध के बीच जाकर वह काम कर दिखाया, जिसकी कल्पना आम तौर पर सिर्फ फिल्मों में की जाती है।
इच्छोगिल नहर पार कर भारत पहुंचा था पाकिस्तान का दिल लाहौर (Truck Driver Kamal Nayan story)
युद्ध के शुरुआती दिनों में भारत ने वह कर दिखाया जिसे पाकिस्तान ने कभी संभव नहीं माना था। मेजर जनरल प्रसाद की अगुवाई में भारतीय सेना ने इच्छोगिल नहर पार करते हुए लाहौर की ओर तेज़ी से बढ़त बनाई। नहर को पाकिस्तान अपनी प्राकृतिक सुरक्षा रेखा मानता था, लेकिन भारतीय सैनिकों ने इसे पार कर लाहौर एयरफील्ड तक झंडा फहरा दिया।
ट्रक ड्राइवर कमल नयन की बहादुरी
युद्ध के इस पूरे सफर में सबसे रोमांचक और प्रेरणादायक कहानी एक आम आदमी की है एक ऐसे ट्रक ड्राइवर की जिसके पास हथियार नहीं था, लेकिन हिम्मत किसी सैनिक से कम भी नहीं थी। 30 अगस्त 1965 को कमल नयन, मलेरकोटला से ट्रक नंबर PNR 5317 में गेहूं की 90 बोरी भरकर दिल्ली जा रहे थे। रास्ते में सेना ने उनका ट्रक रोक दिया। सैनिकों ने कहा, “जंग छिड़ी है। देश को आपके ट्रक की जरूरत है।” कमल नयन ने बिना एक शब्द बोले ट्रक में लदी सारी गेहूं सड़क पर उतार दी।
गोला-बारूद से लदा ट्रक, और वह बन गए मोर्चे के हीरो
फौजियों ने ट्रक को गोला-बारूद से भर दिया। कमल नयन अब सिर्फ ड्राइवर नहीं, बल्कि सेना के साथी बन चुके थे। वे ट्रक लेकर सियालकोट सेक्टर तक पहुंच गए जहाँ चारों तरफ़ पाकिस्तानी तोपें दाग रही थीं। फिर शुरू हुआ वह सिलसिला, जिसकी कल्पना भी मुश्किल है। वे तोपों की बारिश के बीच ऐसे गुजरते मानो कोई आम सड़क पार कर रहे हों। कई बार उन्होंने ट्रक को फिल्मी स्टाइल में दुश्मनों पर चढ़ा दिया। कई मौके पर खुद हाथ में गोला-बारूद उठाकर पाकिस्तानी सैनिकों पर फेंका। इतना ही नहीं, ट्रक की रफ्तार और उनका साहस देखकर दुश्मन के जवान घबराकर भागने लगे उनकी मौजूदगी ने कई भारतीय यूनिटों को नई ऊर्जा दी। जहाँ भी वे ट्रक लेकर पहुंचे, भारतीय सैनिकों का मनोबल और मजबूत हुआ।
अशोक चक्र का सम्मान
कमल नयन के साहस को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें अशोक चक्र से सम्मानित किया। यह वही सम्मान है जो शांति काल में दी जाने वाली सर्वोच्च वीरता का प्रतीक है, ठीक वैसे जैसे युद्धकाल में परमवीर चक्र का सम्मान। सरकार ने उन्हें 15 लाख रुपये नकद और 70 हजार रुपये सालाना मदद की घोषणा भी की थी, हालांकि यह सहायता उन्हें पूरी तरह नहीं मिल पाई जो आज भी एक सवाल बनकर खड़ी है।
कमल नयन जैसे लोग साबित करते हैं कि वीरता वर्दी की मोहताज नहीं होती। कभी-कभी एक साधारण ट्रक ड्राइवर भी इतिहास में ऐसा नाम दर्ज करा देता है, जिसे मिटाया नहीं जा सकता।




